मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा राष्ट्रपति को धनुर्धारी श्री राम, प्रधानमंत्री को गौतम बुद्ध, मॉरीशस के पूर्व प्रधानमंत्री और वर्तमान रक्षामंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ को श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की मूर्ति भेंट की गई। राष्ट्रपति के समक्ष दो दिन की समिट के प्रमुख अंशो पर आधारित डाक्यूमेंट्री प्रस्तुत की गई, जिसका प्रारंभ गीता के श्लोक – “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनः” से हुआ। यह श्लोक कर्मयोग की प्रेरणा देता है।
जीवन के आर्थिक या भौतिक पहलुओं का महत्व अपनी जगह है। विकास, निवेश, जीवन यापन को आसान बनाने वाले उपक्रम इसी के अंतर्गत आते हैं। इन पर सकारात्मक कार्य करना सरकार की जिम्मेदारी होती है। इसी आधार पर उसका मूल्यांकन भी होता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए राजधानी लखनऊ में दो दिवसीय इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया। यह एक सफल और ऐतिहासिक आयोजन था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने समापन किया। समिट के तीस से ज्यादा सत्र हुए।
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, स्मृति ईरानी, सुरेश प्रभु सहित कई और केंद्रीय मंत्री अलग-अलग सत्रों में शामिल हुए। इसके अलावा मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, आनन्द महेन्द्रा, कुमार मंगलम बिड़ला सहित सैकड़ों शीर्ष उद्योगपति भी शामिल हुए। इन सबका उद्देश्य उत्तर प्रदेश सरकार के निवेश अभियान में सहयोग करना था। इसमें सफलता भी मिली। यही इन्वेस्टर्स समिट का मुख्य उद्देश्य भी था।
लेकिन जीवन में आर्थिक के साथ सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यत्मिक पहलू भी जुड़े होते हैं। सांस्कृतिक और सामाजिक पक्ष को अलग करके नहीं देखा जा सकता। जब सर्वांगीण विकास की बात चलेगी तब केवल भौतिकता या आर्थिक पक्ष एकांगी रूप में शामिल नहीं रहेगा, इसमें सांस्कृतिक मुद्दे भी स्वभाविक रूप में उठेंगे। इतना अवश्य है कि अपने को सेकुलर बताने और वोटबैंक सियासत को तरजीह देने वाली पार्टियों की सरकार में स्थिति अलग होती है। क्योंकि, उन्हें सांस्कृतिक, धार्मिक मसले उठाने में संकोच होता है। उसपर भी यदि हिन्दुओं की आस्था से जुड़े स्थानों की बात हो तो कहना ही क्या, इनकी धर्मनिरपेक्षता तुरन्त खतरे में आ जाती है। किन्तु, जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार होती है, तब सर्वांगीण विकास में ऐसे विषयो का भी उल्लेख होने लगता है। इसमें केवल हिंदुओं के ही नहीं, वरन अन्य पंथों से जुड़े स्थानों तक सुविधा पहुंचाने की चर्चा होती है।
इन्वेस्टर्स समिट में भी सांस्कृतिक पक्ष का समावेश था। इसका उल्लेख केवल प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही नहीं, शीर्ष उद्योगपतियों ने भी किया। राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, गंगा, महाकुंभ, गौ आदि नामों का मुख्य मंच से उल्लेख किया गया। राष्ट्रपति की उपस्थिति में समारोह की संचालिका ने समुद्र-मंथन का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन के अंत में अमृत निकला था, उसी प्रकार इन्वेस्टर्स समिट में हुए विमर्श से विचारों का अमृत निकला है। इसका अर्थ यह हुआ कि इन्वेस्टर्स समिट से निकला अमृत उत्तर प्रदेश की बीमारी को दूर करेगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा राष्ट्रपति को धनुर्धारी श्री राम, प्रधानमंत्री को गौतम बुद्ध, मॉरीशस के पूर्व प्रधानमंत्री और वर्तमान रक्षामंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ को श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की मूर्ति भेंट की गई। राष्ट्रपति के समक्ष दो दिन की समिट के प्रमुख अंशो पर आधारित डाक्यूमेंट्री प्रस्तुत की गई, जिसका प्रारंभ गीता के श्लोक – “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनः” से हुआ। यह श्लोक कर्मयोग की प्रेरणा देता है।
समापन समारोह में योगी आदित्यनाथ ने निवेशकों को उत्तर प्रदेश का अतिथि बताया। इस शब्द का भी भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। अतिथि को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है, ऐसे में उनकी सुरक्षा करना और सुविधा देना स्वभाविक रूप से प्रदेश सरकार का दायित्व हो गया। यह बात स्वयं योगी आदित्यनाथ ने कही, अतः इस पर अमल भी सुनिश्चित है। प्रधानमंत्री ने विकास संबन्धी अनेक कार्यो का ब्यौरा दिया।
देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी ने कहा कि गंगा हमारी माता हैं तथा उन्होंने नमामि गंगे परियोजना पर दस हजार करोड़ रुपये लगाने का का ऐलान किया। गौ मूत्र और गोबर के औषधीय प्रयोग को बढ़ावा देने वाले उद्योग भी लगाए जाने की बात हुई। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सांस्कृतिक के साथ सामाजिक विषयों का भी उल्लेख किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश की पिछली दोनों सरकारों का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इशारों में ही निशाना लगाने से नहीं चूके।
उन्होंने कहा कि जब सरकार जाति मजहब के समीकरण बनाने में लगी रहती है, तब विकास और निवेश का माहौल नहीं रहता। पहले कानून व्यवथा भी ठीक नहीं रहती थी, भ्र्ष्टाचार भी निवेशकों को परेशान करता था। योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की इन कमजोरियों को दूर किया है। राजनीतिक, सामाजिक व्यवस्था सब पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। राजनीतिक संवाद के साथ सरकार की कार्यशैली भी बदल गई है। जेटली ने भी धार्मिक पर्यटन का उल्लेख करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में इसकी अपार संभावना है।
राज्यपाल राम नाईक ने महत्वपूर्ण सामाजिक समस्या का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि वह मुम्बई के हैं। वहाँ आधी आबादी स्लम में रहती है। इसमें उत्तर प्रदेश की भी बड़ी आबादी है। यदि उत्तर प्रदेश में रोजगार मिलने लगे, तो लोगों को मुम्बई जैसे महानगरों में जाने और झुग्गी बस्तियों में रहने की आवश्यकता नहीं रहेगी। कुल मिलाकर इन्वेस्टर समिट न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी उत्तर प्रदेश के हितों को बल देने वाला आयोजन सिद्ध हुआ है, जिसके परिणाम धरातल पर समय के साथ सामने आएंगे।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)