भारत अब ऊर्जा क्षेत्र में इस दृष्टि से आत्मनिर्भर हो चुका है कि देश में ऊर्जा की कुल आवश्यकता के 99.6 प्रतिशत भाग की उपलब्धता होने लगी है, जो वर्ष 2012-13 में 91.3 प्रतिशत ही हो पाती थी। वर्ष 2013-14 से प्रतिवर्ष ऊर्जा की कुल आवश्यकता एवं ऊर्जा की उपलब्धता के बीच का अंतर लगातार कम होता चला गया है, जो वर्ष 2012-13 के 8.7 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2020-21 (अप्रेल-अगस्त) में 0.4 प्रतिशत रह गया है।
अभी हाल ही में देश में ऊर्जा के उत्पादन से सबंधित जारी किए गए आँकड़ो से यह तथ्य उभर कर आया है कि भारत में ऊर्जा के कुल उत्पादन में स्वच्छ ऊर्जा का योगदान वित्तीय वर्ष 2020-21 के अगस्त माह तक 30 प्रतिशत हो गया है जो वित्तीय वर्ष 2019-20 के अंत में 24.9 प्रतिशत था।
केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई नीतियों को चलते देश के ऊर्जा उत्पादन में पारम्परिक ऊर्जा का योगदान लगातार कम होता जा रहा है। पारम्परिक ऊर्जा को जीवाश्म ऊर्जा भी कहते है एवं इसके निर्माण में तेल, गैस और कोयला आदि का उपयोग होता है। वहीं स्वच्छ ऊर्जा में सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा भी शामिल है।
दूसरी, एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के अनुसार भारत अब ऊर्जा क्षेत्र में इस दृष्टि से आत्मनिर्भर हो चुका है कि देश में ऊर्जा की कुल आवश्यकता के 99.6 प्रतिशत भाग की उपलब्धता होने लगी है, जो वर्ष 2012-13 में 91.3 प्रतिशत ही हो पाती थी। वर्ष 2013-14 से प्रतिवर्ष ऊर्जा की कुल आवश्यकता एवं ऊर्जा की उपलब्धता के बीच का अंतर लगातार कम होता चला गया है, जो वर्ष 2012-13 के 8.7 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2020-21 (अप्रेल-अगस्त) में 0.4 प्रतिशत रह गया है।
तीसरी, एक और अच्छी जानकारी यह उभर कर आई है कि माह सितम्बर 2020 में देश में ऊर्जा की माँग माह सितम्बर 2019 की तुलना में 3 प्रतिशत बढ़ गई है। इससे भी यह झलकता है कि न केवल ऊर्जा की माँग में वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है बल्कि ऊर्जा की उपलब्धता में भी सुधार दिख रहा है।
अन्तर्राष्ट्रीय ऊर्जा संस्थान द्वारा भी अपने एक समीक्षा प्रतिवेदन में बताया गया है कि भारत में 95 प्रतिशत लोगों के घरों में बिजली मुहैया कराई जा चुकी है और 98 प्रतिशत परिवारों की, खाना पकाने के लिए, स्वच्छ ईंधन तक पहुँच बन गई है। साथ ही, उक्त समीक्षा प्रतिवेदन में यह भी बताया गया है कि ऊर्जा के क्षेत्र में निजी निवेश की मात्रा भी बढ़ी है, जिससे भारत में ऊर्जा के क्षेत्र की दक्षता में सुधार हुआ है। उसकी वजह से ऊर्जा की क़ीमतों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है एवं ऊर्जा की क़ीमतें सस्ती हुई है।सामान्य लोगों की ऊर्जा तक पहुँच बढ़ी है।
ऊर्जा की दक्षता बढ़ने के चलते ऊर्जा की माँग में 15 प्रतिशत की कमी आई है। ऊर्जा की माँग में कमी का मतलब 30 करोड़ कार्बन के उत्सर्जन को टाला जा सका है। अन्तर्राष्ट्रीय ऊर्जा संस्थान द्वारा किया गया उक्त मूल्यांकन एक स्वतंत्र मूल्यांकन है, अतः इस समीक्षा प्रतिवेदन का अपने आप में बहुत बड़ा महत्व है।
भारत सरकार ने ऊर्जा के क्षेत्र के भविष्य को सुरक्षित, सस्ता और व्यावहारिक बनाने के उद्देश्य से कई नीतिगत निर्णय लिए हैं। साथ ही, देश के परिवहन क्षेत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों को उतारने की जो पहल की जा रही है, उससे स्वच्छ परिवहन की शुरुआत होगी। हाल ही के समय में भारत सरकार ने ऊर्जा भंडारण निदान, स्वच्छ ईंधन और विपणन क्षेत्र को उदार बनाने की दिशा में ज्यादा ध्यान दिया है।
“भारत 2020 ऊर्जा नीति समीक्षा रिपोर्ट” के अनुसार, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना और शहरी गैस वितरण नेटवर्क के जरिये रसोई घरों तक पाइप से सीधे गैस पहुंचाने जैसे कदमों से भारत में 28 करोड़ परिवार इसके दायरे में आ गये हैं।
भारत ऊर्जा के क्षेत्र में बदलाव की दिशा में काफी मेहनत से काम कर रहा है। केंद्र सरकार ने बिजली और खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन तक पहुंच सुनिश्चित करने को अपनी शीर्ष प्राथमिकता में रखा हुआ है और उसके इस दिशा में लगातार प्रयासों से इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति दिख भी रही है।
देश में नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद से दो बड़ी क्रांतियाँ ऊर्जा के क्षेत्र में हुई हैं। पहले तो LED सम्बंधी क्रांति भारत में हुई है। दुनिया के कई देश आज भारत आकर देख रहे हैं और यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत ने किस प्रकार इतना बड़ा कार्य आसानी से कर लिया है। दूसरी क्रांति LPG सम्बंधी हुई है। भारत ने LPG को गाँव गाँव एवं घर घर तक पहुँचा दिया है। अब भारत के गावों में गृहणीयाँ गैस के चूल्हे पर खाना पकाती है, लकड़ी नहीं जलातीं।
अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत बहुत कम है, यह विश्व के औसत का एक तिहाई ही है। अतः भारत सरकार लगातार यह कोशिश कर रही है कि देश में ऊर्जा की कमी को ख़त्म कर स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धतता को बढ़ाया जाय।
एक अच्छी बात जो हाल ही के समय में देखी जा रही है वो यह है कि विशेष रूप से ऊर्जा के क्षेत्र में केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों के बीच अच्छा तालमेल हो रहा है। जिसके कारण ग्रामीण स्तर पर बिजली पहुचाने में केंद्र ने सफलता हासिल की है। यह एक सराहनीय उपलब्धि है।
इसके साथ ही, तकनीकी क्षेत्र में हुई क्रांति के चलते ऊर्जा की दक्षता में बहुत सुधार हुआ है। सबसे पहले तो लोग सामान्य बल्ब से CFL में स्थानांतरित हुए और फिर LED के उपयोग पर आ गए हैं। इससे देश में ऊर्जा की खपत बहुत कम हो गई है।
देश के कई घरों में तो ऊर्जा का उपयोग लगभग आधा हो गया है। इससे वितरण कम्पनियों पर भी दबाव कम हुआ है। केंद्र का लगातार यह प्रयास है कि गाँव के प्रत्येक घर में सस्ती दरों पर बिजली उपलब्ध हो सके।
सौर ऊर्जा में भी हमारे देश की क्षमता बढ़ाए जाने के लगातार प्रयास केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे हैं। इससे देश में ही इसके अवयवों का निर्माण किया जाएगा एवं मेक इन इंडिया के साथ-साथ रोज़गार के भी कई नए अवसर निर्मित होंगे। सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के मामले में भारत में उल्लेखनीय प्रगति हो रही है। नवी ऊर्जा के भंडारण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से देश में बैटरी के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि ग्रिड का विस्तार किया जा सके।
पूरी दुनिया में बिजली का उपयोग भी, ऊर्जा के रूप में, बढ़ता जा रहा है। पहले डीज़ल, पेट्रोल एवं गैस का उपयोग सबसे अधिक होता रहा है। परंतु, अब ऊर्जा सम्बंधी जो भी नीति आगे बने वह बिजली को केंद्र में रखकर बनाई जानी चाहिए। अब समय आ गया है कि भारत बैटरी स्टोरेज के क्षेत्र में भी दुनिया को रास्ता दिखाए जिस प्रकार सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत दुनिया को राह दिखा रहा है।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। आर्थिक विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)