राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्वर्गीय श्री सोहन सिंह जी एक ऐसे दीपक थे, जिनके आलोक में माँ भारती हमेशा आलोकित होती रहेगी। राष्ट्र निधि श्री सोहन सिंह जी ने आजीवन विरक्त रह कर भी देश और भारत माता के प्रति जो आसक्ति दिखाई वह हर युग, काल और परिस्थिति में स्मरणीय, अनुकरणीय और वंदनीय रहेगा। वह अपने व्यवहार और आचरण से लोगों को अपना बनाने की कला में माहिर थे। उनका मन वात्सल्य की अतल गहराइयों वाला था, जिसमें सभी स्वयंसेवक और कार्यकर्ता स्वच्छंद विचरण किया करते थे। उनके हृदय का स्नेह द्वार सभी के लिए खुला रहता था। वे दूसरों के दुःखों को जीना जानते थे, कष्टों का अनुभव करते थे, दूसरों के अंर्तमन की वेदना और पीड़ा को समझने की उनके अंदर अद्भृत क्षमता थी। चेहरे का भाव देखकर मन की बातें जानने वाले तथा अपने व्यवहार से शिक्षा देने वाले एक अनमोल राष्ट्र-रत्न थे। उनका जीवन शिक्षाप्रद, आचरण पूजनीय और व्यहार अनुकरणीय था।
श्री सोहन सिंह पर गहराई से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि वे राष्ट्र चिंतन से लेकर आम दिनचर्या से जुड़ी छोटी-छोटी बातों पर भी बहुत गंभीरता से विचार करते थे, व्यर्थ में नल से पानी का बहना, गीजर का चलना, कूलर, पंखा और लाईट का जलना भी उनको पसंद नहीं था, वह सुविधा भोगी नहीं थे। वह अपने प्रति बेहद कठोर लेकिन स्वयंसेवकों के प्रति बहुत ही अत्मीय थे। प्रायः सभी कार्यकर्ताओं से उनके घरेलू समस्याओं पर चर्चा करना और उसके निदान के बारे में सोचनाए उनकी आदतों में शुमार था। अपने व्यवहार से परिस्थिति को अनुकूल बनाने की क्षमता रखते थे, माहौल को खुशनुमा और हल्का बनाने में तो उनका कोई सानी ही नहीं था।
अपने जीवन के 72 वर्ष राष्ट्र को समर्पित कर देने वाले स्व. श्री सोहन सिंह जी आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं। वह कभी भी अपने लिए किसी विशेष सुविधा या सेवा का आग्रह नहीं रखते थे, उनका मानना था कि जो सुविधा और सहुलियत एक आम स्वयंसेवक को मिल रही है, वही हमारे लिए भी होनी चाहिए। बातों-बातों में ही स्वयंसेवकों को अपना बना लेने की कला में वे पारंगत थे, उनके साथ रहे वर्तमान वरिष्ठ स्वयंसेवक बताते हैं कि संघ का कोई भी स्वयंसेवक उनसे अपने मन की बात बहुत ही सहजता से कह देता था, यह उनकी विनयशीलता थी या उनका जादुई व्यक्तित्व कि जो भी उनके करीब जाता था, उसके मन की गांठ-गिरह स्वयमेव ही खुल जाती थी। वे शिल्पी थे, वे अनगढों को तराशकर शालिग्राम बनाने में विश्वास करते थे। वे राष्ट्र को कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों के माध्यम से मजबूत आधार प्रदान करना चाहते थे।
उनपर गहराई से अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि वे राष्ट्र चिंतन से लेकर आम दिनचर्या से जुड़ी छोटी-छोटी बातों पर भी बहुत गंभीरता से विचार करते थे जैसे कि व्यर्थ में नल से पानी का बहना, गीजर का चलना, कूलर, पंखा और लाईट का जलना भी उनको पसंद नहीं था, वह सुविधा भोगी नहीं थे। वह अपने प्रति बेहद कठोर लेकिन स्वयंसेवकों के प्रति बहुत ही अत्मीय थे। प्रायः सभी कार्यकर्ताओं से उनके घरेलू समस्याओं पर चर्चा करना और उसके निदान के बारे में सोचनाए उनकी आदतों में शुमार था। अपने व्यवहार से परिस्थिति को अनुकूल बनाने की क्षमता रखते थे, माहौल को खुशनुमा और हल्का बनाने में तो उनका कोई सानी ही नहीं था।
आज जब दुनिया अपने स्वार्थों के वशीभूत होकर अपने कर्तव्य पथ से विमुख हो रही है, ऐसे में स्व. श्री सोहन सिंह जी की जीवनी अनुकरण के योग्य है। युवाओं में राष्ट्रीय चेतना का प्रवाह और अपनी संस्कृति के प्रति स्नेह उत्पन्न करने में उनकी भूमिका अतुलनीय रही है। अपने कर्तव्यों के प्रति कठोरता और दूसरों के प्रति सहजता उनके मूल में था। मौजूदा पीढ़ी ही नहीं आने वाली पीढ़ी को भी उनके जीवन से सीखने का अवसर मिलेगा। व्यक्तिगत स्वार्थों से विमुख होकर अपने जीवन को समाज और देश के लिए समर्पित करने की उनकी भावना आने वाली पीढ़ी के लिए प्रकाश पुंज का कार्य करेगी। कई दिनों तक भूखे रहकर कार्य करने की उनकी पद्धति युवा मन में नव ऊर्र्जा का संचार करती रहेगी। आज जरूरत हैए उनके जीवन से सीखने की, उनके सद्कर्माें से प्रेरणा लेने की और उनके सुझाए मार्गों का अनुसरण करने की। जरूरत है उनके द्वारा प्रज्वलित किए गए राष्ट्रनिर्माण के हवनकुंड में समिधा बनकर खुद को समर्पित करने की।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध प्रतिष्ठान में शोधार्थी हैं।)