चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान नई परियोजनाओं में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का इजाफा हुआ है। पिछले साल की तीसरी तिमाही के मुकाबले यह रकम ज्यादा है। पिछले साल इस दौरान परियोजनाओं में 3.1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया था। परियोजनाओं की गतिविधियों पर नजर रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार सालाना आधार पर यह रकम 37.4 प्रतिशत से बढ़कर 4.26 लाख करोड़ रुपये हो गई।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान नई परियोजनाओं में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का इजाफा हुआ है। पिछले साल की तीसरी तिमाही के मुकाबले यह रकम ज्यादा है। पिछले साल इस दौरान परियोजनाओं में 3.1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया था। परियोजनाओं की गतिविधियों पर नजर रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार सालाना आधार पर यह रकम 37.4 प्रतिशत से बढ़कर 4.26 लाख करोड़ रुपये हो गई।
गौरतलब है कि सीएमआईई प्रत्येक तिमाही के अंत में पूंजीगत व्यय के आंकड़े जारी करता है। सीएमआईई के अनुसार रुकी परियोजनाओं का अनुपात 81.8 प्रतिशत कम होकर 0.58 लाख करोड़ रुपये रह गया है। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में यह 1.36 लाख करोड़ रुपये था।
दिलचस्प बात यह है कि क्षमता के इस्तेमाल में कमी के बावजूद नई परियोजनाओं में तेजी आई है। सरकार बुनियादी क्षेत्र में निवेश बढ़ाने पर ज़ोर दे रही है। इसी क्रम में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 7 जनवरी, 2020 को 1.02 लाख करोड़ रुपये बुनियादी क्षेत्र को विकसित करने के लिये निवेश की घोषणा की।
31 दिसंबर को जारी नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन पर गठित कार्य दल की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में ढांचागत परियोजनाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार बड़ी परियोजनाओं के लिये धन की कमी सबसे बड़ी चुनौती है।
इसके अलावा, भूमि अधिग्रहण की पेचीदा प्रक्रिया, मुआवजे का भुगतान, पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं, परियोजाओं में देरी से लागत में इजाफा आदि चुनौतियां भी ढांचागत क्षेत्र के विकास में बाधक हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सुधार के जरिये कुछ समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस आलोक में रकम इकठ्ठा करने के लिये बॉन्ड एवं साख बाजार को बढ़ावा दिया जा सकता है। बेहतर निगरानी से भी पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के समाधान में मदद मिलने की संभावना है।
इधर, दिसंबर में लगातार दूसरे महीने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा। जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी अच्छा संकेत है। माना जा रहा है कि कर चोरी में कमी आने से जीएसटी संग्रह में सुधार आया है। ज्ञात हो कि जीएसटी चोरी रोकने के लिए जीएसटी परिषद ने दिसंबर में कुछ उपायों की घोषणा की थी। दिसंबर में जीएसटी संग्रह 1.031 लाख करोड़ रुपये दर्ज किया गया।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार जीएसटी में सालाना आधार पर 8.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सरकार चाहती है कि दिसंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच 1.10 लाख करोड़ रुपये से अधिक राजस्व संग्रह हो।
उपरोक्त पड़ताल के आधार पर कहा जा सकता है कि विकास को गति देने के लिये बुनियादी क्षेत्र को विकसित करना बहुत ही जरूरी है। सरकार द्वारा इस क्षेत्र में निवेश करने की घोषणा करना अच्छी खबर है। जीएसटी संग्रह में तेजी आना भी एक अच्छी खबर है। कर सुधार की दिशा में जीएसटी को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाना चाहिये। जीएसटी संग्रह में तेजी आना एक सकारात्मक संकेत है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)