मोदी सरकार ने नवीन कृषि सुधारों को लागू करने के लिए ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020’ को अधिसूचित किया है। इसके तहत अब किसान बिचौलियों के बिना सीधे अपनी उपज बेच सकेंगे। दूसरे शब्दों में किसानों के लिए अब एक देश एक बाजार की अवधारणा साकार हो गई है।
कृषि प्रधान देश भारत में खेती-किसानी बदहाली का शिकार हुई तो इसका कारण है कि यहां के राजनीतिक दल खेती-किसानी की चिंता तभी करते हैं जब वे विपक्ष में होते हैं। सत्ता हासिल होते ही वे कार्पोरेट घरानों की चकाचौंध में खेती-किसानी को भुला बैठते हैं।
यही कारण है कि आजादी के सत्तर साल तक बहुसंख्यक किसानों को बिजली, पानी, सड़क, बीज, उर्वरक, रसायन, टेलीफोन आदि के लिए संषर्ष करना पड़ा। हर चुनाव के समय नेतागण इन मूलभूत सुविधाओं का ख्वाब दिखाते और चुनाव के बाद अपने चुनावी वायदे को अगले चुनाव तक भुला देते।
इस मामले में भाजपानीत मोदी सरकार अपवाद रही है। मोदी सरकार ने किसानों से जितने वायदे किए थे, उनको पूरा किया। यही कारण है कि आजादी के बाद 2019 का लोकसभा चुनाव ऐसा पहला चुनाव था जिसमें बिजली, पानी, सड़क का मुद्दा नदारद रहा।
मोदी सरकार रिकॉर्ड समय में देश के लाखों गांवों व करोड़ों किसानों तक बिजली, सड़क, ब्रॉडबैंड, नीम कोटेड यूरिया, मृदा कार्ड और किसान सम्मान योजना के तहत नकद राशि पहुंचाने में कामयाब रही। इसी का नतीजा है कि जाति में उलझे ग्रामीण मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी आस्था व्यक्त की।
भारतीय किसान बदहाली में जी लेता था लेकिन आत्महत्या जैसा कठोर कदम कभी नहीं उठाता था। दुर्भाग्यवश उदारीकरण के दौर में जब देश के महानगर तेजी से विकासपथ पर अग्रसर हुए तब देश में किसानों की आत्महत्याओं का अभूतपूर्व सिलसिला शुरू हो गया।
इसका कारण यह रहा कि 1991 में शुरू हुई नई आर्थिक नीतियों में खेती-किसानी की उपेक्षा की गई। दूसरे शब्दों में उदारीकरण-भूमंडलीकरण का रथ महानगरों और राजमार्गों से आगे बढ़कर गांव की पगडंडी की ओर बढ़ा ही नहीं।
लंबे अरसे की उपेक्षा के बाद अब मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र में उदारीकरण का आगाज किया है। गौरतलब है कि कोरोना संकट के चलते दबाव आई खेती-किसानी को उबारने के लिए सरकार ने कृषि और सहायक गतिविधियों हेतु 14 मई को पैकेज का एलान किया था।
इसमें कृषि उपज के रखरखाव, भंडारण, विपणन संबंधी बुनियादी ढांचा बनाने के लिए एक लाख करोड़ रूपये खर्च का प्रावधान है। इसके अलावा मछलीपालन, पशुपालन, हर्बल की खेती आदि को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज घोषित किए गए हैं। इस प्रकार कुल 1.63 लाख करोड़ रूपए खर्च किए जाएंगे।
सबसे अहम सुधार है कृषि क्षेत्र में बाजार अर्थव्यवस्था का आगाज। इसमें आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन, कृषि उपजों के अंतर-राज्यीय व्यापार बाधाओं को दूर कर ई-ट्रेडिंग को बढ़ावा देने, अनुबंध कृषि को वैधानिक रूप देने जैसे उपाय शामिल हैं।
इन प्रगतिशील सुधारों को लागू करने के लिए सरकार ने कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 को अधिसूचित किया है। इसके तहत अब किसान बिचौलियों के बिना सीधे अपनी उपज बेच सकेंगे। दूसरे शब्दों में किसानों के लिए अब एक देश एक बाजार की अवधारणा साकार हो गई है। आवश्यक वस्तु अधिनियम और मंडी कानून में संशोधन से कृषि उत्पादों के भंडारण की सीमा खत्म कर दी गई है।
इसी तरह सरकार ने अनुबंध कृषि संबंधी अध्यादेश जारी किया है जिसके तहत किसानों को प्रसंस्करण इकाइयों, थोक व्यापारियों, बड़ी खुदरा कंपनियों और निर्यातकों के साथ पहले तय कीमतों पर समझौते की छूट होगी। अनुबंध कृषि को वैधानिक रूप देने से अब किसानों की जमीन पर कोई कब्जा नहीं कर पाएगा। खरीदार और विक्रेता के बीच कोई विवाद पैदा होने और विक्रेता (किसान) की जमीन की जब्ती का फैसला भी अवैध होगा।
घरेलू कृषि उत्पादों को ब्रांड बनाने और दुनिया भर के बाजारों में पहुंचाने के लिए चुनिंदा कृषि उत्पादों के लिए क्लस्टर बनाए जाएंगे जैसे उत्तर प्रदेश में आम, बिहार में मखाना, जम्मू-कश्मीर में केसर। किसानों को अपनी उपज बेचने में परेशानी न हो, इसके लिए आपरेशन ग्रीन का दायरा बढ़ाकर सभी फसलों तक कर दिया गया है। इसके तहत अब 50 प्रतिशत सब्सिडी माल ढुलाई में और 50 प्रतिशत सब्सिडी कोल्ड स्टोरेज में भंडारण पर दी जाएगी।
समग्रत: पहली बार कृषि क्षेत्र में उदारीकरण का आगाज हुआ है। यदि इन प्रगतिशील सुधारों को लागू करने में राज्यों का सहयोग मिला तो न सिर्फ एक देश-एक बाजार का सपना साकार होगा बल्कि गांवों की दुनिया बदल जाएगी। सबसे बढ़कर खेती-किसानी कर्जमाफी की “चुनावी बीमारी” से भी मुक्त हो जाएगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)