देश के प्रथम नागरिक के पद का दायित्व सही हाथों में गया है। कोविंद जैसे व्यक्ति जो कि विद्वत्ता, अनुभव, ज्ञान, व्यवहार, वरिष्ठता एवं छवि आदि योग्यता के समस्त मानदंडों पर खरे उतरते हैं, निश्चित ही राष्ट्रपति जैसे गरिमामयी पद के लिए सर्वथा योग्य थे। बतौर राष्ट्रपति देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में वे अपनी भूमिका का सम्यक प्रकार से निर्वहन करेंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद आगामी 25 जुलाई को देश के 14 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे। उन्होंने अपनी प्रतिद्वंद्वी पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को बड़े अंतर से हराया है। कोविंद की यह जीत अपेक्षित ही थी। भाजपा और एनडीए कार्यकर्ताओं समेत कोविंद के गांव में भी लोगों ने जमकर जश्न मनाया और मिठाई बांटी। जीत की घोषणा के बाद उन्हें बधाइयों का तांता लग गया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश के कई दलों के अनेक नेताओं ने अपनी ओर से उन्हें बधाई दी। कोविंद की पत्नी सविता कोविंद अपने पति के राष्ट्र का प्रथम नागरिक बनने को लेकर बेहद खुश नज़र आयीं। उन्होंने कहा कि इस बात का कभी अंदाजा नहीं था कि वे राष्ट्रपति बन जाएंगे।
आसान नहीं रही राह
लेकिन गौर करें तो कोविंद के लिए देश के इस सर्वोच्च पद पर पहुंचना सहज और सरल नहीं रहा है। उनका प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों में गुज़रा और उन्होंने स्वयं समाज के पिछड़े व निम्न तबके के कल्याण के लिए आजीवन काम करते हुए स्वयं का जीवन समर्पित किया है। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के परौंख गांव के रहने वाले हैं, जहां उनका जन्म हुआ। उत्तर प्रदेश से अभी तक देश को 9 प्रधानमंत्री मिले हैं, लेकिन कोविंद के रूप में पहला राष्ट्रपति इस प्रदेश से आया है। दलित समुदाय से आने वाले वे देश के दूसरे राष्ट्रपति हैं।
कोविंद ने आईएएस की परीक्षा पास तो की लेकिन नौकरी नहीं की। शैक्षणिक रूप से मजबूत कोविंद ने आईएएस होने के बावजूद प्रशासनिक सेवा की बजाय वकालत की उपाधि लेकर विधि व्यवसाय शुरू किया। दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने के साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जनता पार्टी के परामर्शदाता और केंद्र सरकार के वकील के तौर पर सेवाएं दीं। फिर सन 1977 में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देशाई के निजी सचिव बन गए।
भाजपा के सम्पर्क में आने के पश्चात् वर्ष 1994 में कोविंद पहली बार उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए और फिर यह सिलसिला लंबा चला। वे निरंतर 12 वर्षों तक राज्य सभा सदस्य रहे। दलित समाज से आने के नाते उन्होंने भाजपा के अनुसूचित मोर्चे की राष्ट्रीय इकाई के दायित्वों का भी निर्वहन किया। मददगार व सहज व्यक्तित्व के धनी कोविंद ने दलित वर्ग के लिए मुफ्त कानूनी सलाह देकर अपनी ओर से योगदान भी दिया।
कोविंद की जीत से गुजरात कांग्रेस में मचा घमासान
खैर, कोविंद के राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने पर गुजरात में कांग्रेस को झटका लगा है। असल में गुजरात की राजनीति में अभी उठापटक का दौर चल रहा है और कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद यह प्रकट होकर सामने आ गया है। एनसीपी व कांग्रेस के 11 विधायकों ने राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग किया जिससे एनडीए की ओर से कोविंद को 132 मत मिले, विधानसभा में भाजपा व जीपीपी के विधायकों की संख्या 121 है। पार्टी प्रभारी अशोक गहलोत सहित कांग्रेस के विधायकों की संख्या 60 होती है, लेकिन मीरा कुमार को 49 ही मत हासिल हुए।
आंतरिक फूट का शिकार हो रही गुजरात कांग्रेस को लेकर अब कांग्रेस आलाकमान की चिंताएं बढ़ गईं होंगी। चुनाव परिणाम जारी होते ही शंकर सिंह वाघेला को दिल्ली तलब किया गया। फिर कुछ ही समय में वाघेला ने बगावती तेवर अपनाते हुए कांग्रेस से इस्तीफे का ऐलान कर दिया। इस घटनाक्रम को देखते हुए कहना न होगा कि गुजरात में पहले से ही संगठन की बदहाली से जूझ रही कांग्रेस के लिए वाघेला के इस्तीफे से मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं।
इधर, कोविंद की शपथ की तैयारियां जोरों पर हैं। 25 जुलाई को कोविंद शपथ ग्रहण करेंगे, लेकिन उसके पहले ही उनके सचिवालय में बदलाव शुरू हो गया है। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार लोक उद्यम चयन बोर्ड के अध्यक्ष संजय कोठारी को नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का सचिव नियुक्त किया गया है। इसके साथ ही वरिष्ठ पत्रकार अशोक मलिक को राष्ट्रपति का प्रेस सचिव बनाया गया है। संसद के केंद्रीय कक्ष में भव्य समारोह में उन्हें शपथ दिलाई जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जेएस खेहर राष्ट्रपति के रूप में उन्हें संविधान की रक्षा की शपथ दिलाएंगे।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि देश के प्रथम नागरिक के पद का दायित्व सही हाथों में गया है। कोविंद जैसे व्यक्ति जो कि विद्वत्ता, अनुभव, ज्ञान, व्यवहार, वरिष्ठता एवं छवि आदि योग्यता के समस्त मानदंडों पर खरे उतरते हैं, निश्चित ही राष्ट्रपति जैसे गरिमामयी पद के लिए सर्वथा योग्य थे। बतौर राष्ट्रपति देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में वे अपनी भूमिका का सम्यक प्रकार से निर्वहन करेंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)