मॉनसून के खराब रहने से भारत में अक्सर कुछ इलाक़ों में जून और सितंबर के बीच में सूखा पड़ता है। ऐसे में, अगर वित्तीय वर्ष की तारीख बदलती है, तो नवंबर में पेश होने वाले बजट में, कृषि से जुड़ी ऐसी समस्याओं का ध्यान रखा जा सकता है। उल्लेखनीय होगा कि दुनिया के 156 देशों का वित्तीय वर्ष कैलेंडर 1 जनवरी से 31 दिसंबर के बीच ही होता है। साथ ही, वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मोनेट्री फंड जैसी दुनिया की बड़ी एजेंसियां भी डाटा इकट्ठा करने के लिए कैलेंडर वर्ष को ही फॉलो करती हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आग्रह पर मध्य प्रदेश सरकार ने वित्त वर्ष के मौजूदा समय को अप्रैल-मार्च से बदलकर जनवरी-दिसंबर करने की घोषणा की है। मध्य प्रदेश सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले से वित्तीय वर्ष 2018 -2019 जनवरी से दिसंबर तक होगा और वित्तीय वर्ष बदलने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य होगा। इसी तारतम्य में राज्य का बजट अब परंपरागत तरीके से मार्च में नहीं, बल्कि दिसंबर में पेश किया जाएगा।
नीति आयोग की संचालन परिषद की नई दिल्ली में हुई बैठक में अपने समापन भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह राज्यों से कहा था कि वित्त वर्ष जनवरी-दिसंबर करने पर विचार करें और इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसे देश में जहां कृषि आय अत्यंत महत्वपूर्ण है, वहां बजट वर्ष प्राप्तियों के तत्काल बाद ही तैयार किया जाना चाहिए। इस फैसले के कई फायदे हैं, नया वित्तीय वर्ष किसानों के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि मौजूदा वित्तीय वर्ष की समयसीमा, मॉनसून की समयसीमा से मेल नहीं खाती है, जिसकी वजह से किसान मॉनसून का फायदा नहीं उठा पाते हैं।
वित्तीय वर्ष की नई तारीख से मौसम की वजह से होने वाले बदलावों की गणना भी करने में मदद मिलेगी। विशेषज्ञों की राय है कि अक्टूबर में दक्षिण-पश्चिम मानसून के खत्म होने के बाद बजट को अंतिम रूप दिया जाए। क्योंकि ये वो वक्त होता है जब खरीफ की फसल तैयार होती है और रबी की फसल का अनुमान लगाया जा सकता है। इस हिसाब से नवंबर में का बजट पेश किया जा सकता है।
दरअसल मॉनसून के खराब रहने से भारत में अक्सर कुछ इलाक़ों में जून और सितंबर के बीच में सूखा पड़ता है। ऐसे में, अगर वित्तीय वर्ष की तारीख बदलती है, तो नवंबर में पेश होने वाले बजट में, कृषि से जुड़ी ऐसी समस्याओं का ध्यान रखा जा सकता है। उल्लेखनीय होगा कि दुनिया के 156 देशों का वित्तीय वर्ष कैलेंडर 1 जनवरी से 31 दिसंबर के बीच ही होता है। साथ ही, वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मोनेट्री फंड जैसी दुनिया की बड़ी एजेंसियां भी डाटा इकट्ठा करने के लिए कैलेंडर वर्ष को ही फॉलो करती हैं।
वर्ष 1865 में ब्रिटिश सरकार में एक कमीशन गठित किया गया था, जिसमें भारत के वित्तीय वर्ष की शुरुआत 1 जनवरी से करने की सलाह दी गई थी। भारत में ब्रिटिश राज होने की वजह से वर्ष 1867 में भारत के वित्तीय वर्ष की तारीख भी ब्रिटिश वित्तीय वर्ष के हिसाब से 1 अप्रैल से 31 मार्च कर दी गई, ये तारीखें अंग्रेज़ों को सूट करती थीं।
वित्तीय वर्ष की तारीख में बदलाव के लिए वर्ष 1984 में राजीव गांधी की सरकार ने एलके झा की नेतृत्व में एक कमेटी गठित की थी, इस कमेटी का गठन करने का फैसला भारत में वर्ष 1979-80 और 1982-83 में पड़े भीषण सूखे के बाद लिया गया था, लेकिन वर्ष 1985 में आई एलके झा कमेटी की रिपोर्ट पर राजीव गांधी की सरकार कोई फैसला नहीं ले पाई।
इस फैसले के बाद सरकार को टैक्स असेसमेंट वर्ष में बदलाव के साथ ही टैक्स कलेक्शन के इंफ्रास्ट्रक्चर का पुनर्गठन करना होगा। वित्तीय वर्ष में बदलाव के साथ विधानसभा सत्र के समय में भी बदलाव हो सकता है। बहरहाल शिवराज सिंह सरकार का यह निर्णय प्रधानमत्री जी के “न्यू इंडिया” के सपने को साकार करने में में महत्वपूर्ण कदम होगा और आनेवाले समय में देश के बाकि राज्य भी इस व्यवस्था को अपनायेंगे जिससे केंद्र सरकार को इस व्यवस्था को लागू करने में सहूलियत होगी।
(लेखक कॉर्पोरेट लॉयर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)