भारतीय अर्थव्यवस्था का, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में, तेजी से औपचारीकरण हो रहा है। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में गैर-औपचारीकृत लेनदेनों का योगदान वर्ष 2018 में 52 प्रतिशत था अर्थात देश में लगभग आधी अर्थव्यवस्था गैर-औपचारीकृत रूप से कार्यरत थी परंतु अब यह योगदान घटकर लगभग 20 प्रतिशत हो गया है। किसी भी अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण होने के कारण कर संग्रहण में वृद्धि होती है, विकास दर बढ़ती है एवं श्रमिकों के जीवनस्तर में बेहतरी आती है।
इस वर्ष की दीपावली भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबर लाई है। तीव्र गति से संकलित किए गए आकड़ों के अनुसार, इस वर्ष दीपावली के दौरान देश में 125,000 करोड़ रुपए से अधिक का खुदरा व्यापार सम्पन्न हुआ है जो पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान हुए खुदरा व्यापार में सबसे अधिक है।
नौकरी जॉबस्पीक द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार देश में अक्टूबर 2021 माह में रोजगार के अवसरों में 43 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सबसे अधिक मांग दृष्टिगोचर हुई है, इस क्षेत्र में अक्टोबर 2021 माह में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में रोजगार की मांग में 85 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। दीपावली के महान पर्व के दौरान खुदरा व्यापार में हुई अतुलनीय वृद्धि के चलते सूचना प्रौद्योगिकी के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसरों में बहुत अच्छी वृद्धि दर्ज की गई है।
सबसे अच्छी खबर तो यह आई है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में, तेजी से औपचारीकरण हो रहा है। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में गैर-औपचारीकृत लेनदेनों का योगदान वर्ष 2018 में 52 प्रतिशत था अर्थात देश में लगभग आधी अर्थव्यवस्था गैर-औपचारीकृत रूप से कार्यरत थी परंतु अब यह योगदान घटकर लगभग 20 प्रतिशत हो गया है।
किसी भी अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण होने के कारण कर संग्रहण में वृद्धि होती है, विकास दर बढ़ती है एवं श्रमिकों के जीवनस्तर में बेहतरी आती है। औपचारीकरण की प्रक्रिया में दरअसल सबसे अधिक लाभ तो श्रमिकों का होता है क्योंकि इससे उद्योग जगत एवं रोजगार प्रदाता द्वारा, सरकार द्वारा घोषित किए गए सभी प्रकार के लाभ एवं प्रोत्साहन, श्रमिकों को प्रदान किए जाने लगते हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से हो रहे औपचारीकरण के पीछे डिजिटल लेनदेन का बहुत अधिक योगदान रहा है। दीपावली एवं अन्य त्यौहारों के कारण अक्टूबर 2021 माह के दौरान यूनिफाईड पेयमेंट इंटरफेस (UPI) पर 771,000 करोड़ रुपए के 421 करोड़ व्यवहार सम्पन्न हुए हैं, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। UPI प्लेटफोर्म का प्रारम्भ वर्ष 2016 में हुआ था एवं अक्टोबर 2019 में 100 करोड़ व्यवहार के स्तर को छुआ गया था तथा अक्टूबर 2020 में 200 करोड़ व्यवहार के स्तर को छुआ गया था, उसके बाद तो लगातार तेज गति से वृद्धि आंकी गई है।
देश में आर्थिक गतिविधियों में लगातार हो रहे सुधार के कारण जीएसटी संग्रहण में भी रिकार्ड वृद्धि दर्ज हो रही है। माह मार्च 2021 में जीएसटी संग्रहण रिकार्ड 140,000 करोड़ रुपए का रहा था जो माह अक्टूबर 2021 में 130,000 करोड़ रुपए से अधिक का रहा है। इस प्रकार माह जुलाई 2017 में जीएसटी प्रणाली के लागू किए जाने के बाद से यह रिकार्ड स्तर के मामले में दूसरे नम्बर पर है।
अब तो औसत रूप से प्रत्येक माह जीएसटी संग्रहण एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का ही हो रहा है। इसके साथ ही अंतरराज्यीय व्यापार के मामले में जारी किए जा रहे ईवे बिलों के संख्या में भी लगातार बहुत अच्छी वृद्धि देखने में आ रही है।
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की वसूली में हो रही वृद्धि के चलते केंद्र सरकार के वित्तीय संतुलन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान राजकोषीय घाटे के बारे में बजट में किए गए अनुमान से अलग केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा अप्रैल-सितम्बर 2021 की अवधि के दौरान केवल 35 प्रतिशत रहा है जो अप्रैल-सितम्बर 2020 की इसी अवधि के दौरान 115 प्रतिशत था।
राजकोषीय घाटे का 526,000 करोड़ रुपए का स्तर पिछले 4 वर्ष के दौरान की इसी अवधि के स्तर से भी कम है। यह इसलिए सम्भव हो सका है क्योंकि देश में प्रत्यक्ष करों के संग्रहण में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।
हर्ष का विषय यह भी है कि केंद्र सरकार द्वारा लगातार किए गए प्रयासों के कारण देश में खुदरा मुद्रा स्फीति की दर में भी कमी आई है। सितम्बर 2021 माह में खुदरा मुद्रा स्फीति की दर 4.35 प्रतिशत रही है, यह पिछले 5 माह के दौरान खुदरा मुद्रा स्फीति की दर में सबसे कम है। अगस्त 2021 माह में खुदरा मुद्रा स्फीति की दर 5.3 प्रतिशत एवं सितम्बर 2020 माह में 7.27 प्रतिशत थी।
अभी हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल एवं डीजल पर एक्साइज कर की दरों की गई कमी एवं भाजपा एवं इसके सहयोगी दलों द्वारा शासित राज्यों द्वारा पेट्रोल एवं डीजल पर लागू VAT की दरों में की गई कमी के कारण पेट्रोल एवं डीजल के प्रति लीटर विक्रय मूल्य में लगभग 10 रुपए से 15 रुपए तक की कमी हुई है जिसके कारण भी खुदरा मुद्रा स्फीति की दर और भी कम होने की सम्भावना आगे आने वाले समय के लिए बढ़ गई है।
स्वाभाविक रूप से आर्थिक गतिविधियों में हो रहे लगातार सुधार के चलते बैंकों द्वारा प्रदान की जा रही ऋणराशि में भी तेजी देखने में आ रही है। विशेष रूप से त्यौहारों के मौसम में व्यक्तिगत ऋणराशि एवं कृषि के क्षेत्र में प्रदान की जाने वाली ऋणराशि में तेजी कुछ अधिक ही दिखाई दे रही है। सितम्बर 2021 माह में गृह ऋण, वाहन ऋण, क्रेडिट कार्ड आदि व्यक्तिगत ऋण के क्षेत्र में 12.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो सितम्बर 2020 माह में हुई 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर से कहीं अधिक है।
इसी प्रकार कृषि के क्षेत्र में प्रदान की जा रही ऋणराशि में भी सितम्बर 2021 माह में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है जो सितम्बर 2020 माह की वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत से कहीं अधिक है। मध्यम उद्योग को प्रदान की गई ऋणराशि में सितम्बर 2021 माह में 49 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि देखने में आई है जो सितम्बर 2020 माह में 17.5 प्रतिशत ही रही थी। सूक्ष्म एवं लघु उद्योग को प्रदान की गई ऋणराशि में सितम्बर 2021 माह में 9.7 प्रतिशत की वृद्धि आंकी गई है जबकि सितम्बर 2020 माह में 0.1 प्रतिशत की कमी आंकी गई थी।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विकास दर को गति प्रदान करने में विदेशी व्यापार का भी बहुत योगदान रहता है। दरअसल कई देशों यथा चीन जैसे देशों की विकास दर लगातार कुछ दशकों तक 10 प्रतिशत से अधिक इसी कारण से बनी रही है। अभी हाल ही के समय में भारत से होने वाले निर्यात में भी भारी वृद्धि देखने में आ रही है। अक्टूबर 2021 माह में भारत से वस्तुओं के निर्यात 42.33 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 3,547 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए हैं।
अक्टूबर 2020 माह में भारत से वस्तुओं के निर्यात 2,492 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे थे और अक्टोबर 2019 में 2,623 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे थे। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान भारत से वस्तुओं के निर्यात का स्तर 40,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से ऊपर रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग संस्थान मूडीज ने भारत की सार्वभौम (सोवरेन) रेटिंग दृष्टिकोण को ऋणात्मक (नेगेटिव) से स्थिर (स्टेबल) श्रेणी में ला दिया है। यह भी भारत में विशेष रूप से बैंकिंग एवं गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों में लगातार हो रहे सुधार के चलते सम्भव हो पाया है। केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लिए गए कई निर्णयों के चलते इन बैंकों में गैर निष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत लगातार कम हो रहा है।
अब तो विदेशी वित्तीय संस्थान यथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक आदि भी भारतीय अर्थव्यवस्था के वित्तीय वर्ष 2021-22 में दहाई के आंकड़े से आगे बढ़ने के बारे में सोचने लगे हैं। हालांकि अभी तक वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 9.5 प्रतिशत के आसपास के विकास दर की भविष्यवाणी तो लगभग सभी वित्तीय संस्थानों ने की हुई है।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। आर्थिक विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)