याद्दाश्त पर थोड़ा जोर डालें तो विगत वर्ष कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा एक जनसभा में भाजपा पर निशाना साधते हुए यह कहा गया था कि संघ के लोगों ने महात्मा गाँधी की हत्या की और अब उसी संघ से समर्थित भाजपा द्वारा गांधी का गुणगान किया जा रहा है। उनके इस वक्तव्य से आहत होकर भिवंडी के संघ कार्यकर्ता राजेश महादेव कुंटे द्वारा उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया गया, जिसे खारिज करवाने के लिए वे पिछले साल मई में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे। फिर तारीख पर तारीख बढ़ती रही और मामला खिंचता गया। विगत दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट किया।
मुसलमानों में यह व्यर्थ का भय भरा गया कि संघ उनका शत्रु है और इसके जरिये यह भी दिखाया गया कि संघ से समर्थित् होने के कारण भाजपा से भी उन्हें खतरा है। इस प्रकार गांधी की हत्या से लेकर साम्रदायिक छवि तक कांग्रेस और उसके द्वारा परिपोषित वाम खेमों द्वारा संघ और भाजपा को बदनाम करने की पूरजोर कोशिश की गई। साथ ही, सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण करके स्वयं को मुसलमानों का मसीहा साबित करने का ढोंग भी किया गया। कांग्रेस पोषित वामी बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा यह अवधारणा स्थापित करना कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, भी इनके मुस्लिम तुष्टिकरण के एजेंडे का ही एक अंग है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि आप किसी संगठन की सामूहिक निंदा नहीं कर सकते, अतः या तो आप माफ़ी मांगें अन्यथा मुकदमे के लिए तैयार रहें। न्यायालय ने यह भी कहा है कि किसी एक व्यक्ति के किसी गलत कृत्य के कारण पूरे संगठन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। साथ ही मामले की सुनवाई के लिए २७ जुलाई की तारीख निश्चित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें और अधिक स्थगन देने से भी इनकार कर दिया है। मगर, लगता नहीं कि न्यायालय के इस स्पष्ट और सख्त रुख के बावजूद कांग्रेस और राहुल गांधी पर कोई प्रभाव पड़ा है, क्योंकि उनके वकीलों की तरफ से कहा गया है कि वे माफ़ी नहीं मांगेंगे बल्कि न्यायालय के समक्ष अपनी बात के पक्ष में ऐतिहासिक तथ्य रखेंगे। संभव है कि उन तथ्यों में गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ पर पटेल द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध आदि का उल्लेख किया जाय। लेकिन, ऐसे रटे-रटाए और मौजूदा संदर्भ से अलग इन तथ्यों से न्यायालय संतुष्ट होगा, इसकी संभवाना बेहद कम है। क्योंकि, इनमे ऐसा कोई तथ्य नहीं है जो यह प्रमाणित करे कि गांधी की हत्या में संघ की कोई भी सहभागिता थी। इस प्रकार कुल मिलाकर स्थिति यह है कि राहुल गांधी सर्वोच्च न्यायालय में गए तो राहत की उम्मीद से थे, लेकिन लगता है कि ये उनके लिए अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित होगा। संभव है कि उन्हें विवशतापूर्ण विनम्रता जिसमे कांग्रेस का कोई सानी नहीं है, का प्रदर्हन करते हुए माफ़ी ही मांगनी पड़े।
वैसे राहुल गांधी तो अक्सर ही कुछ न कुछ विवादित और राजनीतिक रूप से अपरिपक्वता का परिचय देने वाला बयान देते रहते हैं। तमाम लोगों द्वारा उनके इस बयान को भी वैसे ही देखा जा रहा है। लेकिन, इस बयान को सिर्फ उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता के चश्मे से देखना पर्याप्त नहीं होगा। क्योंकि, ये राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्वता से उपजा बयान नहीं है, ये तो कांग्रेसी सेकुलरिज्म के पाखण्ड में रचा-बसा एक भ्रामक दुष्प्रचार है, जिसका जाप कांग्रेस और उसके वैचारिक स्रोत यानी वाम बुद्धिजीवियों द्वारा दशकों से किया जाता रहा है। कांग्रेस-वाम गठजोड़ पूरी एकजुटता के साथ यह सिद्ध करने में लगा रहा है कि गांधी की हत्या संघ ने करवाई थी और वो इस देश की एकता-अखंडता का शत्रु है। इस दुष्प्रचार के पीछे की मूल वजह यह है कि कांग्रेस हमेशा इस बात के प्रति सशंकित रही है कि इस देश में उसका कोई राष्ट्रीय विकल्प न खड़ा हो सके। भाजपा से उसे हमेशा से यह डर था कि संघ के सहयोग से वह उसका विकल्प बन सकती है। इसीलिए कांग्रेस संघ जैसे गैर-राजनीतिक संगठन के विरुद्ध भी हमेशा हमलावर रही। संघ को घेरने के लिए गांधी की हत्या का आरोप उसे अपनी नेहरूवियन परंपरा से प्राप्त हुआ ही था। बस उस आरोप के साथ-साथ संघ के हिन्दुत्ववादी स्वरुप के जरिये उसे सांप्रदायिक संगठन सिद्ध करने का भ्रमजाल कांग्रेस ने बुन डाला। मुसलमानों में यह व्यर्थ का भय भरा गया कि संघ उनका शत्रु है और इसके जरिये यह भी दिखाया गया कि संघ से समर्थित् होने के कारण भाजपा से भी उन्हें खतरा है। इस प्रकार गांधी की हत्या से लेकर साम्रदायिक छवि तक कांग्रेस और उसके द्वारा परिपोषित वाम खेमों द्वारा संघ और भाजपा को बदनाम करने की पूरजोर कोशिश की गई। साथ ही, सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण करके स्वयं को मुसलमानों का मसीहा साबित करने का ढोंग भी किया गया। कांग्रेस पोषित वामी बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा यह अवधारणा स्थापित करना कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, भी इनके मुस्लिम तुष्टिकरण के एजेंडे का ही एक अंग है। इनका दोहरा रूप यहीं उजागर हो जाता है कि ये एक नाथूराम गोडसे जिसके संघ से सम्बंधित होने की बात सदिग्ध है, के द्वारा गांधी की हत्या किए जाने पर पूरे संघ को गांधी का हत्यारा घोषित कर देते हैं, जबकि दुनिया में लाखों-करोड़ों आतंकवादियों के धर्म-विशेष से सम्बंधित होने के बावजूद भी इनके लिए आतंक का कोई धर्म नहीं है। स्पष्ट है कि संघ और भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस और उसके द्वारा पोषित वामी खेमे ने अपनी पूरी एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन इन दुष्प्रयासों में उन्हें सफलता कम विफलता ही अधिक मिली है। इसका प्रमाण यह है कि कांग्रेस के तमाम कुचक्रों के बावजूद देखते ही देखते संघ समर्थित भाजपा उसका मजबूत विकल्प बन गई और आज दूसरी बार उसे सत्ता से बेदखल कर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार का सफलतापूर्वक सञ्चालन भी कर रही है। निश्चित तौर पर भाजपा के ऐसा कर पाने में संघ का सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। यही क्यों, भाजपा की लगभग प्रत्येक राजनीतिक सफलता में संघ की शक्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक बड़ा कारण है कि कांग्रेस-वामी आदि सभी तथाकथित सेकुलर दल संघ से खार खाए रहते हैं। लेकिन, उनके खार खाने से संघ की सेहत पर कोई फर्क पड़ा हो, ऐसा बिलकुल नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर संघ का व्यापक विस्तार हुआ है और अब भी हो रहा है। वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस को देखें तो आज उसकी हालत ये हो गई है कि लोकसभा में विपक्ष में बैठने लायक सीटें तक उसे मयस्सर नहीं हैं। साथ ही उसके वाम खेमे जिसकी राजनीतिक स्थिति तो कभी राष्ट्रीय हुई ही नहीं, लेकिन जिन एकाध राज्यों में वो था, वहाँ से भी उसका जनाधार खिसकता ही जा रहा है। कहने का अर्थ ये है कि जैसे-जैसे जनता में इन तथाकथित सेकुलर दलों के भ्रामक प्रचारों की पोल खुलती गई, वैसे-वैसे वो इनसे किनारा भी करती गई।
बहरहाल, आज जब सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल गांधी के एक बयान के बहाने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही गांधी की हत्या को लेकर कांग्रेस समेत सभी तथाकथित सेकुलर दलों द्वारा संघ पर लगाए जाने वाले आरोपों को खारिज कर दिया है, तो संभव है कि उन्हें कुछ होश आए। वे यह समझें कि अगर किसी एक व्यक्ति कारण किसी संगठन के गलत होने का विधान होता तो उनमे से कोई भी राजनीतिक दल आज शुचिता और नैतिकता की बड़ी-बड़ी बातें नहीं कर पाता। संघ एक सांस्कृतिक संगठन है, जो वैचारिक साम्य के आधार पर भाजपा का समर्थन करता है। वो हिन्दू हितों की बात करता है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। न ही इसका ये अर्थ है कि वो मुस्लिम या अन्य किसी भी समुदाय के अहित के पक्ष में है। इस देश में मुस्लिम से लेकर और भी तमाम समुदायों के हितों की बात करने वाले संगठन हैं, उनपर तो कभी किसी तथाकथित सेकुलर दल ने उंगली नहीं उठाई। फिर संघ पर उंगली उठाकर वे स्वयं को सेकुलर नहीं, केवल और केवल हिन्दू विरोधी ही सिद्ध कर रहे हैं। दरअसल बात यही है कि इनके सेकुलरिज्म का अर्थ सिर्फ और सिर्फ एक समुदाय विशेष का तुष्टिकरण है, जो कि अब यह देश समझ चुका है। अच्छा होगा कि न्यायालय के उक्त कथन के बाद ये तथाकथित सेकुलर दल न केवल संघ के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाएंगे, बल्कि समुदाय विशेष के तुष्टिकरण की अपनी नीति पर भी पुनर्विचार करेंगे। यही इनके और देश की राजनीतिक दशा दोनों के लिए हितकर होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)