प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुधारात्मक प्रयासों और समय पर आमजन व कारोबारियों को राहत देने की वजह से कोरोना जैसी आपदा के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ताजे आंकड़े राहत देने वाले हैं। वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी में 20.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो किसी भी तिमाही में अब तक की उच्चतम वृद्धि है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 और फिर दोबारा वर्ष 2019 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई, जिसके कारण आर्थिक मोर्चे पर महत्वपूर्ण फैसले लेने में उनकी सरकार ने एक निरंतरता बनाए रखी है। विमुद्रीकरण (500 और 1000 रूपये को चलन से बाहर करना), उज्ज्वला योजना को अमलीजामा पहनाना, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को मूर्त रूप देना, दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (आईबीसी) को अस्तित्व में लेकर आना, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) की संकल्पना को सच बनाना और कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभावों से आमजन और कारोबारियों को राहत देना आदि आर्थिक मोर्चे पर प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा लिए गए बेहद ही महत्वपूर्ण फैसले थे।
विमुद्रीकरण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 रुपए के नोटों को अचानक से चलन से बाहर कर दिया, जिसकी कुछ आलोचना भी की गई। यह सच है कि नोटबंदी की वजह से आमजन को कुछ परेशानियाँ हुईं, लेकिन राष्ट्रहित में जनता प्रधानमंत्री के निर्णय के साथ खड़ी रही। नोटबंदी से कालेधन पर लगाम लगाने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने, आतंकवाद और नक्सलवाद की घटनाओं पर नकेल कसने, कर चोरी पर रोक लगाने आदि में मदद मिली। सरकार के इस फैसले से डिजिटल लेनदेन में भी जबर्दस्त तेजी आई, बैंकों में नकदी का प्रवाह बढ़ा और उस समय घर की कीमत भी कम हुई।
उज्ज्वला योजना
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत सरकार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए घरेलू रसोई गैस कनेक्शन मुहैया करा रही है। इससे गरीब महिलाओं के लिए खाना बनाना आसान हो गया है। साथ ही, उनके स्वास्थ्य को भी सरकार की इस पहल से सुरक्षा कवच मिल रहा है। उल्लेखनीय है कि इस योजना की पात्र 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिलाएं हैं। उज्ज्वला योजना 2.0 के तहत लाभार्थियों को सिलेंडर और चूल्हा मुफ्त में दिया जायेगा।
अगर आवेदक किराये पर रहता है और उसके पास स्थाई निवास प्रमाण पत्र नहीं है तब भी वह गैस कनेक्शन ले सकता है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2021 को वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट पेश करते हुए कहा था कि सरकार 1 करोड़ नए लाभार्थियों को जोड़कर इस योजना को विस्तार करेगी। वित्त मंत्री के अनुसार अब तक इस योजना से 8 करोड़ परिवारों को लाभ मिल चुका है। यह मोदी सरकार के सर्वस्पर्शी शासन के मॉडल का ही एक उदाहरण है।
एक देश एक कर – जीएसटी
जीएसटी संग्रह में भी निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है। जुलाई महीने में जीएसटी संग्रह 33 प्रतिशत बढ़कर 1.16 लाख करोड़ रुपये हो गया और अगस्त महीने में यह 1.12 लाख करोड़ रुपए रहा। कोरोना काल में भी जिस रफ्तार से जीएसटी संग्रह में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, वह इस बात का संकेत है कि जीएसटी को मूर्त रूप देना सरकार द्वारा उठाया गया एक समीचीन कदम था। जैसे-जैसे सरकार कर चोरी को नियंत्रित करने में सफल हो रही है और जीएसटी के प्रावधानों को व्यावहारिक बना रही है, वैसे-वैसे जीएसटी संग्रह में तेजी आ रही है।
आईबीसी
वर्ष 2016 में आईबीसी को लाने का मकसद सरकारी बैंकों के भारी-भरकम गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को कम करना था। जब कोई देनदार बैंक को अपनी देनदारियाँ चुकाने में असमर्थ हो जाता है तो उसके द्वारा लिया गया कर्ज़ एनपीए हो जाता है। नियमों के तहत जब किसी कर्ज़ का मूलधन या ब्याज़ तय अवधि के 90 दिनों के भीतर नहीं चुकता होता है तो उसे एनपीए में वर्गीकृत कर दिया जाता है।
आईबीसी “प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेन्सी एक्ट” और “प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेन्सी एक्ट 1920” को शिथिल करती है और कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और सेक्यूटाईज़ेशन एक्ट समेत कई अन्य कानूनों में संशोधन करती है। सामान्यत: पूर्व के क़ानूनों में स्पष्टता नहीं होने की वजह से कर्ज़दाताओं को नुकसान हो रहा था और कंपनियों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।
आईबीसी के अस्तित्व में आने से पहले दिवालियापन से संबंधित 12 से भी ज्यादा कानून थे, जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी ज़्यादा पुराने थे। इसी क्रम में विवादों के तेज निपटारे के लिये 1 जून 2016 को सरकार ने एनसीएलटी और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील प्राधिकरण (एनसीएलएटी) का गठन किया।
आईबीसी के अनुसार, किसी ऋणी के दिवालिया होने पर एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसकी परिसंपत्तियों को अधिकार में लिया जा सकता है। इसके अनुसार अगर कोई कंपनी कर्ज नहीं चुका रही है और यदि 75 प्रतिशत कर्ज़दाता सहमत हैं तो ऐसी किसी कंपनी पर 180 दिनों; 90 दिन के अतिरिक्त रियायती समय दिये जाने के साथ; के भीतर कार्रवाई की जा सकती है।
कर्ज़ न चुका पाने की स्थिति में कंपनी को यह मौका दिया जायेगा कि वह एक निश्चित समयावधि में कर्ज़ चुका दे या खुद को दिवालिया घोषित कर दे। आमतौर पर यदि कोई कंपनी कर्ज़ को नहीं चुकाती है तो आईबीसी के तहत कर्ज़ वसूलने के लिये उस कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
आईबीसी को सशक्त बनाने के लिए जरूरत के अनुसार अभी भी इसके प्रावधानों को संशोधित किया जा रहा है। इसी क्रम में दूसरे संशोधन विधेयक, 2020 को मंजूरी दी गई है। माना जा रहा है कि आईबीसी के तहत कर्ज भुगतान में चूक करने वाली कंपनियों और व्यक्तिगत गारंटी देने वालों के खिलाफ दिवाला कार्रवाई शुरू करने से वसूली प्रक्रिया में तेजी आ सकती है।
डीबीटी
डीबीटी भारत सरकार का एक नया तंत्र है, जिसके माध्यम से लोगों के बैंक खातों में सीधे धनराशि अंतरित की जाती है। 43 करोड़ से अधिक प्रधानमंत्री जनधन खाता खुलने से डीबीटी की महत्ता में अभूतपूर्व इजाफा हुआ है। बैंक खातों में सब्सिडी जमा करना हो या फिर सरकारी योजना का लाभ देना हो, सरकार बैंकों के माध्यम से सीधे लाभार्थी के खाते में सहायता राशि जमा कर रही है। कोरोना काल में डीबीटी से सही समय पर सहायता राशि मिलने से लाखों की संख्या में गरीबों की जान बच गई।
आत्मनिर्भर भारत अभियान
मार्च 2020 से कोरोना महामारी की वजह से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएँ संकट के दौर से गुजर रही हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है। लेकिन ऐसी आपदा के दौर में भी प्रधानमंत्री मोदी ने आमजन और कारोबारियों को कोरोना महामारी से उत्पन्न मुश्किलों से उबारने के लिये कुल 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा करते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की।
पुनश्च, 14 सितंबर को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था में सुस्ती को दूर करने के लिये आवास क्षेत्र के लिये 20,000 करोड़ रूपये और निर्यात क्षेत्र को मजबूत करने के लिये 50,000 करोड़ रूपये की राहत दी। फिर, रिजर्व बैंक ने 5 मई 2021 को कई उपायों की घोषणा की, जिनमें कर्ज पुनगर्ठन के विकल्प को फिर से कारोबारियों के समक्ष रखना सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस योजना के तहत कंपनियों की वित्तीय देनदारियों के भुगतान की शर्तों को आसान बनाया गया।
तदुपरांत, सरकार ने 28 जून को 6,28,993 करोड़ रुपए कारोबारियों को देने की घोषणा की, जिन्हें अमल में लाने में बैंक अपनी अहम् भूमिका निभा रहे हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते दिनों दूरसंचार क्षेत्र में कई संरचनात्मक और प्रक्रिया सम्बंधी सुधारों को मंजूरी दी है। इनसे रोजगार के अवसरों की रक्षा तथा सृजन, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने, तरलता बढ़ाने, निवेश को प्रोत्साहित करने और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं पर नियामक बोझ कम होने की आशा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुधारात्मक प्रयासों और समय पर आमजन व कारोबारियों को राहत देने की वजह से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ताजे आंकड़े राहत देने वाले हैं। वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी में 20.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो किसी भी तिमाही में अब तक की उच्चतम वृद्धि है।
हालांकि, जीडीपी में आई तेज वृद्धि का कारण आधार प्रभाव है, लेकिन तिमाही आधार पर भी पिछले वर्ष की दिसंबर तिमाही से जीडीपी में लगातार वृद्धि होना विकास में तेजी आने का द्योतक है। इसके अलावा जुलाई 2021 में वर्ष दर वर्ष के आधार पर सीमेंट और कोयला सहित 8 कोर क्षेत्रों में 9.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, जो यह दर्शाता है कि तीसरी लहर नहीं आने की स्थिति में आर्थिक गतिविधियां चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही तक सामान्य हो सकती हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)