आत्मनिर्भर भारत का अर्थ विदेशी आयात रोकना नहीं, अपनी क्षमता और सृजनात्मकता को बढ़ाना है

जहां तक आत्‍मनिर्भर होने की बात है, यह केवल कोई सरकारी अभियान नहीं बल्कि स्‍वावलंबन की वह भावना है जो स्‍वदेशी निर्माण को बढ़ावा देती है। अधिकांश लोगों के मन में आत्‍मनिर्भर अभियान को लेकर शायद भ्रम है कि इसका ध्‍येय विदेशी आयात रोकना है। ऐसा नहीं है। इस अभियान का ध्‍येय हमारी क्षमता और सृजनात्‍मकता को बढ़ाना है।

इस वर्ष 74वां स्‍वतंत्रता दिवस बदली हुई परिस्थितियों में मनाया गया। कोरोना महामारी से उपजे हालातों के चलते पहली बार यह बड़ा बदलाव देखने को मिला कि लाल किले सहित देश भर के स्‍कूली प्रांगण बिना छात्रों के दिखाई दिए और प्रधानमंत्री ने बिना परेड सीमित व्यवस्थाओं के बीच अपना संबोधन देकर कर्तव्‍य का निर्वहन किया।

निश्चित ही इस महामारी ने स्‍वतंत्रता दिवस की धूमधाम पर प्रभाव तो डाला ही, लेकिन हमें उन संकल्‍पों को पूरा करने में इसे बाधा नहीं बनने देना चाहिये जो हमें कठिन हालातों का सामना करने की प्रेरणा देते हैं। लाल किले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कुछ महत्‍वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया।

साभार : India TV News

राष्‍ट्र ध्‍वज तिरंगा फहराने के बाद उन्‍होंने सरकार की उपलब्धियों को तो गिनाया ही, आगामी समय की अपेक्षाओं, चुनौतियों का भी उल्‍लेख किया ताकि मौजूदा समय की दुश्‍वारियों से पार पाया जा सके। इस बार प्रधानमंत्री का भाषण सारगर्भित था। उन्‍होंने कोरोना काल में कार्य कर रहे तमाम कर्मचारियों के प्रति भी आभार प्रकट किया।

आत्‍मनिर्भर भारत अभियान को उन्‍होंने विभिन्‍न क्षेत्रों में देखकर भविष्‍य की संभावनाओं पर बात की। इसकी शुरुआत कृषि से की। उन्‍होंने कहा कि एक समय देश की कृषि व्‍यवस्‍था पिछड़ी थी लेकिन आज भारत उत्‍पादन के क्षेत्र में समर्थ तो बना ही है, आयात व निर्यात की दिशा में भी सक्षम बनकर उभरा है। उनकी बात में सार्थकता प्रतीत होती है। हम थोड़ा पीछे अतीत में झांकें तो पाएंगे कि बीते दो वर्षों में भारत में कई एशियाई देशों को समय-समय पर कृषि उपज के अलावा आपदा राहत सामग्री का भी निर्यात किया है।

जहां तक आत्‍मनिर्भर होने की बात है, यह केवल कोई सरकारी अभियान नहीं बल्कि स्‍वावलंबन की वह भावना है जो स्‍वदेशी निर्माण को बढ़ावा देती है। अधिकांश लोगों के मन में आत्‍मनिर्भर अभियान को लेकर शायद भ्रम है कि इसका ध्‍येय विदेशी आयात कम करना है। ऐसा नहीं है। इस अभियान का ध्‍येय हमारी क्षमता और सृजनात्‍मकता को बढ़ाना है।

ताजा उदाहरण कोरोना संकट का ही लें। कुछ महीनों पहले तक हमारे देश में N-95 मास्क, PPE किट, वेंटिलेटर आदि चीजें विदेशों से मंगाई जाती थीं लेकिन वर्तमान में भारत इन सभी चीजों की जरूरतें ना केवल खुद पूरी कर रहा है, बल्कि इनकी आपूर्ति के लिए अन्‍य देशों की सहायता हेतु भी आगे आया है।

प्रधानमंत्री ने देश में चलाई जा रही जनकल्‍याणकारी योजनाओं का भी उल्‍लेख किया। वैसे तो देश में सरकारी योजनाएं हर सरकार के शासन से संचालित होती आईं हैं, लेकिन सत्‍तारूढ़ दल का योजनाओं के संचालन का तरीका पूर्ववर्ती सरकारों से भिन्‍न, कारगर, प्रभावी एवं परिणामलब्‍ध है। 24 मार्च की रात को जब प्रधानमंत्री ने देशव्‍यापी लॉकडाउन का ऐलान किया था तब किसी को नहीं पता था कि इसकी अवधि भी बढ़ेगी और बाद में अनलॉक की भी अवधि बढ़ेगी। लेकिन सरकार को अवश्‍य जनता की चिंता थी।

यही कारण है कि कर्मचारी वर्ग से लेकर श्रमिक, निर्धन एवं किसान सभी तबके के लोगों के लिए सरकार ने जनकल्‍याणकारी योजनाओं से मिलने वाले लाभ का पिटारा खोल दिया। जन धन खातों में, पीएम किसान योजना के तहत किसानों के खातों में लाखों रुपए सीधे जमा कराए गए। वन नेशन-वन टैक्स, वन नेशन वन राशन कार्ड, इनसॉल्‍वेंसी-बैंकरप्‍सी कोड, बैंकों का मर्जर आदि ऐसे बड़े सुधार हैं जो सरकार ने बीते एक साल में किए हैं।

साभार : The New Indian Express

प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया और लोकल के साथ वोकल होने के नारे के उल्‍लेख किया। असल में, पिछले कुछ वर्षों में भारत में विदेशी निवेश बढ़ा है। कई बड़ी कंपनियां भारत का रूख कर रही हैं। भारत आज आधुनिकता की तरफ जा रहा है। यह जानना बहुत रोचक और गर्व की भावना से भरा हो सकता है कि देश में अलग-अलग सेक्‍टर्स के लिए करीब 7 हज़ार प्रोजेक्‍ट चिन्हित किए जा चुके हैं। यानी सीधे शब्‍दों में कहा जाए तो इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर में यह एक नई क्रांति का आगाज़ है।

प्रधानमंत्री ने जन कल्‍याणकारी योजनाओं में लोगों को किए जा रहे बड़े पैमाने पर भुगतान की प्रणाली का भी खास जिक्र किया। उन्‍होंने कहा कि बीते छह महीनों में 7 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त गैस सिलेंडर दिए गए, राशनकार्ड हो या न हो, 80 करोड़ से ज्यादा लोगों के लिए मुफ्त अन्न की व्यवस्था की गई, बैंक खातों में करीब-करीब 90 हजार करोड़ रुपए सीधे ट्रांसफर किए गए, ये सारे काम अपने आप में पेचीदा हैं लेकिन बड़ी सरलता से हो गए।

कुछ समय पहले तो यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि बिना किसी गड़बड़ी के या बिचौलियों के इतना सारा काम हो जाएगा लेकिन आज देश बदल चुका है। अब तो गांव के युवाओं को रोजगार की तलाश में पलायन भी नहीं करना पड़ेगा। इन्‍हें गांव में ही रोजगार की सुविधा उपलब्‍ध कराए जाने के लिए सरकार ने गरीब कल्याण रोजगार अभियान भी शुरू किया गया है।

ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री के भाषण में केवल गर्वोक्ति की ही बातें शामिल थीं या वे अपनी सरकार के कार्यों का बखान कर रहे थे बल्कि उनके संबोधन में दूरदर्शी चिंता, पिछड़े इलाकों के विकास की योजना भी शामिल थी। उन्‍होंने देश के 110 जिलों का उल्‍लेख किया जो विकास के क्षेत्र में अभी पीछे हैं। वहां के लोगों को उचित शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, परिवहन और रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए सरकार ने क्‍या कदम उठाया है, प्रधामनंत्री ने इससे भी अवगत कराया।

उन्‍होंने बताया कि किसानों को मौजूदा अधोसरंचनात्‍मक विकास प्रदान करने के उद्देश्‍य से पिछले दिनों 1 लाख करोड़ रुपए का एग्रीकल्‍चर इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर फंड भी बनाया गया है। प्रधानमंत्री ने पेयजल की उपलब्‍धता को लेकर शुरू किए गए जल जीवन मिशन के साथ ही मध्‍यग वर्ग की सफलताओं की प्रशंसा भी की।

स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी कोरोना योद्धाओं का स्मरण करते हुए सीमाओं की रक्षा करते समय अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले वीर सैनिकों को भी नमन किया था। इन सैनिकों का बलिदान देश को हमेशा याद रहना चाहिए। यदि हम सब एकजुट होकर राष्ट्रीय दायित्वों के निर्वहन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन कर सकें तो इस महामारी को भी आसानी से परास्त कर सकते हैं और राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य की ओर भी तेजी से बढ़ सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस संबोधन से देश वासियों को यह स्‍पष्‍ट संदेश मिला है कि अब भारत को नई नीति के साथ ही आगे बढ़ना होगा। अब हमारी राजनीति, विचार, उत्‍पादन क्षमता, संसाधन सभी कुछ श्रेष्ठ होना चाहिए, तभी हम एक भारत-श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को साकार कर पाएंगे। आज भारत ने असाधारण समय में असंभव को संभव किया है। इसी इच्छाशक्ति के साथ प्रत्येक भारतीय को आगे बढ़ना है।

पीएम मोदी ने यह भी संकेत किया कि हमें देश के भीतर पनपते खतरों से निपटने के साथ ही सीमाओं पर आसन्‍न खतरों का भी सामना करना है। लेकिन यह तभी संभव है जब सारे देशवासी मतभेद भूलकर एकजुटता का प्रदर्शन करने के लिए सचेत रहें। स्वतंत्रता का यह पर्व सभी को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास कराने का एक अवसर है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)