नवंबर महीने में कच्चे माल की लागत में कमी देखी गई है और इससे थोक और खुदरा महंगाई दोनों कम रह सकती हैं। सब्जियों की कीमत में भी कमी आई है। समग्र रूप से वर्ष 2023 में महंगाई के नियंत्रित रहने की संभावना बढ़ी है।
महंगाई पर लगाम लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने मई 2022 के बाद रेपो दर में 2.25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है, जिससे यह 6.25 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई। हालाँकि, केंद्रीय बैंक द्वारा उठाये गए समीचीन कदमों की वजह से नवंबर महीने में उपभोक्ता मूल्य पर आधारित खुदरा महंगाई दर (सीपीआई) घटकर 5.88 प्रतिशत रह गई। ग्यारह महीनों में खुदरा महंगाई का यह सबसे निचला स्तर है। साथ ही, यह रिजर्व बैंक द्वारा तय महंगाई दर की ऊपरी सीमा 6.00 प्रतिशत से नीचे है।
नवंबर महीने से पहले अक्तूबर महीने में खुदरा महंगाई दर 6.77 प्रतिशत, सितंबर महीने में 7.41 प्रतिशत, अगस्त महीने में 7.00 प्रतिशत और जुलाई महीने में 6.71 प्रतिशत रही थी। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर भी नवंबर महीने में घटकर 5.85 प्रतिशत रह गई, जो 21 महीनों का सबसे निचला स्तर है। उल्लेखनीय है कि मई महीने में यह 15.88 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी।
खुदरा और थोक महंगाई में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज होने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि नए वर्ष में महंगाई को लेकर रिजर्व बैंक नरम रुख अपना सकता है, क्योंकि थोक महंगाई में कमी आने से खुदरा महंगाई के कम होने की संभावना बढ़ जाती है। थोक महंगाई में कमी तभी आती है, जब इनपुट लागत या कच्चे माल की कीमत में कमी आती है।
नवंबर महीने में कच्चे माल की लागत में कमी देखी गई है और इससे थोक और खुदरा महंगाई दोनों कम रह सकती हैं। सब्जियों की कीमत में भी कमी आई है। समग्र रूप से वर्ष 2023 में महंगाई के नियंत्रित रहने की संभावना बढ़ी है।
चूँकि, महंगाई से सीधे तौर पर आमजन, कारोबारी और विकास दर प्रभावित होते हैं। इसलिए, इसपर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक विगत साल निरंतर रेपो दर में इजाफा कर रहा था। इसलिए माना जा रहा है कि महंगाई के तेवर में थोड़ी नरमी आने के बाद केंद्रीय बैंक अब मौद्रिक नीति के मामले में नरम रुख अपना सकता है।
रेपो दर में हालिया वृद्धि से बैंकों की पूँजी लागत बढ़ गई है, जिसकी भरपाई के लिए उन्होंने ऋण दर में बढ़े हुए रेपो दर के अनुपात में वृद्धि की है, ताकि उनके मुनाफे में वृद्धि हो और वे बढ़ी हुई जमा लागत की भरपाई मुनाफ़े से कर सकें।
फिलवक्त, रेपो दर में उल्लेखनीय वृद्धि होने की वजह से बैंक छोटे निवेशकों से जमा लेने की तरफ ध्यान दे रहे हैं। इसी वजह से बैंक अपने सामर्थ्य के अनुसार जमा दर में इजाफा कर रहे हैं, ताकि उनका जमा आधार व्यापक हो और वे जरुरतमंदों, कारोबारियों और आमजन की उधारी जरूरतों को पूरा कर सकें।
बैंक आकर्षक ब्याज दर पर बांड के जरिये भी पूंजी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने हाल ही में 10 वर्षीय इन्फ्रास्ट्रक्चर बांड के पहले निर्गम के जरिये 10,000 करोड़ रूपये जुटाए हैं। दूसरे निजी और सरकारी बैंक भी बांड से पूँजी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। बैंक अपने उच्च गुणवत्ता वाली नकद संपत्ति का इस्तेमाल भी ऋण की जरूरतों को पूरा करने के लिए कर रहे हैं।
जमा को आकर्षित करने के बैंकों के प्रयास की वजह से बैंक जमा आधार में हाल में वृद्धि भी हुई है। रिजर्व बैंक के वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (एफएसआर) रिपोर्ट के अनुसार 16 दिसंबर को समाप्त पखवाड़े में जमा में वृद्धि की दर पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 9.4 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि पिछले पखवाड़े की तुलना में यह 9.9 प्रतिशत बढ़ी है।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 16 दिसंबर को समाप्त पखवाड़े में बैंकिंग व्यवस्था में समग्र जमा 173.53 लाख करोड़ रहा है, जो इसके पहले के पखवाड़े में 175.24 लाख करोड़ रुपये रहा था। हालाँकि, कर्ज की मांग में तेजी बनी हुई होने के कारण बैंकों के लिए जमा में वृद्धि करना अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। सोलह दिसंबर को समाप्त पखवाड़े में बैंकिंग व्यवस्था से कर्ज की मांग 17.4 प्रतिशत बढ़ी है।
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार 18 नवंबर को समाप्त पखवाड़े में भारतीय बैंकिंग प्रणाली में अधिशेष (आउटस्टैंडिंग) ऋण 133.29 लाख करोड़ रुपया था, जबकि पिछले साल 19 नवंबर को समाप्त हुए पखवाड़े में यह 113.96 लाख करोड़ रुपया था। इसतरह, 1 साल के अंदर ऋण वितरण में 16.96 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
पड़ताल से साफ़ है कि वर्ष 2023 में रिजर्व बैंक रेपो दर में वृद्धि करने से परहेज कर सकता है, क्योंकि खुदरा और थोक महंगाई में नवंबर महीने में उल्लेखनीय कमी आई है और आगामी महीनों में भी इसके नियंत्रण में रहने के आसार हैं।
सस्ती दर पर पूँजी नहीं मिलने की वजह से बैंक ऋण दर में इजाफा करने पर मजबूर हुए हैं। फिर भी, त्योहारी मौसम होने और कारोबारियों की सुस्ती से उबरने की जद्दोजहद की वजह से कर्ज के महंगे होने के बावजूद उधारी के उठाव में तेजी बनी हुई है, ऐसे में वर्ष 2023 में विकास दर की गति को बढ़ाने, अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाये रखने और बैंकों की सेहत को सेहतमंद रखने के लिए केंद्रीय बैंक रेपो दर बढ़ाने से परहेज कर सकता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)