संसद का पूरा शीतकालीन सत्र नोटबंदी पर अपने फ़िज़ूल के हंगामे की भेंट चढ़ाने वाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने सत्र बीतते-बीतते अब एक नया बवाल खड़ा कर दिया है। गत 14 तारीख को एक प्रेसवार्ता में उन्होंने कहा कि उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत भ्रष्टाचार से जुड़ी जानकारी है, जिसे वे सार्वजनिक कर देंगे, इसलिए उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा। हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि कौन उन्हें संसद में बोलने से रोक रहा है और कैसे ? क्या संसद में उन्हें हिदायत दी गई है कि बोलना मना है या किसी कानूनी प्रावधान के जरिये उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा ? राहुल गाँधी ने इस विषय में कुछ नहीं बताया। बताते तब न, जब बताने के लिए कुछ होता। सच्चाई तो ये है कि संसद का ये पूरा सत्र अगर बिना किसी ठोस काम-काज और चर्चा-बहस के यूँ ही बर्बाद चला गया तो इसके लिये मुख्य रूप से स्वयं राहुल गाँधी और उनकी पार्टी कांग्रेस जिम्मेदार है। सरकार ने कांग्रेस की हर संभव शर्त मानी ताकि सदन चल सके, लेकिन उसके शर्तों की फेहरिस्त दिन-प्रतिदिन लम्बी ही होती गई, जैसे कि कांग्रेस ठानकर बैठी थी कि सदन चलने नहीं देना है। पहले उसकी मांग थी कि नोटबंदी पर चर्चा हो, सरकार मान गई। फिर उसने मांग उठाई कि पीएम की मौजूदगी में चर्चा हो, पीएम भी आ गये। तब कांग्रेस ने मतदान के नियम से चर्चा कराने और पीएम के बयान की मांग खड़ी कर दी। इन मांगों को मानने के बाद संभव था कि कांग्रेस कुछ और मांग लेकर खड़ी हो जाती। सवाल ये है कि कांग्रेस आखिर किस अधिकार से पूर्ण बहुमत प्राप्त किये सत्ता पक्ष के समक्ष इस तरह की बेतुकी मांगे रख रही है, जबकि उसके पास संख्याबल का ऐसा अकाल है कि संवैधानिक रूप से विपक्ष की भूमिका तक उसे नहीं मिल सकी है। जनता द्वारा इस तरह से खारिज दल पूर्ण बहुमत प्राप्त सत्ता के समक्ष ये अतार्किक और हठी रवैया कैसे अपना रहा है, ये समझ से परे है।
हाल ही में राहुल गाँधी कहा था कि मै बोलूँगा तो भूकंप आयेगा, जिसपर उनकी फजीहत अबतक हो रही है। ये कोई पहली बार नहीं है, इससे पहले भी उन्होंने ऐसे ही एक रैली में संघ को ‘महात्मा गाँधी का हत्यारा’ बता दिया था, जिसपर न्यायालय में उनकी बुरी तरह से फज़ीहत हुई। ऐसे ही और भी कई मामले हैं, जिनमें उन्होंने अपनी किरकिरी करवाई है और अब इस ताज़ा पीएम मोदी से सम्बंधित मामले में भी कहीं न कहीं ऐसा ही कुछ बंदोबस्त कर रहे हैं। समय रहते अगर कांग्रेस ने उन्हें नहीं संभाला तो उनका ये बेपरवाह बोलना कांग्रेस के लिए एकबार फिर भूकंप लाने का ही काम करेगा। कांग्रेस की दयनीय दशा को राहुल गांधी का ये बड़बोलापन और दयनीय बनाने वाला साबित होगा।
दरअसल कांग्रेस के पास संख्याबल नहीं है, जिस कारण वो लोकतान्त्रिक ढंग से सदन में सरकार को रोक नहीं सकती, इसीलिए हंगामे को अपनाकर कामकाज बाधित करने की रणनीति पर चल रही है। मगर, इसमें सदन के वक़्त और देश के पैसे का जो नुकसान हो रहा है, उसका उत्तरदायित्व क्या कांग्रेस लेगी ? राहुल गाँधी को इसका जवाब देना चाहिये था, मगर वे तो एक नया राग आलापने लगे हैं कि पीएम मोदी के भ्रष्टाचार की जानकारी उजागर कर देंगे। तिसपर ये कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जा रहा, ये तो बिलकुल ही ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली बात है।
राहुल गाँधी से एक पीढ़ी ऊपर के कांग्रेसी इतिहास में झाँके तो एक दौर था, जब वीपी सिंह राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स घोटाले के सबूत होने और सत्ता में आने पर उन्हें जेल भिजवाने की ताल ठोंका करते थे। ऐसा जताते थे कि बोफोर्स घोटाले के सबूत उनकी जेब में रखे हैं। इसी बोफोर्स घोटाले का डंका बजाकर उन्होंने सत्ता हासिल कर ली, लेकिन सत्ता मिलते ही बोफोर्स का नाम ऐसे भूले कि फिर कभी उसकी चर्चा तक न किये। कहना गलत नहीं होगा कि आज राहुल गांधी वीपी सिंह का वही दाँव पीएम मोदी के खिलाफ इस्तेमाल करने की सोच रहे हैं। लेकिन, वीपी सिंह और राहुल गांधी में बहुत अंतर है। वीपी सिंह राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री मंत्री रहे थे और अपने बगावती तेवरों के कारण बाहर हुए थे साथ ही उनके द्वारा उठाये गये बोफोर्स मामले में दम भी था। राजीव गांधी आज भी उस मामले में संदिग्ध माने जाते हैं। इसलिए तब वीपी सिंह का दाँव चल गया था, मगर राहुल गाँधी सिर्फ कपोल-कल्पित बयान दे रहे हैं। अगर उनके पास पीएम के खिलाफ कोई आरोप और उसके पक्ष में साक्ष्य हैं, तो इतने दिन तक सदन में हंगामा करने की बजाय उन्हें सदन के सामने रखे होते। खैर! अब भी देर नहीं हुई है, वे प्रेसवार्ता करके उन साक्ष्यों को सार्वजनिक कर दें। अगर वे यह सब नहीं कर सकते तो पीएम के सम्बन्ध में ऐसे विवादास्पद और हवा-हवाई बयान देना बंद करें बल्कि यह प्रोपोगैंडा फैलाने के लिए माफ़ी मांगें।
दरअसल राहुल गाँधी सिर्फ कांग्रेस की ठप्प पड़ी गाड़ी को जबरन रफ़्तार देने के लिए ये सब नकली कहानियाँ गढ़ रहे हैं। हाल ही में उन्होंने यह भी कहा था कि बोलूँगा तो भूकंप आयेगा, जिसपर उनकी फजीहत अबतक हो रही है। ये कोई पहली बार नहीं है, इससे पहले भी उन्होंने ऐसे ही एक रैली में संघ को ‘महात्मा गाँधी का हत्यारा’ बता दिया था, जिसपर न्यायालय में उनकी बुरी तरह से फज़ीहत हुई। ऐसे ही और भी कई मामले हैं, जिनमें उन्होंने अपनी किरकिरी करवाई है और अब इस ताज़ा पीएम मोदी से सम्बंधित मामले में भी कहीं न कहीं ऐसा ही कुछ बंदोबस्त कर रहे हैं। समय रहते अगर कांग्रेस ने उन्हें नहीं संभाला तो उनका ये बेपरवाह बोलना कांग्रेस के लिए एकबार फिर भूकंप लाने का ही काम करेगा। कांग्रेस की दयनीय दशा को राहुल गांधी का ये बड़बोलापन और दयनीय बनाने वाला साबित होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)