प्रधानमंत्री जनधन योजना अपने प्रारम्भिक समय से ही वित्तीय समावेशन के लिए एक क्रांतिकारी कदम मानी जा रही है। इस योजना के प्रारम्भ के बाद, एक सप्ताह के अंदर बैंक में खोले गए खातों की संख्या को उपलब्धि के रूप में गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल किया गया था। बैकों की मदद से शून्य बैलेन्स के साथ करोड़ों नागरिकों के बचत खाते विभिन्न बैंकों में खोले गए हैं। इन बचत खातों में से लगभग 67 प्रतिशत बचत खाते ग्रामीण एवं अर्धशहरी केंद्रों पर खोले गए हैं, जिसे मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है।
15 अगस्त 2014 को लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ की घोषणा की थी और बिना समय गवाएं 28 अगस्त 2014 से यह योजना पूरे देश में प्रारम्भ कर दी गई थी। केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय ने देश में अर्थव्यवस्था के क्षेत्र की दशा एवं दिशा बदल दी थी। इस योजना का दूसरा संस्करण अधिक लाभों को जोड़ते हुए वर्ष 2018 में प्रारम्भ किया गया था।
इस दूसरे संस्करण में प्रत्येक परिवार के स्थान पर प्रत्येक उस व्यक्ति को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ने की घोषणा की गई थी जो बैंकिंग सुविधाओं से वंचित थे। इस पहल का नतीजा आज हम सभी के सामने है कि देश आर्थिक विकास के रास्ते पर इतना आगे बढ़ चुका है कि पूरी दुनिया भारत को वैश्विक आर्थिक मोर्चे पर एक चमकता हुआ सितारा मान रही है।
किसी भी देश का आर्थिक विकास उस देश के नागरिकों के वित्तीय सेवाओं से जुड़े होने पर भी निर्भर करता है। जितनी अधिक जनसंख्या वित्तीय सेवाओं से जुड़ी होगी, उस देश की आर्थिक स्थिति उतनी ही मजबूत होगी। लेकिन, आजादी के बाद से भारत में आबादी का एक बहुत बड़ा भाग और समाज का निम्न आय वर्ग बड़ी संख्या में वित्तीय सेवाओं से वंचित रहा है। जबकि गरीबी को कम करने में वित्तीय समावेशन एक प्रमुख प्रवर्तक माना जाता है। वर्ष 2014 में देश के करोड़ों नागरिकों के पास मोबाइल फोन तो था परंतु उनका बैंक में बचत खाता नहीं था।
नागरिक बैंक में जाने से डरते थे। नागरिकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए एक ऐसी योजना की आवश्यकता थी जिससे सभी नागरिक इससे होने वाले लाभ अर्जित कर सकें एवं भारत के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें। अतः नागरिकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री जनधन योजना की शुरुआत की गई थी। इससे हाल के दिनों में सामान्य रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था में एवं विशेष रूप से बैंकिंग सेवाओं में बहुत ही तेज गति से प्रगति हुई है।
प्रधानमंत्री जनधन योजना के माध्यम से आम नागरिकों के बैंकों में बचत खाते खोले गए, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित की गई, धन के प्रेषण की सुविधा, बीमा तथा पेंशन सुविधा भी उपलब्ध कराई गई। इस योजना के अंतर्गत जमाराशि पर ब्याज मिलता है, हालांकि बचत खाते में कोई न्यूनतम राशि रखना आवश्यक नहीं है।
एक लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा भी मिलता है। साथ ही, इस योजना के माध्यम से दो लाख रुपए का जीवन बीमा उस लाभार्थी को उसकी मृत्यु पर सामान्य शर्तों पर मिलता है। सरकारी योजनाओं के माध्यम से दिए जाने वाले लाभ के अंतरण की सुविधा भी इस योजना के अंतर्गत प्राप्त होती है।
भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना ने देश के हर गरीब नागरिक को वित्तीय मुख्य धारा से जोड़ा है। समाज के अंतिम छोर पर बैठे गरीबतम व्यक्तियों को भी इस योजना का लाभ मिला है। आजादी के लगभग 70 वर्षों के बाद भी भारत के 50 प्रतिशत नागरिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ अर्थात बैकों से नहीं जुड़े थे। इस योजना के अंतर्गत 31 मार्च 2023 तक 48.65 करोड़ बचत खाते विभिन्न बैकों में खोले जा चुके हैं। साथ ही, इन खाताधारकों द्वारा 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि इन जमा खातों में जमा की गई है।
प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत खाताधारकों को प्रदान की जाने वाली अन्य सुविधाओं का लाभ भी भारी मात्रा में नागरिकों ने उठाया है। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना से 15.99 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं, इनमें 49 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का जीवन बीमा केवल 436 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है।
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना से 33.78 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं, इनमें 48 प्रतिशत महिला लाभार्थी हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा केवल 20 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है। अटल पेंशन योजना से 5.20 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं। मुद्रा योजना के अंतर्गत 40.83 करोड़ नागरिकों को ऋण प्रदान किया गया है
प्रधानमंत्री जनधन योजना अपने प्रारम्भिक समय से ही वित्तीय समावेशन के लिए एक क्रांतिकारी कदम मानी जा रही है। इस योजना के प्रारम्भ के बाद, एक सप्ताह के अंदर बैंक में खोले गए खातों की संख्या को उपलब्धि के रूप में गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल किया गया था। बैकों की मदद से शून्य बैलेन्स के साथ करोड़ों नागरिकों के बचत खाते विभिन्न बैंकों में खोले गए हैं। इन बचत खातों में से लगभग 67 प्रतिशत बचत खाते ग्रामीण एवं अर्धशहरी केंद्रों पर खोले गए हैं, जिसे मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है।
भारत में बैंकिंग व्यवस्था को आसान बनाने के उद्देश्य से डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाने का कार्य भी सफलतापूर्वक किया गया है। इस योजना के अंतर्गत खोले गए बचत खाताधारकों को रूपे डेबिट कार्ड प्रदान किया गया है। यह रूपे कार्ड उपयोगकर्ता द्वारा समस्त एटीएम, पोस टर्मिनल एवं ई-कामर्स वेबसाइट पर लेनदेन करने की दृष्टि से उपयोग किया जा सकता है। वर्ष 2016 में 15.78 करोड़ बचत खाताधारकों को रूपे कार्ड प्रदान किया गया था एवं अप्रेल 2023 तक यह संख्या बचकर 33.5 करोड़ तक पहुंच गई है।
वर्तमान में देश में बैंकिंग सेवाएं सुगम बनाने के उद्देश्य से 6.55 लाख बैंकिंग मित्र भी अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। उक्त योजनाओं से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि किस प्रकार बैकिंग सेवाओं को नागरिकों के द्वार तक पहुंचा दिया गया है। वित्तीय समावेशन के लिए गांव से लेकर शहर तक गरीब से लेकर मध्यम आय के परिवार के कम से कम एक सदस्य को बैंकिंग सेवा से जोड़ने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था उसे बहुत बड़ी हद्द तक पिछले 8 साल के दौरान प्राप्त कर लिया गया है।
गरीबी कम करने के लिए वित्तीय समावेशन एक प्रमुख कारक के रूप में कार्य कर रहा है। प्रधानमंत्री जनधन योजना को लागू करने के बाद से देश में गरीब वर्ग के बीच बैंकिंग सेवाओं में तेजी से प्रगति हुई है। वित्तीय समावेशन आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन का प्रमुख चालक भी बन गया है। पिछले 8 वर्षों के दौरान बचत खातों की संख्या तीन गुना बढ़ी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच है कि देश का कोई भी व्यक्ति वित्तीय और बैंकिंग सेवाओं से वंचित ना रहे, इसी उद्देश्य से इस योजना को प्रारम्भ किया गया था। वित्तीय समावेशन से वित्तीय साक्षरता और उपभोक्ता संरक्षण बढ़ता है। साथ ही, वित्तीय समावेशन से देश में पूंजी निर्माण की दर में भी वृद्धि होती है।
वित्तीय समावेशन के माध्यम से देश के प्रत्येक परिवार के साथ साथ प्रत्येक नागरिक को इस लायक बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि वह देश की आर्थिक प्रगति में अपने योगदान को सार्थक कर सके। परिवार के कुछ सदस्य नहीं बल्कि परिवार के समस्त सदस्य गरीबी रेखा से बाहर आ जाएं। देश का पूरा समाज एवं समस्त प्रदेश ही आर्थिक रूप से विकसित बन जाएं। देश के समस्त समाजों को बगैर किसी भेदभाव के आगे बढ़ाया जा रहा है।
वित्तीय समावेशन ने आज देश के आर्थिक परिदृश्य को पूरे तौर पर बदल दिया है। यूपीआई के माध्यम से आज ऑनलाइन पैसे का तुरंत भुगतान सम्भव हो सका है एवं अब पैसे बैंक में जमा किए जाते हैं तो वह भी ब्याज के रूप में आय अर्जित करते हैं। पहिले, यह रकम घर पर पड़ी रहती थी एवं अनुत्पादक आस्ति बनी रहती थी।
आज वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में, दुनिया के कई देश, भारत को मिसाल के तौर पर देखने लगे हैं कि किस प्रकार 140 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश ने बैंकों से उन नागरिकों को भी जोड़ा है जो अब तक इन सुविधाओं से वंचित थे। जब तक समावेशी विकास नहीं होगा, तब तक देश का आर्थिक विकास भी गति नहीं पकड़ सकता है। पहले लोग जहां बैंकों में जाने से डरते थे, वहीं अब उन्हें बैंकिंग सुविधाएं बैंक मित्रों के माध्यम से घर बैठे ही पहुंचाई जा रही है।
आज नागरिकों को बैंक जाने की आवश्यकता ही नहीं है, ऑनलाइन बैंकिंग व्यवहार आसानी से सम्पन्न किए जा रहें हैं। कुल मिलाकर भारत में बैंकिंग क्षेत्र में अतुलनीय परिवर्तन आया है, जिससे देश में वित्तीय समावेशन भी बहुत आसान बन पड़ा है।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)