इतिहास गवाह है कि जब-जब चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेताओं ने नरेंद्र मोदी पर निजी हमला किया, जनता ने अपने मताधिकार के माध्यम से उसका मुंह तोड़ जवाब दिया है और चुनाव परिणामों में भाजपा को बड़ी जीत मिली है।
कांग्रेस के अध्यक्ष मल्ल्किार्जुन खड़गे ने पिछले दिनों कर्नाटक विधानसभा की चुनावी सभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक टिप्पणी की। यह टिप्पणी व्यक्तिगत आक्षेप से भरपूर थी। खड़गे ने कहा कि मोदी जहरीले सांप की तरह हैं। हालांकि भारी विरोध के कारण बयान के कुछ घंटों बाद ही खड़गे ने माहौल को भांपते हुए यू-टर्न ले लिया और अपने ही बयान पर खेद प्रकट करके वही घिसा पिटा बहाना बनाया कि इरादा ऐसा नहीं था वगैरह-वगैरह।
तीखी प्रतिक्रियाओं के क्रम में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि कांग्रेस आदतन प्रधानमंत्री को अपमानित करती है। पहले राहुल गांधी ने पिछड़े समाज के लिए अपमानजनक शब्द बोले। अब मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री के लिए जहरीले सांप जैसी आपत्तिजनक एवं अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि नफरत बाहर निकल रही है। साथ ही उन्होंने खड़गे से माफी मांगने की मांग भी की। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि जैसे-जैसे कांग्रेस की हताशा बढ़ रही है, मोदी के लिए उसके झूठ और अपशब्द भी बढ़ रहे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम पर गौर किया जाए तो हम पाएंगे कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। खड़गे ने मोदी के प्रति जिस अभद्र भाषा का प्रयोग किया वह किसी आवेश में नहीं निकली है। यह तो कांग्रेस की अप-संस्कृति ही है जिसके संवाहक खड़गे भी बने हुए हैं। देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ निजी हमले करना, आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करना कांग्रेस की परंपरा रही है, जो कहीं न कहीं कांग्रेस के कु-संस्कार के अलावा उसकी हताशा, कुंठा, विवशता और खीझ को भी साफ-साफ दर्शाता है।
असल में बीते 9 वर्षों से कांग्रेस मोदी सरकार को घेरने के लिए किसी ठोस मुद्दे की तलाश में रही है लेकिन उसे ऐसा कोई भी वास्तविक मुद्दा नहीं मिल पा रहा जिसपर वो सरकार को घेर सके। भाजपा सरकार के कार्यकाल में देश में कोई घोटाला ही सामने नहीं आया तो भला कांग्रेस किसे कोसे और क्यों कोसे। ना देश में वर्तमान में भ्रष्टाचार की सूचनाएं हैं, ना ही देश में कहीं बम फट रहे हैं या आतंकी हमले हो रहे हैं। देश पूरी तरह से सुरक्षित है। ऐसे में एक अदद मुद्दे को तरस रही बेचारी कांग्रेस को कुछ नहीं मिल रहा है, तो वह प्रधानमंत्री मोदी को अनाप-शनाप बोलकर मन को समझाने का काम कर रही है।
हालांकि इससे मोदी को ना पहले कोई फर्क पड़ा था, ना अब पड़ने वाला है। इतिहास गवाह है कि जब-जब चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेताओं ने नरेंद्र मोदी पर निजी हमला किया, जनता ने अपने मताधिकार के माध्यम से उसका मुंह तोड़ जवाब दिया है और चुनाव परिणामों में भाजपा को बड़ी जीत मिली है। वर्षों पहले सोनिया गांधी ने एक रैली में नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ बताया था। तब भाजपा को वहां बंपर जीत मिली।
2014 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने मोदी को चायवाला कहकर मजाक उड़ाया। इसके बाद बीजेपी ने चाय पर चर्चा कार्यक्रम शुरू किए। नतीजा कांग्रेस को करारी हार मिली। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव के समय राहुल गांधी ने चौकीदार चोर है नारा दिया। इसका पलटवार करते हुए भाजपा ने मैं भी चौकीदार अभियान चलाया, जिसे व्यापक जन समर्थन मिला और भाजपा फिर सत्ता में आई। पिछले गुजरात चुनाव में भी खड़गे ने मोदी को रावण बताया। और गुजरात में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर क्या कारण है कि इतनी पुरानी पार्टी बहुत सतही स्तर पर आकर देश के प्रधानमंत्री पर निजी आक्षेप करने लगती है। इसके पीछे राजनीतिक प्रतिद्वंदिता कम और हीनता की ग्रंथि का भाव अधिक मालूम होता है। बीते एक दशक में राहुल गांधी को जितना प्रोजेक्ट किया गया, कांग्रेस को उतनी ही बार मुंह की खानी पड़ी है। राहुल गांधी की उम्र 50 से अधिक हो गई है लेकिन उनमें आज भी राजनीति की बुनियादी समझ तक नहीं आई है, ना ही मुद्दों की पहचान ही उन्हें है।
यह भी क्या कम आश्चर्य है कि बीते वर्षों में राहुल गांधी ने राफेल खरीदी को जबरिया मुद्दा बनाने की कोशिश की जबकि उसमें कहीं कोई गड़बड़ी नहीं थी। लेकिन इसे मुद्दा बनाते हुए राहुल यह यह भूल गए कि बोफोर्स घोटाले में उनका पूरा परिवार बदनामी झेल चुका है। नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल-सोनिया जमानत पर हैं और खुद को पाक साफ बताते नहीं थकते।
खुद के घोटालों से होने वाली फजीहत से ध्यान भटकाने के लिए ये लोग जब-तब मोदी को अनगर्ल बोलना शुरू कर देते हैं और ऐसा करके उन्हें लगता है कि उन्होंने खुद की गलतियों पर पर्दा डाल दिया है और जनता की आंखों में धूल झोंक दी है। लेकिन हर बार जब जनादेश का तगड़ा झटका कांग्रेस को मिलता है, उससे सब बयां हो जाता है कि देश के मतदाता के मन में क्या चल रहा है और जनता का रूख किस ओर है।
असभ्य भाषा का प्रयोग करना तो कांग्रेस की कार्य-संस्कृति बन गई है। खड़गे तो केवल मोहरा हैं। उनसे पहले, उनके आका भी यही सब करके हंसी उड़वा चुके हैं। अब खड़गे भी उसी राह चल पड़े हैं। लेकिन कर्नाटक में अब विधानसभा चुनाव बहुत दूर नहीं है। जल्द ही यहां जनता कांग्रेस को आईना दिखा देगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)