एनबीएफसी को मजबूत करने की पहल

एनबीएफसी को वर्तमान पूँजी संकट के भंवर से निकालने के लिये रिजर्व बैंक ने दिशा-निर्देश जारी किया है साथ ही साथ 5000 या उससे ज्यादा कारोबार करने वाले एनबीएफसी को एक जोखिम अधिकारी नियुक्त करने के लिये निर्देशित किया गया है, ताकि जोखिम की स्थिति में एनबीएफसी खुद संकट से बाहर निकल सकें। उम्मीद है कि रिजर्व बैंक द्वारा एनबीएफसी के संदर्भ में जारी किये गये ताजा दिशा-निर्देश प्रभावी साबित होंगे।

माना जा रहा है कि तरलता जोखिम प्रबंधन के संदर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक के प्रस्तावित दिशा-निर्देशों से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) के लाभ में कमी आयेगी, जो 1 अप्रैल, 2020 से प्रभावी होने वाले हैं। प्रस्तावित दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देने के बाद एनबीएफसी की देनदारियों की कड़ाई से निगरानी की जायेगी।

इतना ही नहीं, इससे जुड़े सभी हितधारकों को प्रस्तावित दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करना होगा। एनबीएफसी की सबसे बड़ी समस्या तरलता से जुड़ी हुई है। अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिये एनबीएफसी लघु अवधि के लिये उधार दे रही हैं, क्योंकि कम अवधि की उधारी लागत कम है, जबकि लंबी अवधि की उधारी लागत ज्यादा।

साभार : saspartners.com

रिजर्व बैंक के प्रस्तावित दिशा-निर्देशों के मुताबिक एनबीएफसी को परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन बढ़िया तरीके से करनी होगी। इस संदर्भ में छोटी अवधियों के लिये जैसे, 8 से 14 दिनों या 15 से 30 दिनों के लिये उधार देना लाभकारी हो सकता है। संचयी परिसंपत्ति-देयता के अंतर को भी 8 से 14 दिनों के लिये 10 प्रतिशत और 15 से 30 दिनों के लिये 20 प्रतिशत करना होगा। आमतौर पर जब नकद प्रवाह, नकद आमद से अधिक होता है, तब देनदारी और लेनदारी के बीच अंतर आ जाता है। 

भारतीय रिजर्व बैंक ने एनबीएफसी को तरलता कवरेज अनुपात (एलसीआर) का निर्वाह रखने के लिये भी निर्देशित किया है। एलसीआर से यह पता चलता है कि बैंक के पास उच्च-गुणवत्ता वाले तरल संपत्ति हैं या नहीं। पर्याप्त संपत्ति होने पर एनबीएफसी अपने कारोबार का संचालन कम से कम 30 दिनों तक करने में समर्थ होंगे।

रिजर्व बैंक के अनुसार एनबीएफसी को पर्याप्त मात्रा में ऐसी परिसंपत्तियां रखनी चाहिए, जिसका इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर नकदी की जरूरतों को पूरा करने के लिये किया जा सके। अर्थात एनबीएफसी के पास वैसी संपत्तियों होनी चाहिये, जिसे तुरंत नकदी में तब्दील किया जा सके। केंद्रीय बैंक के अनुसार संकट में कम से कम 30 दिनों तक की नकदी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये कंपनियों के पास पर्याप्त मात्रा में परिसंपत्तियां होनी चाहिए। 

इतना ही नहीं, सामान्य स्थिति में भी नकदी जुटाने के लिए एनबीएफसी के पास पर्याप्त मात्रा में परिसंपत्तियां होनी चाहिए। एनबीएफसी को अपनी नकदी की स्थिति को भी सार्वजनिक करनी चाहिए, ताकि, निवेशकों को सही निर्णय लेने में मदद मिले।पाँच हजार करोड़ रुपये से अधिक पूंजी वाली या पाँच हजार करोड़ रूपये जमा रकम स्वीकार करने वाली एनबीएफसी के लिए एलसीआर का अनुपालन करना अनिवार्य किया गया है।

हाल ही में रिजर्व बैंक ने 5,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक पूंजी वाली एनबीएफसी खातों में परिसंपत्ति-देनदारी प्रबंधन करने के लिए एनबीएफसी में एक जोखिम अधिकारी नियुक्त करने के लिये निर्देशित किया है, ताकि एनबीएफसी का संचालन सुचारु रूप से किया जा सके।

केंद्रीय बैंक के अनुसार एलसीआर का निर्वाह करने से एनबीएफसी को नकदी की समस्या से निपटने में आसानी होगी और उच्च गुणवत्ता वाली नकद परिसंपित्तयां (एचक्यूएलए) को रखने में मदद मिलेगी। इससे मुश्किल समय में एनबीएफसी कम से कम 30 दिनों तक कारोबार करने में समर्थ होगी। एचक्यूएलए समान्यत: सरकारी प्रतिभूतियां होती हैं, जिन्हें बेचकर बाजार से पूँजी जुटाई जा सकती है।

रिजर्व बैंक ने यह भी कहा है कि एक अप्रैल, 2024 तक बड़ी एनबीएफसी को आगामी 30 दिनों में शुद्ध नकदी प्रवाह का न्यूनतम 100 प्रतिशत एचक्यूएलए रखना होगा, जबकि एनबीएफसी पर एलसीआर रखने की बाध्यता 1 अप्रैल, 2020 से लागू होगी। एनबीएफसी को न्यूनतम एचक्यूएलए एलसीआर का 60 प्रतिशत रखना होगा, जिसे 1 अप्रैल, 2024 तक 100 प्रतिशत के स्तर पर लाना होगा।

प्रस्तावित दिशा-निर्देश में 100 करोड़ रुपये और उससे अधिक परिसंपत्ति कारोबार करने वाली एनबीएफसी (जमा नहीं स्वीकार करने वाली) और एनबीएफसी (जमा स्वीकार करने वाली) को छोटी अवधि के आधार पर अपनी नकदी जांचने के लिये निर्देशित किया गया है, जिसमें 1 से 7 दिन, 8 से 14 दिन और 15 से 30 दिन की अवधि शामिल है। 

प्रस्तावित बदलावों के आलोक में कुछ एनबीएफसी बैंकिंग लाइसेंस हासिल करने पर विचार कर रही हैं। वे बैंकिंग लाइसेंस से जुड़े नियामकीय मसलों पर केंद्रीय बैंक से बातचीत भी कर रही हैं। अभी सिर्फ यूनिमनी फाइनैंशियल सर्विसेज, पुराना नाम “यूएई एक्सचेंज इंडिया” का बैंकिंग लाइसेंस का आवेदन ही रिजर्व बैंक के पास स्वीकृति हेतु लंबित है। वैसे, अनेक एनबीएफसी बैंकिंग लाइसेंस लेना नहीं चाहती है। उनका कहना है कि आईएलऐंडएफएस संकट से पहले एनबीएफसी कारोबारी मॉडल बढ़िया चल रहा था। पूर्व में 2 अप्रैल, 2014 को आईडीएफसी और बंधन बैंक को बैंकिंग लाइसेंस दिया गया था।

उस समय तीन औद्योगिक घरानों, जैसे, आदित्य बिड़ला नूवो, बजाज फिनसर्व और रिलायंस कैपिटल ने बैंकिंग लाइसेंस के लिये आवेदन किया था, जिनमें से बजाज फिनसर्व को लाइसेंस मिला था। हालाँकि, बाद में उसने लाइसेंस वापस कर दिया था। तदुपरांत, रिजर्व बैंक ने 11 भुगतान बैंकों और 10 लघु वित्त बैंकों को लाइसेंस जारी किया। उपरोक्त समस्याओं को मद्देनजर रखते हुए बड़ी एनबीएफसी अब अपने संसाधन को तरलता से युक्त बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

इस आलोक में एनबीएफसी और आवास वित्त कंपनियां वाणिज्यिक पत्रों के माध्यम से म्युचुअल फंड से रकम जुटाने की कोशिश कर रही हैं, क्योंकि मौजूदा समय में बैंक, अपनी सीमाओं की वजह से एनबीएफसी में निवेश करने से परहेज कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि एनबीएफसी की मौजूदा कारोबारी मॉडल की वजह से उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, एनबीएफसी उधारी देने के लिये खुद उधार लेते हैं, लेकिन  आईएलऐंडएफएस के डूबने के बाद एनबीएफसी में बैंक या दूसरे संस्थान निवेश करने से हिचक रहे हैं, जिससे उनके पास पूँजी की कमी हो गई है।

ऐसे में एनबीएफसी को वर्तमान संकट के भंवर से निकालने के लिये रिजर्व बैंक ने दिशा-निर्देश जारी किया है साथ ही साथ 5000 या उससे ज्यादा कारोबार करने वाले एनबीएफसी को एक जोखिम अधिकारी नियुक्त करने के लिये निर्देशित किया गया है, ताकि जोखिम की स्थिति में एनबीएफसी खुद संकट से बाहर निकल सकें। उम्मीद है कि रिजर्व बैंक द्वारा एनबीएफसी के संदर्भ में जारी किये गये ताजा दिशा-निर्देश प्रभावी साबित होंगे।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)