कोरोना महामारी से निपटने के लिये सरकार और रिजर्व बैंक ने कुछ उपाये किये हैं। आगे आवश्यकता को देखते हुए और उपाय भी किए जा सकते हैं। मौजूदा परिप्रेक्ष्य में एनपीए के नियमों में ढील देने और आईबीसी की प्रक्रिया को टालने की जरुरत है। यह एक मुश्किल वक्त है और ऐसे वक्त में जीवन और आजीविका दोनों को बचाने की आवश्यकता है। सरकार की कोशिश भी इसी दिशा में दिख रही है।
कारोबारियों को कोरोना महामारी से उत्पन्न मुश्किलों से उबारने के लिये रिजर्व बैंक ने 5 मई 2021 को कई उपायों की घोषणा की, जिनमें कर्ज पुनगर्ठन के विकल्प को फिर से कारोबारियों के समक्ष रखना सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस योजना के तहत कंपनियों की वित्तीय देनदारियों के भुगतान की शर्तों को आसान बनाया जायेगा। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार लगभग 3,400 कंपनियां कर्ज पुनगर्ठन योजना का लाभ लेने के लिए पात्र होंगी।
इन कंपनियों ने बैंकों से लगभग 50,000 करोड़ रुपये का कर्ज ले रखा है। हालांकि, कर्ज पुनगर्ठन का विकल्प चुनने वाली कंपनियों की तादाद काफी कम रह सकती है, क्योंकि अभी तक महामारी का असर कुछ खास क्षेत्रों तक ही सीमित है, लेकिन छोटे कारोबारों को नुकसान होने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। चूँकि, छोटे कारोबारी अभी तक महामारी की पहली लहर से उबर नहीं पाये हैं। ऐसे में दूसरी लहर उन्हें ज्यादा तकलीफ दे सकती है।
क्रिसिल मझोले आकार की करीब 6,800 कंपनियों को रेटिंग देने का काम करती है। क्रिसिल के मुताबिक खुदरा, आतिथ्य, वाहन डीलरशिप, पर्यटन, रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनियों आदि पर महामारी का सबसे अधिक असर पड़ेगा। दूसरी तरफ रसायन, दवा, डेरी, सूचना व प्रौद्योगिकी और एफएमसीजी क्षेत्र की कंपनियों पर महामार्री का कोई खास असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि इन क्षेत्रों की कंपनियों के लिए मांग में कमी नहीं आई है, इसलिए इन क्षेत्रों की कंपनियां कर्ज पुनगर्ठन के विकल्प का चुनाव नहीं करेंगी।
व्यक्तिगत कर्जधारक, छोटे कारोबारी और एमएसएमई, जिन्होंने 25 करोड़ रुपये तक के कर्ज ले रखे हैं, पुनर्गठन के लिए पात्र होंगे। कर्जदार अपने कर्ज को 2 सालों के लिए पुनर्गठित करा सकते हैं। यह सुविधा 30 सितंबर 2021 तक उपलब्ध होगी और बैंक कर्ज पुनर्गठन का आवेदन मिलने के 90 दिनों के अंदर कर्ज का पुनर्गठन कर देंगे।
हालाँकि, यह लाभ उन्हीं कर्जधारकों या इकाइयों को मिलेगा, जिनका ऋण खाता 31 मार्च 2021 तक स्टैण्डर्ड रहा हो। 89 दिनों तक जिन कर्जदारों ने अपने बकाया का भुगतान बैंक को नहीं किया है वे भी कर्ज पुनर्गठन का लाभ ले सकते हैं। इसका यह अर्थ हुआ कि अगर किसी खाते में एक या दो महीने तक कर्ज का भुगतान नहीं किया गया है तो वे भी कर्ज पुनर्गठन सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।
रिजर्व बैंक के अनुसार वर्ष 2020 में दो साल से कम अवधि के कर्ज पुनर्गठन की सुविधा लेने वाले व्यक्तिगत कर्जदार और छोटे कारोबारी अपने पुनर्भुगतान की अवधि को दो साल तक के लिए बढ़ाने का अनुरोध कर सकते हैं।
बैंकरों के अनुसार कर्ज पुनर्गठन में समस्या यह है कि बैंकों को कर्ज की 10 प्रतिशत रकम प्रावधान के तौर पर अलग रखनी होगी। आम तौर पर कर्ज पुनर्गठन के समय बैंकों को 15 से 20 प्रतिशत रकम अलग रखनी होती है, लेकिन केंद्रीय बैंक द्वारा पिछले साल घोषित एकबारगी कर्ज पुनर्गठन योजना के तहत बैंकों को 10 प्रतिशत रकम अलग रखने के लिए कहा गया था। बैंकरों का कहना है कि 10 प्रतिशत रकम अलग रखने के कारण कर्ज पुनर्गठन से बैंकों को पूँजी की किल्लत का सामना करना पड़ता है।
कोरोना महामारी के दौर में कारोबारियों को राहत देने के लिये ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) प्रक्रिया को एक बार फिर निलंबित करने की मांग की जा रही है और उम्मीद है कि मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए सरकार इस मांग को मान लेगी, क्योंकि ऐसा करने से कंपनियों को महामारी से निपटने के लिए अपनी वित्तीय स्थिति को दुरुस्त करने का मौका मिलेगा।
लिहाजा, आईबीसी 2016 के तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में ले जाने के लिए वित्तीय संस्थानों एवं कारोबारियों को जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। यदि आईबीसी को अप्रैल 2021 से अगले 3 या 6 महीने के लिए निलंबित किया जाता है तो बड़े कारोबारियों को बड़ी राहत मिलेगी।
सरकार ने मार्च 2020 में आईबीसी को मार्च 2021 तक के लिए निलंबित कर दिया था, ताकि कंपनियों को लॉकडाउन के कारण पैदा हुई चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सके। इस साल अप्रैल में आईबीसी के कामकाज को फिर से शुरू किया गया था, लेकिन अभी बैंक, कंपनियों को एनसीएलटी ले जाने में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। भारतीय ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड (आईबीबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2020 में दिवालिया मामलों की संख्या 1,717 थी, जो सितंबर 2020 के मुकाबले लगभग 12 प्रतिशत कम है।
महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहे छोटे उद्यमों ने वित्त मंत्री से गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के वर्गीकरण के मानकों में बदलाव लाने और लोहा एवं स्टील जैसे प्रमुख कच्चे माल पर आयात शुल्क को तार्किक बनाने का आग्रह किया है। औद्योगिक संगठनों के अनुसार मौजूदा एनपीए वर्गीकरण के नियम सामान्य स्थिति के लिये हैं। महामारी में इसे आसान बनाया जाना चाहिए, क्योंकि राज्य स्तर पर लॉकडाउन लगाये जाने के कारण कारोबारियों का भुगतान चक्र बिगड़ गया है। औद्योगिक संगठनों के मुताबिक बैंकिंग नियमों में लचीलापन होना चाहिए, ताकि परिस्थिति के अनुसार इनमें सकारात्मक बदलाव लाया जाये।
वाणिज्यिक बैंकों ने भी रिजर्व बैंक से एमएसएमई के कर्ज को एनपीए की श्रेणी में डालने के नियम को आसान बनाने का अनुरोध किया है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर पर काबू पाने के लिये राज्यों द्वारा लगाये गये लॉकडाउन से इस क्षेत्र पर दबाव बढ़ गया है। बैंकर्स ने नियामक से एमएसएमई क्षेत्र में कर्ज को एनपीए मानने के लिए मौजूदा 90 दिन की अवधि को बढ़ाकर 180 दिन करने का अनुरोध किया है। नियमों में दो साल के लिए या स्थिति में सुधार आने तक राहत दिये जाने की दरकार है।
बेसल-3 के दिशानिर्देशों के अनुसार भी परिस्थिति के अनुसार एनपीए के नियमों को आसान बनाया जा सकता है। छोटे कारोबारी यह भी चाहते हैं कि लोहा, स्टील, तांबा, एल्युमीनियम और पॉलिमर जैसे कच्च्चे माल पर आयात शुल्क को तार्किक बनाया जाये, क्योंकि घरेलू उत्पादों की कीमत विगत 6 महीनों से बढ़ रही है।
रिजर्व बैंक लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) के लिए हर महीने एक स्पेशल लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन (एसएलटीआरओ) के तहत 10,000 करोड़ रुपये की नीलामी करेगा। दस हजार करोड़ रुपये की पहली नीलामी 17 मई को होगी और बची हुई राशि की नीलामी अगले महीने 15 जून को की जाएगी। एसएलटीआरओ 14 अक्टूबर तक या बची हुई राशि के पूरी तरह से इस्तेमाल होने तक बरकरार रहेगा। यह 3 सालों के लिए वैध होगा। सभी एसएफबी इस योजना में हिस्सा लेने के लिए पात्र होंगे।
इस योजना की मदद से महामारी के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकेगा। हालांकि, एसएफबी को यह सुनिश्चित करना होगा कि केंद्रीय बैंक से उधार ली जाने वाली रकम का इस्तेमाल महामारी से प्रभावित हुए असंगठित क्षेत्र के लिए किया जाये। इस उधारी का इस्तेमाल 10 लाख रुपये तक के ऋण देने के लिए किया जा सकेगा।
रिजर्व बैंक ने 5 मई को 50,000 करोड़ रुपये के कोरोना महामारी पैकेज की घोषणा की है, जिसका मकसद टीका बनाने वाली कंपनियों, चिकित्सा उपकरण की आपूर्ति करने वालों, अस्पतालों तथा बीमारी का इलाज करा रहे रोगियों को रकम उपलब्ध कराना है। बैंकों द्वारा 50,000 करोड़ रुपये के आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा ऋण 31 मार्च, 2022 तक दिए जाएंगे, जिन्हें 3 सालों में वापस किया जा सकता है।
इन्हें प्राथमिक क्षेत्र के ऋण की श्रेणी में रखा जाएगा। प्राथमिक क्षेत्र के ऋण के लिए बैंकों को नकद आरक्षी अनुपात या सांविधिक तरलता अनुपात बरकरार रखने की जरूरत नहीं होती है और यह कर्ज रियायती दर पर उपलब्ध होता है।
बैंक इसके लिए रेपो दर पर पैसे जुटा सकते हैं। इसके तहत टीका विनिर्माताओं, टीका और प्राथमिकता वाले चिकित्सा उपरकणाों के आयातकों व आपूर्तिकर्ताओं, अस्पतालों, डिस्पेंसरियों, पैथोलॉजी लैब, ऑक्सीजन एवं वेंटिलेटर विनिर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं तथा कोविड की दवाओं के आयातकों और लॉजिस्टिक फर्मों एवं मरीजों को उपचार के लिए ऋण दिए जा सकते हैं। बैंक ये ऋण सीधे या मध्यस्थ के जरिये दे सकते हैं और इसके लिए उन्हें एक कोविड ऋण खाता खोलना होगा।
रिजर्व बैंक ने कहा कि ऋणदाता यानी बैंक कोविड ऋण खाते के अधिशेष के अनुपात में अपनी अधिशेष राशि केंद्रीय बैंक के पास रेपो दर से 25 आधार अंक कम पर यानी 3.75 प्रतिशत पर जमा कर सकते हैं। फिलहाल, बैंक अपनी अतिरिक्त राशि 3.35 प्रतिशत की रिवर्स रेपो दर पर केंद्रीय बैंक में जमा करते हैं।
रिजर्व बैंक द्वारा दी जाने वाली 50,000 करोड़ रुपये की यह राशि देश के कुल 6 लाख करोड़ रुपये के स्वास्थ्य व्यय का लगभग 9 प्रतिशत है। इस प्रत्यक्ष सहायता से स्वास्थ्य क्षेत्र में तकरीबन 80,000 करोड़ रुपये की मांग पैदा होने की उम्मीद है और इससे जैव रसायन, रबड़, प्लास्टिक आदि क्षेत्रों को भी लाभ मिलेगा।
पिछले साल महामारी ने महानगरों और छोटे शहरों के जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया था। मगर ग्रामीण भारत बहुत हद तक इसके असर से बचा रहा था, जिससे उपभोक्ता वस्तु बनाने और बेचने वाली कंपनियों को सहारा मिला था, लेकिन महामारी की दूसरी लहर गांवों तक भी पहुँच गयी है, जिससे ग्रामीण इलाकों में खर्च और बचत के प्रति ग्रामीणों का नजरिया बदल गया है।
गांवों के उपभोक्ता बेजा खर्च करने से बच रहे हैं और स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थिति के लिए पैसा बचा रहे हैं। राज्यों में लॉकडाउन लगाने की वजह से ट्रैक्टर, दोपहिया वाहन और उपभोक्ता वस्तुओं व उपकरणों की बिक्री में भी कमी देखी जा रही है।
कोरोना महामारी से निपटने के लिये सरकार और रिजर्व बैंक ने कुछ उपाये किये हैं। आगे आवश्यकता को देखते हुए और उपाय भी किए जा सकते हैं। मौजूदा परिप्रेक्ष्य में एनपीए के नियमों में ढील देने और आईबीसी की प्रक्रिया को टालने की जरुरत है। यह एक मुश्किल वक्त है और ऐसे वक्त में जीवन और आजीविका दोनों को बचाने की आवश्यकता है। सरकार की कोशिश भी इसी दिशा में दिख रही है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)