स्वामी जी कहते हैं, ‘घर और उसके परिसर, कमरे, कपड़े, बिस्तर, नाली, आदि को हमेशा स्वच्छ बनाए रखें।, बासी, खराब भोजन न करें; इसके बजाय ताजा और पौष्टिक भोजन लें। कमजोर शरीर में बीमारी की आशंका अधिक होती है। महामारी की अवधि के दौरान, क्रोध से और वासना से दूर रहें – भले ही आप गृहस्थ हों।‘ उन्होंने अफवाहों से घबराने और उनपर ध्यान न देने को कहा!
कोरोनावायरस विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित हो गया है, इस संक्रमण से लगभग 4,720 लोगों की मृत्यु हो गयी और 128,343 से अधिक लोगों में इसकी पुष्टि की गई है। चीन के वुहान प्रान्त से उत्पन्न यह आपदा वास्तविक और आभासी दुनिया के समाचार, रिपोर्ट, गपशप और हर एक के लिए विचार-विमर्श का केंद्र बिंदु बन गया है।
इस प्रकार की चिकित्सकीय आपदा भारत या दुनिया के लिए पूरी तरह से नई नहीं है, इससे पूर्व भी अनेक बीमारियों से दुनिया जूझती और जीतती रही है। हालांकि इसकी कारगर दवाइयाँ विकसित करने में कुछ और महीने लगेंगे।
इस संदर्भ में 1899 के बंगाल प्लेग और स्वामी विवेकानंद की ‘प्लेग मेनिफेस्टो’ को याद करना समीचीन होगा, जो कि हमें मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से समस्याओं से लड़ने की शक्ति और समझ प्रदान करता है। स्वामी विवेकानंद का ‘प्लेग मेनिफेस्टो’, जिसे बंगाली और हिंदी में भी तैयार किया गया था और स्वामी सदानंद और भगिनी निवेदिता की कड़ी मेहनत से जनसंख्या के एक बड़े हिस्से तक पहुँचाया गया था, में स्वामीजी कहते हैं-‘भय से मुक्त रहें क्योंकि भय सबसे बड़ा पाप है। मन को हमेशा प्रसन्न रखो। मृत्यु तो अपरिहार्य है, उससे भय कैसा।’
कायरों को मृत्यु का भय सदैव द्रवित करता है, उन्होंने इस डर को दूर करने का आग्रह किया ”आओ, हम इस झूठे भय को छोड़ दें और भगवान की असीम करुणा पर विश्वास रखें। अपनी कमर कस लें और सेवा कार्य के क्षेत्र में प्रवेश करें। हमें शुद्ध और स्वच्छ जीवन जीना चाहिए। रोग, महामारी का डर, आदि, ईश्वर की कृपा से विलुप्त हो जाएगा।”
स्वामी जी आगे कहते हैं -”घर और उसके परिसर, कमरे, कपड़े, बिस्तर, नाली, आदि को हमेशा स्वच्छ बनाए रखें।, बासी, खराब भोजन न करें; इसके बजाय ताजा और पौष्टिक भोजन लें। कमजोर शरीर में बीमारी की आशंका अधिक होती है। महामारी की अवधि के दौरान, क्रोध से और वासना से दूर रहें – भले ही आप गृहस्थ हों।‘ उन्होंने अफवाहों से घबराने और उनपर ध्यान न देने को कहा!
मार्च, 1899 में कलकत्ता में प्लेग फैल गया था। रामकृष्ण मिशन ने प्लेग से निवारण के लिए एक समिति बनाई जिसमें, भगिनी निवेदिता को सचिव,स्वामी सदानंद को पर्यवेक्षक और स्वामी शिवानंद, नित्यानंद और आत्मानंद को सदस्य बनाया। प्लेग से लड़ने में प्रदान की गई सेवाएं कलकत्ता के इतिहास में यादगार बन गईं। राहत कार्य 31 मार्च को शुरू हुआ, स्वामी सदानंद संगठनात्मक कार्यों में निपुण थें, उन्होंने शम्बाजार, बाघबाजार और अन्य पड़ोसी इलाकों की मलिन बस्तियों की सफाई शुरू की। वे स्वीपर-लड़कों के एक समूह के साथ सफाई कार्य में लग गए।
5 अप्रैल को, भगिनी निवेदिता, जो इस पूरे कार्य का समन्वय कर रही थीं, उन्होंने वित्तीय सहायता के लिए अखबारों के माध्यम से आह्वान किया, भगिनी निवेदिता ने स्वामीजी के साथ प्लेग पर व्याख्यान दिया। 21 अप्रैल को, उन्होंने “द प्लेग एंड स्टूडेंट्स ड्यूटी” पर क्लासिक थिएटर में छात्रों से बात की।
भगिनी निवेदिता ने पूछा, “आप में से कितने लोग स्वयंसेवक बनकर आगे आकर झोपड़ियों और बस्तियों को साफ करने में मदद करेंगे?” उनके इस आह्वान को सुनकर, कई लोग समाज की इस व्यथा के निवारण के लिए प्रवृत्त हुए और लगभग पंद्रह छात्रों ने प्लेग सेवा के काम में खुद को प्रस्तुत किया। इस काम को एक संगठित तरीके से अंजाम दिया गया था, भगिनी निवेदिता ने प्लेग से लड़ने के लिए निवारक उपायों से युक्त मुद्रित हैंडबिलों को वितरित किया।
एक दिन, उन्होंने स्वयंसेवकों की कमी होने पर गलियों की सफाई स्वयं शुरू कर दी। मोहल्ले के नौजवानों ने शर्म महसूस की और झाड़ू उठाकर, कूड़ेदान और रास्ते को साफ करके उनका समर्थन किया।
डॉ राधा गोबिंदा कर, उन दिनों के प्रख्यात चिकित्सकों में से एक थे और भगिनी निवेदिता के काम के चश्मदीद गवाह थें, वे कहते हैं: एक दिन, जब मैं चैत्र के महीने में दोपहर के समय घर लौटा रहा था, उसी समय मरीजों को देखने के पश्चात मैंने एक यूरोपीय महिला को दरवाजे के पास धूल भरी कुर्सी पर बैठे देखा। वह भगिनी निवेदिता थी। वह कुछ जानकारी लेने के लिए यहां आई थीं। डॉ कर उस सुबह बागबाजार की एक झुग्गी में एक प्लेग से पीड़ित बच्चे को देखने के लिए गए थे। भगिनी निवेदिता ने उस बच्चे के बारे में पूछताछ की जो गंभीर हालत में था, वह कुछ ही समय में उस इलाके में पहुंच जाती और डॉक्टर द्वारा बताई गई सावधानियों के बावजूद वह उस बच्चे को अपनी गोद में ले लेती हैं। बच्चे की मां की पहले ही मौत हो चुकी थी।
भगिनी निवेदिता अस्थायी रूप से बच्चे की देखभाल के लिए इस झोपड़ी में रहती हैं । दिन-रात वह संभावित खतरे को नजरअंदाज करते हुए बच्चे को पालने में लगी रहीं। उन्होंने खुद ही घर की दीवारों को भी सफेद किया। उनकी परिचर्या तब भी सुस्त नहीं हुई जब मृत्यु निश्चित थी। दो दिनों के बाद, निवेदिता की गोद में बच्चे की मृत्यु हो गई। अपनी आखिरी सांस लेने से पहले, बच्चे ने निवेदिता को अपनी माँ समझकर दो बार “माँ -माँ” कह कर पुकारा।
प्लेग के काम का विशद विवरण एक लेख में दिया गया है, जिसका शीर्षक “द प्लेग” है जो कि उनकी किताब “स्टडिस फ्राम ए ईस्टर्न होम” में दिया गया है। यह सिर्फ एक उल्लेख था, उनकी दयालु उपस्थिति सभी इलाकों में परिचित थी। अपने पत्रों में उन्होंने अपनी मित्र, मिसेज कूलस्टन को लिखा था कि, “यहाँ बहुत सारा कार्य है, केवल यहाँ रहना ही अपने आप में कार्य है” भगिनी निवेदिता और उनकी टीम ने बीमारी को नियंत्रित करने में सफल होने से पहले लगातार एक महीने तक अपने प्रयासों को जारी रखा।
कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि हमें आज के परिवेश में जहाँ कोरोनावायरस के बारे में भय और भ्रम फैलाए जा रहे हैं, उससे बचना चाहिये और स्वामी विवेकानंद के संदेश और भगिनी निवेदिता के कार्य को ध्यान में रखते हुए सहयोग करना व सावधानियाँ बरतनी चाहिए जो राज्य और भारत सरकार द्वारा जनहित में जारी हैं।
(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)