देश में एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की जरूरत थी, जिसकी मदद से लोग घर पर बिना उपयोग के पड़े भौतिक स्वर्ण का समीचीन तरीके से उपयोग कर सकते। वर्ष 2015 में शुरू की गई “स्वर्ण मौद्रीकरण योजना” इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसमें अब आरबीआई द्वारा समयानुकूल सुधार किया जाना अपेक्षित परिणाम दे सकता है। बैंकों में स्वर्ण खाते खोलने से स्वर्ण के आयात में कमी आयेगी और लोगों को बेकार पड़े स्वर्ण आभूषणों से आय भी होगी। ऐसा करने से स्वर्ण तस्करी और स्वर्ण के जरिये कालेधन के सृजन पर भी लगाम लगेगा।
रिजर्व बैंक ने स्वर्ण मौद्रिकरण योजना को और बेहतर बनाने के लिये एक अधिसूचना जारी करके कहा है कि अल्पकालीन जमा को बैंक के बही-खाते पर देनदारी के अनुरूप माना माना जायेगा। यह जमा, मनोनीत बैंकों में एक से तीन साल के लिए किया जाएगा। अन्य अवधि के लिए भी जमा की अनुमति होगी। यह एक साल तीन महीने, दो साल चार महीने पाँच दिन आदि अवधि का हो सकता है।
रिजर्व बैंक के अनुसार अलग-अलग अवधि के लिये ब्याज दर का आकलन पूरे हुए वर्ष तथा शेष दिन के लिये देय ब्याज पर तय किया जायेगा। गौरतलब है कि सरकार ने 2015 में यह योजना शुरू की थी, जिसका मकसद घरों तथा संस्थानों में रखे सोने को बाहर लाना और उसका बेहतर उपयोग करना है। मध्यम अवधि सरकारी जमा 5 से 7 साल के लिये तथा दीर्घकालीन सरकारी जमा 12 साल के लिये किया जा सकता है।
इसके अलावा अन्य अवधि जैसे, एक साल तीन महीने, दो साल चार महीने, पाँच दिन आदि के लिये भी जमा किया जा सकता है। यह योजना बैंक ग्राहकों को निष्क्रिय पड़े सोने को निश्चित अवधि के लिये जमा करने की अनुमति देती है, जिसपर 2.25 से 2.50 प्रतिशत की दर से ब्याज देने का प्रावधान है। अब इस योजना को कुछ सुधारों के साथ नये कलेवर में लाया जा रहा है।
स्वर्ण के मामले में प्राचीन काल से ही भारत बड़े आयातक देशों में से एक रहा है। भारत में स्वर्ण का उत्पादन नहीं होता है; फिर भी, देश में संचय के माध्यम से स्वर्ण इकठ्ठा किया जा रहा है। इसके संचय को लेकर भारतीयों की दीवानगी सदियों पुरानी है। मुख्य रूप से आयात के माध्यम से भारत में स्वर्ण एकत्र किया जा रहा है। भगवान के घर को भी स्वर्ण आभूषण से सजाने में भारतीय पीछे नहीं हैं। इसलिये, कई नामचीन मंदिरों में स्वर्ण के बड़े भंडार हैं।
आरंभ से स्वर्ण भारत की सभ्यता एवं संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है। इसे सामाजिक रीति-रिवाजों, परंपराओं, नकदी का विकल्प, संपार्श्विक, मुद्रास्फीति के खिलाफ बचाव आदि के संदर्भ में अपरिहार्य माना जाता है। स्वर्ण आभूषण स्त्री-धन के रूप में महिलाओं को आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सुरक्षित बनाता है। स्त्री-धन उसे कहते हैं, जिसे विवाह के समय दुल्हन को उसके माता-पिता उपहार के रूप में देते हैं।
इस पीले धातु की गतिशीलता अद्भुत है। भारत में इसे कालेधन, तस्करी एवं अन्य काले कारनामों के लिए भी मुफीद माना जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसका प्रभाव सीधे तौर पर विनिमय दर प्रबंधन, राजकोषीय नीति, समग्र वित्तीय स्थिरता आदि पर पड़ता है। स्वर्ण पर चर्चा राष्ट्रीय आय या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसके योगदान को समझे बिना अधूरी है। आज स्वर्ण भुगतान संतुलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कुल आयात में स्वर्ण आयात का हिस्सा 8.7% है।
वित्त वर्ष 2013 के दौरान राष्ट्रीय आय के लेखा-जोखा के दौरान कीमती वस्तुओं के वर्ग, जिसमें स्वर्ण और दूसरी कीमती धातुएं शामिल थीं, का जीडीपी में महज 2.5% का योगदान था, जो देश में स्वर्ण की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता के मुक़ाबले बहुत ही कम है। जीडीपी में इसके योगदान को बढ़ाने के लिये आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत लम्बे समय से महसूस की जा रही थी।
कहा जा सकता है कि देश में एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की जरूरत थी, जिसकी मदद से लोग घर पर बिना उपयोग के पड़े भौतिक स्वर्ण का समीचीन तरीके से उपयोग कर सकते। वर्ष 2015 में शुरू की गई “स्वर्ण मौद्रीकरण योजना” इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसमें अब आरबीआई द्वारा समयानुकूल सुधार किया जाना अपेक्षित परिणाम दे सकता है। बैंकों में स्वर्ण खाते खोलने से स्वर्ण के आयात में कमी आयेगी और लोगों को बेकार पड़े स्वर्ण आभूषणों से आय भी होगी। ऐसा करने से स्वर्ण तस्करी और स्वर्ण के जरिये कालेधन के सृजन पर भी लगाम लगेगा।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)