बेटी बचाओ अभियान, लाड़ली लक्ष्मी योजना, स्वागतम् लक्ष्मी योजना, गाँव की बेटी योजना, जननी सुरक्षा कार्यक्रम, कन्या अभिभावक पेंशन योजना, उषा किरण योजना और मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के अतिरिक्त कई अन्य कार्यक्रम एवं योजनाएं हैं, जिनके माध्यम से सरकार हर कदम पर महिलाओं के साथ खड़ी नजर आती है। स्त्री सशक्तिकरण की इसी शृंखला में ‘लाड़ली बहना योजना’ भी जुड़ गई है।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की महत्वाकांक्षी ‘लाड़ली बहना योजना’ को लेकर जिस प्रकार का उत्साहजनक वातावरण मातृशक्ति के बीच में बना हुआ है, उससे इस योजना की आवश्यकता एवं महत्व समझ में आता है। अभी हाल में ग्वालियर प्रवास के दौरान विभिन्न वर्गों की माताओं-बहनों से बातचीत के बाद दो बातें अनुभव में जुड़ी हैं।
एक, महिलाओं के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता गजब की है। यह मामला केवल लोकप्रियता तक सीमित नहीं है, अपितु उन्हें मुख्यमंत्री पर अटूट विश्वास भी है। दो, उनका मानना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं के लिए जितनी योजनाएं शुरू कीं, उतनी किसी और ने कभी नहीं की हैं। बेटी के जन्म से लेकर उसके विवाह और उसके बाद के जीवन की भी चिंता सरकार ने की है। शिवराज सरकार बेटी के साथ माँ का ध्यान भी रखती है।
नि:संदेह, शिवराज सरकार अपने पहले कार्यकाल से ही स्त्री सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत दिखी है। मध्य प्रदेश सरकार की महिला नीति को देखने से ध्यान आता है कि यह सरकार सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं शैक्षणिक रूप से महिलाओं को सशक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
बेटी बचाओ अभियान, लाड़ली लक्ष्मी योजना, स्वागतम् लक्ष्मी योजना, गाँव की बेटी योजना, जननी सुरक्षा कार्यक्रम, कन्या अभिभावक पेंशन योजना, उषा किरण योजना और मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के अतिरिक्त कई अन्य कार्यक्रम एवं योजनाएं हैं, जिनके माध्यम से सरकार हर कदम पर महिलाओं के साथ खड़ी नजर आती है। स्त्री सशक्तिकरण की इसी शृंखला में ‘लाड़ली बहना योजना’ भी जुड़ गई है।
मध्यप्रदेश सरकार ने बेटियों के प्रति संवेदनशील जननेता शिवराज सिंह चौहान के जन्मदिन प्रसंग पर यानी 5 मार्च 2023 को ‘लाड़ली बहना योजना’ की शुरुआत की। योजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश की 1 करोड़ 25 लाख से अधिक महिलाओं को प्रतिमाह एक हजार रुपये यानी 12 हजार रुपये वार्षिक आर्थिक सहायता प्राप्त होगी। इस योजना की पहली किस्त 10 जून को पात्र महिलाओं के खातों में पहुँच जाएगी। संभावना जताई जा रही है कि आगे चलकर योजना का आकार बढ़ेगा और महिलाओं की दी जानेवाली राशि में भी बढ़ोतरी हो सकती है। जैसे मध्यप्रदेश के किसानों को ‘किसान सम्मान निधि’ के अंतर्गत 10 हजार रुपये वार्षिक (6 हजार केंद्र और 4 हजार प्रदेश सरकार की ओर से) प्राप्त होते हैं।
बहरहाल, मुख्यमंत्री पहले दिन से योजना के क्रियान्वयन पर नजर रख रहे हैं। कोई पात्र महिला योजना से वंचित न रह जाए, इसके लिए मुख्यमंत्री की पहल पर प्रदेशभर में शिविर लगाकर महिलाओं के आवेदन प्राप्त किए गए। योजना के क्रियान्वयन में किसी प्रकार की आर्थिक रुकावट न आए, इसलिए पहले से ही बजट में भी योजना के लिए 8 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान कर दिया था।
‘लाड़ली लक्ष्मी योजना’ ने जिस प्रकार समाज में बेटियों के प्रति एक सकारात्मक वातावरण बनाने का काम किया है, उसी तरह की उम्मीद ‘लाड़ली बहना योजना’ से भी है। इस योजना के तीन मुख्य उद्देश्य हैं- एक, महिलाओं के स्वावलम्बन एवं उनके आश्रित बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण स्तर में सतत सुधार को बनाये रखना। दो, महिलाओं को आर्थिक रूप अधिक स्वावलम्बी बनाना। तीन, परिवार स्तर पर निर्णय लिये जाने में महिलाओं की प्रभावी भूमिका को प्रोत्साहित करना। यदि यह योजना अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति में कुछ हद तक भी सफल होती है, तब समाज में एक क्रांतिकारी बदलाव दिखाई देगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उचित ही कहते हैं कि “अगर बहनें, महिलाएँ सशक्त होंगी तो समाज सशक्त होगा, समाज सशक्त होगा तो प्रदेश सशक्त होगा और प्रदेश सशक्त होगा तो देश भी सशक्त होगा। बिना आधी आबादी के सशक्तिकरण के देश मजबूत नहीं हो सकता”। यकीनन देश के विकास में मातृशक्ति की हिस्सेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह योजना आर्थिक दृष्टि से महिलाओं के हाथ मजबूत करेगी। उल्लेखनीय है कि शहरी क्षेत्र में 55.9 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले केवल 13.6 प्रतिशत महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी रही है। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र में 57.7 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले केवल 23.3 प्रतिशत महिलाओं की ही श्रम बल में हिस्सेदारी है।
स्पष्ट है कि आर्थिक स्वावलंबन में महिलाएं पीछे हैं। इस कारण महिलाएं स्वयं के लिए भी आवश्यक खर्च नहीं कर पाती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (2020-21) के आंकड़ों को देखें, तो ध्यान आता है कि 15-49 वर्ष आयुवर्ग की 54.7 प्रतिशत महिलाओं में खून की कमी है और 23.0 प्रतिशत महिलाएं मानक बॉडी मास इन्डेक्स से कम स्तर पर है। सरकार का मानना है कि महिलाओं को आर्थिक सहायता मिलेगी, तो वे न केवल अपने स्वास्थ्य की अपितु स्वयं पर आश्रितों के स्वास्थ्य की चिंता भी कर पाएंगी।
इसके अलावा महिलाएं प्राप्त आर्थिक सहायता से न केवल स्थानीय उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर स्वरोजगार/आजीविका के संसाधनों को विकसित करेंगी वरन परिवार स्तर पर उनके निर्णय लिये जाने में भी प्रभावी भूमिका का निर्वहन कर सकेंगी। देशभर में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं, जो बताते हैं कि महिलाओं ने ‘स्वयं सहायता समूहों’ से जुड़कर छोटी राशि के आधार पर स्वरोजगार के सक्षम प्रकल्प खड़े किए हैं।
बहरहाल, कुछ राजनीतिक पंडित इसे ‘चुनावी योजना’ तक सीमित करके देख रहे हैं। शिवराज सरकार का पुराना रिकॉर्ड देखें, तब यह केवल चुनावी योजना नहीं दिखती, बल्कि ध्यान आता है कि यह सरकार महिलाओं के हित में लगातार कदम उठाती रही है। अन्य राजनीतिक दलों की तरह भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में महिलाओं को हर माह पैसा देने का कोई वायदा नहीं किया था। इसलिए इस योजना को चुनाव से जोड़कर देखना, इसके महत्व एवं आवश्यकता को कम कर देता है।
यह कहने में किसी को संकोच नहीं होना चाहिए कि समाज में मातृशक्ति के महत्व और भूमिका को रेखांकित कर, उसके स्वाभिमान एवं सम्मान को बढ़ाने में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अनेक आवश्यक कदम उठाए हैं।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)