केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में (जीडीपी) 7.2 प्रतिशत की गति से बढ़ सकती है, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने मामले में 7.4 प्रतिशत और वित्त मंत्रालय ने 7.5 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान लगाया था। हालाँकि, जीडीपी में पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले तेज उछाल आया है। वित्त वर्ष 2017-18 में जीडीपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही थी। विश्व बैंक ने भारत को दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बताया है।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से दिसंबर महीने के दौरान सरकार का आयकर राजस्व 7.43 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में 13.6 प्रतिशत ज्यादा है, जबकि अग्रिम कर संग्रह पिछले साल की तुलना में 14.5 प्रतिशत ज्यादा है।
फिलवक्त, अग्रिम कर संग्रह 3.64 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है।सीबीडीटी के अनुसार विगत 2 सालों में “अभूतपूर्व आयकर संग्रह” हुआ है। आयकर संग्रह के आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रत्यक्ष कर संग्रह में वृद्धि अपेक्षा के अनुरूप है। आम तौर पर अग्रिम कर प्राप्ति मार्च में बढ़ती है, क्योंकि करदाता अमूमन मार्च महीने में अग्रिम कर जमा करते हैं। इस आधार माना जा रहा है कि आयकर संग्रह में अभी और भी तेजी आ सकती है।
वैश्विक परामर्श संस्था पीडब्ल्यूसी और उद्योग निकाय भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) द्वारा उत्पादकों पर किये गये सर्वेक्षण से इस बात का खुलासा हुआ कि 74 प्रतिशत विनिर्माताओं को अगले 12 महीनों के दौरान अपने-अपने क्षेत्रों में तेज वृद्धि होने का अनुमान है। दि इंडिया मैन्यूफैक्चरिंग बैरोमीटर 2019-बिल्डिंग एक्सपोर्ट कम्पीटिटिवनेस नाम के इस सर्वेक्षण में ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रिक मशीन, रसायन और वस्त्र सहित अन्य उत्पादन क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों का सर्वेक्षण किया गया, जिनका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 12 प्रतिशत का योगदान है।
पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिक्रिया देने वाले 51 प्रतिशत लोगों ने माना है कि वस्तु एवं सेवा कर का लॉजिस्टिक्स और संबंधित प्रक्रिया को आसान बनाने में सकारात्मक प्रभाव रहा है, जबकि 66 प्रतिशत लोगों का मानना है कि यह कर सुधार निवेश को बढ़ाने और आर्थिक विकास को गति देने की दिशा में सकारात्मतक रहा है। वहीं, 85 प्रतिशत बड़े कारोबारी मानते हैं कि भविष्य में वैश्विक मांग की वजह से उनके टर्नओवर में इजाफा होगा।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में (जीडीपी) 7.2 प्रतिशत की गति से बढ़ सकती है, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने मामले में 7.4 प्रतिशत और वित्त मंत्रालय ने 7.5 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान लगाया था। हालाँकि, जीडीपी में पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले तेज उछाल आया है।
वित्त वर्ष 2017-18 में जीडीपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही थी। विश्व बैंक ने भारत को दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बताया है। विश्व बैँक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि वित्त वर्ष 2018-19 में भारत की जीडीपी 7.3 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ेगी और आगामी दो वर्षों में जीडीपी की रफ्तार बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो जायेगी।
चीन की अर्थव्यवस्था का वित्त वर्ष 2018-19 और 2020 में 6.2 प्रतिशत, जबकि 2021 में 6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। विश्व बैंक प्रॉस्पेक्टस ग्रुप के निदेशक अयान कोस के अनुसार भारत में निवेश बढ़ने, खपत में इजाफा होने, जीएसटी और बैंकों के पुनर्पूंजीकरण से जीडीपी वृद्धि की रफ्तार में तेजी आयेगी, जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार मौजूदा समय में सुस्त पड़ रही है।
वैश्विक स्तर पर कई तरह के जोखिम देखने को मिल रहे हैं। विकसित अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर भी कम होने का अनुमान है, जो 2 प्रतिशत तक पहुँच सकता है, जबकि बाहरी मांग कम होने और कर्ज की लागत बढ़ने से उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की औसत वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत रह सकती है।
विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत वर्ष 2030 तक विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन जायेगा, जबकि पहले स्थान पर चीन और दूसरे स्थान पर अमेरिका रहेगा। इस अवधि में भारत का उपभोक्ता खर्च 1.5 लाख करोड़ से बढ़कर 6 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
डब्ल्यूईएफ के उपभोक्ता इंडस्ट्री की प्रमुख और कार्यकारी समिति की सदस्य जारा इंग्लीजियान के अनुसार भारत की निजी घरेलू खपत जीडीपी का 60 प्रतिशत है और वह दुनिया का सबसे तेज उभरता बाजार है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि इस दौरान भारत में 2.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ सकते हैं।
मोदी सरकार अपने सुधारवादी कदमों से आर्थिक क्षेत्र में सुधार लाने की कोशिश कर रही है। इसी क्रम में 10 जनवरी, 2019 को जीएसटी समिति ने जीएसटी छुट की सीमा को बढ़ाकर दोगुना कर दिया। उत्तर-पूर्व राज्यों में अब यह सीमा 20 लाख होगी, जबकि देश के अन्य भागों में 40 लाख। इस क्रम में कंपोज़ीशन स्कीम की सीमा को भी 1 करोड़ से बढ़ाकर 1.5 करोड़ किया गया।
इसके तहत कारोबारी तिमाही कर तो जमा करेंगे, लेकिन उन्हें टैक्स रिटर्न सालाना जमा करना होगा। भले ही इस निर्णय से सरकार को राजस्व का नुकसान होगा, लेकिन छोटे एवं मझौले कारोबारियों को सरकार के इस निर्णय से बड़ी राहत मिली है।किसी भी नियम या कानून में बदलते परिवेश के अनुसार समय-समय पर बदलाव करने की जरूरत होती है।
जीएसटी के संदर्भ में सरकार द्वारा लिया गया ताजा निर्णय इसी संकल्पना के तहत लिया गया है। मौजूदा समय में राजस्व संग्रह में बढ़ोतरी के मामले में जीएसटी को लंबी दौड़ का घोड़ा माना जा सकता है। आने वाले दिनों में इसके जरिये सरकार के राजस्व में अपेक्षित बढ़ोतरी होने की आशा की जा सकती है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)