देशवासियों में ‘स्व’ का भाव जगाने के लिए सतत प्रयासरत है संघ

महान भारतीय सनातन संस्कृति को वैश्विक स्तर तक पहुंचाने के लिए नागरिकों में “स्व” का भाव जगाना आवश्यक होगा। यदि बड़ी संख्या में ऐसे नागरिक तैयार हो जाते हैं जिनमें “स्व” का भाव विकसित हो चुका है तो ऐसी स्थिति में मां भारती को पुनः विश्व गुरु बनाना आसान होगा।

भारत आज न केवल आर्थिक क्षेत्र में बल्कि राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी वैश्विक स्तर पर अपनी अलग पहचान कायम कर रहा है। चूंकि आज विश्व के कई देश विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जूझ रहे हैं एवं इन देशों को इन समस्याओं के हल हेतु कोई उपाय सूझ नहीं पा रहा है, अतः ये देश अपनी समस्याओं के हल हेतु भारत की ओर आशाभरी नजरों से देख रहे हैं। साथ ही, भारत आर्थिक रूप से भी हाल ही के समय में बहुत सशक्त होकर उभरा है।

इस परिप्रेक्ष्य में यदि भारत को एक बार पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित करना है तो प्राचीन भारत में जिस प्रकार महान भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए भारत विश्व गुरु के रूप में स्थापित हुआ था, ठीक उसी प्रकार अब समय आ गया है कि न केवल भारत में बल्कि आज पूरे विश्व में ही शांति स्थापित करने के उद्देश्य से महान भारतीय संस्कृति का पालन किया जाय।

महान भारतीय सनातन संस्कृति को वैश्विक स्तर तक पहुंचाने के लिए नागरिकों में “स्व” का भाव जगाना आवश्यक होगा। यदि बड़ी संख्या में ऐसे नागरिक तैयार हो जाते हैं जिनमें “स्व” का भाव विकसित हो चुका है तो ऐसी स्थिति में मां भारती को पुनः विश्व गुरु बनाना आसान होगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस संदर्भ में पिछले 97 वर्षों से  देश के नागरिकों में देश प्रेम की भावना का संचार कर उनमें “स्व” का भाव जगाने का लगातार प्रयास कर रहा है। वर्ष 1925 (27 सितम्बर) में विजयदशमी के दिन संघ के कार्य की शुरुआत ही इस कल्पना के साथ हुई थी कि देश के नागरिक स्वाभिमानी, संस्कारित, चरित्रवान, शक्तिसंपन्न, विशुद्ध देशभक्ति से ओत-प्रोत और व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त होने चाहिए। आज संघ, एक विराट रूप धारण करते हुए, विश्व में सबसे बड़ा स्वयं सेवी संगठन बन गया है।

संघ के शून्य से इस स्तर तक पहुंचने के पीछे इसके द्वारा अपनाई गई विशेषताएं यथा परिवार परंपरा, कर्तव्य पालन, त्याग, सभी के कल्याण विकास की कामना व सामूहिक पहचान आदि विशेष रूप से जिम्मेदार हैं। संघ के स्वयंसेवकों के स्वभाव में परिवार के हित में अपने हित का सहज त्याग तथा परिवार के लिये अधिकाधिक देने का स्वभाव व परस्पर आत्मीयता और आपस में विश्वास की भावना आदि मुख्य आधार रहता है। “वसुधैव कुटुंबकम” की मूल भावना के साथ ही संघ के स्वयंसेवक अपने काम में आगे बढ़ते हैं।

अभी हाल ही में संघ के कार्यों की समीक्षा एवं आगामी वर्ष 2023-24 के लिए संघ की कार्य योजना पर चर्चा करने हेतु संघ के प्रतिनिधि सभा की सबसे बड़ी बैठक हरियाणा के समालखा (जिला पानीपत) में  दिनांक 12 मार्च से 14 मार्च 2023 तक सम्पन्न हुई है। इस बैठक में भारत के नागरिकों में “स्व” के भाव के महत्व को रेखांकित करते हुए एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास किया गया है।

इस प्रस्ताव में बताया गया है कि “विश्व कल्याण के उदात्त लक्ष्य को मूर्तरूप प्रदान करने हेतु भारत के ‘स्व’ की सुदीर्घ यात्रा हम सभी के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रही है। विदेशी आक्रमणों तथा संघर्ष के काल में भारतीय जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ तथा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व धार्मिक व्यवस्थाओं को गहरी चोट पहुंची। इस कालखंड में पूज्य संतों व महापुरुषों के नेतृत्व में संपूर्ण समाज ने सतत संघर्षरत रहते हुए अपने ‘स्व’ को बचाए रखा।

इस संग्राम की प्रेरणा स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज की ‘स्व’ त्रयी में निहित थी, जिसमें समस्त समाज की सहभागिता रही।” अरब देशों के आक्रांताओं एवं अंग्रेजों ने भारतीय जनमानस में “स्व” के भाव को समाप्त करने के अथक प्रयास किए परंतु चूंकि वे इसमें पूर्ण रूप में असफल रहे इसलिए ही भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है वरना ग्रीक एवं यूनान जैसी कई प्राचीन संस्कृतियां विश्व पटल से आज मिट गई हैं।

इसी प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि “स्वाधीनता प्राप्ति के उपरांत हमने अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं। आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभर रही है। भारत के सनातन मूल्यों के आधार पर होने वाले नवोत्थान को विश्व स्वीकार कर रहा है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा के आधार पर विश्व शांति, विश्व बंधुत्व और मानव कल्याण के लिए भारत अपनी भूमिका निभाने के लिए अग्रसर है।”

साथ ही, संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह स्पष्ट मत है कि “सुसंगठित, विजयशाली व समृद्ध राष्ट्र बनाने की प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, सर्वांगीण विकास के अवसर, तकनीक का विवेकपूर्ण उपयोग एवं पर्यावरणपूरक विकास सहित आधुनिकीकरण की भारतीय संकल्पना के आधार पर नए प्रतिमान खड़े करने जैसी चुनौतियों से पार पाना होगा। राष्ट्र के नवोत्थान के लिए हमें परिवार संस्था का दृढ़ीकरण, बंधुता पर आधारित समरस समाज का निर्माण तथा स्वदेशी भाव के साथ उद्यमिता का विकास आदि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशेष प्रयास करने होंगे।

इस दृष्टि से समाज के सभी घटकों, विशेषकर युवा वर्ग को समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता रहेगी। संघर्षकाल में विदेशी शासन से मुक्ति हेतु जिस प्रकार त्याग और बलिदान की आवश्यकता थी; उसी प्रकार वर्तमान समय में उपर्युक्त लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नागरिक कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध तथा औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त समाजजीवन भी खड़ा करना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा स्वाधीनता दिवस पर दिये गए ‘पंच-प्रण’ का आह्वान भी महत्वपूर्ण है।”

यह भी कटु सत्य है कि भारत की विभिन्न क्षेत्रों में हो रही अतुलनीय प्रगति को कई देश पचा नहीं पा रहे हैं इस संदर्भ में भी प्रस्ताव में कहा गया है कि “अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस बात को रेखांकित करना चाहती है कि जहां अनेक देश भारत की ओर सम्मान और सद्भाव रखते हैं, वहीं भारत के ‘स्व’ आधारित इस पुनरुत्थान को विश्व की कुछ शक्तियां स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। हिंदुत्व के विचार का विरोध करने वाली देश के भीतर और बाहर की अनेक शक्तियां निहित स्वार्थों और भेदों को उभार कर समाज में परस्पर अविश्वास, तंत्र के प्रति अनास्था और अराजकता पैदा करने हेतु नए-नए षड्यंत्र रच रही हैं। हमें इन सबके प्रति जागरूक रहते हुए उनके मंतव्यों को भी विफल करना होगा।”

भारत में वर्तमान में चल रहा अमृतकाल हमें भारत को वैश्विक नेतृत्व प्राप्त कराने के लिए सामूहिक उद्यम करने का अवसर प्रदान कर रहा है। अतः अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने प्रबुद्ध वर्ग सहित सम्पूर्ण समाज का आह्वान किया है कि “भारतीय चिंतन के प्रकाश में सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, लोकतांत्रिक, न्यायिक संस्थाओं सहित समाजजीवन के सभी क्षेत्रों में कालसुसंगत रचनाएं विकसित करने के इस कार्य में संपूर्ण शक्ति से सहभागी बने, जिससे भारत विश्वमंच पर एक समर्थ, वैभवशाली और विश्वकल्याणकारी राष्ट्र के रूप में समुचित स्थान प्राप्त कर सके।”

उक्त प्रस्ताव के माध्यम से संघ ने आगे आने वाले समय के लिए अपनी प्राथमिकताएं तय कर दीं हैं। जैसा कि सर्वविदित ही है कि संघ का कार्य विशेष रूप से शाखाओं के माध्यम से ही आगे बढ़ता है और जहां स्वयंसेवकों को गढ़ा जाता है। आज पूरे देश में संघ 71,355 स्थानों पर प्रत्यक्ष तौर पर कार्य कर समाज परिर्वतन के महत्वपूर्ण कार्य में अपनी भूमिका निभा रहा है। आज संघ 42,613 स्थानों पर 68,651 शाखाएं, 26,877 स्थानों पर साप्ताहिक मिलन तथा 10,412 स्थानों पर मासिक मंडली का आयोजन कर रहा है।

संघ दृष्टि से देशभर में 911 जिले हैं, जिनमें से 901 जिलों में संघ का प्रत्यक्ष कार्य अबाध गति से चल रहा है। 6,663 खंडों में से 88 प्रतिशत खंडों में, 59,326 मंडलों में से 26,498 मंडलों में संघ की प्रत्यक्ष शाखाएं लग रही हैं। शताब्दी वर्ष में संघ कार्य को बढ़ाने के लिए संघ के नियमित प्रचारकों व विस्तारकों के अतिरिक्त 1300 कार्यकर्ता दो वर्ष के लिए शताब्दी विस्तारक भी निकले हैं।

संघ ने अगले एक वर्ष तक एक लाख स्थानों तक पहुंचने का लक्ष्य अपने लिए निर्धारित किया है। संघ ने आगे आने वाले समय में अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सामाजिक परिवर्तन के पांच पैमानों पर कार्य करने का निर्णय भी लिया है। इनमें शामिल है, सामाजिक सद्भाव, परिवारिक मान्यताएं, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी (भारतीय) व्यवहार एवं नागरिक कर्तव्य। समाज के विभिन्न वर्गों में उक्त पांच विशेषताओं को विकसित कर भारत को विश्व गुरु बनाए जाने की दिशा में कार्य करना आसान होगा।

संघ के साथ समाज की सज्जन शक्ति एवं सुप्त शक्ति को भी जुड़ना होगा। क्योंकि, लक्ष्य बहुत बड़ा है, मां भारती को हमें परम वैभवशाली बनाना है। इसके लिए न केवल भारत में बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी संघ के कार्य को बल, गति एवं विस्तार देना होगा ताकि भारत मां के हम सभी सपूत मिलकर संघ द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को शीघ्र प्राप्त कर सकें।

(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)