इस्लामिक कट्टरपंथ को सामने लाते इन मामलों पर क्या कहेंगे सेकुलर!

बात सन 2011 की है। पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के गवर्नर थे सलमान तासीर। वो इस्लामिक देश पाकिस्तान के ईश निंदा कानूनों के खिलाफ थे और ऐसे कानूनों को इस्लाम के खिलाफ मानते थे। आम तौर पर इस्लामिक मुल्कों में ऐसे कानूनों का अहमदिया, हिन्दू, सिख या इसाई जैसे अल्पसंख्यक समुदायों को परेशान करने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है। कई और इस्लामिक कट्टरपंथियों को तो उनके विचारों पर आपत्ति थी ही, उनके खुद के बॉडीगार्ड को भी दिक्कत थी। इस्लाम को खतरे में आता देख कर बॉडीगार्ड मुमताज कादरी ने एक रोज़ सलमान तासीर की हत्या कर दी। इसे आप कहीं एक कोने में किसी “भटके हुए नौजवान” की हरकत कह कर टाल नहीं सकते।

फ़्रांस का शार्ली हेब्दो वाला मामला हो या भारत के मालदा, टोंक जैसी जगहों पर लगे “सर तन जुदा” के नारे, हर जगह ये असहिष्णुता आपको एक ही समुदाय विशेष के साथ जुड़ी दिख जाएगी। किसी भी किस्म के सुधार, ताज़ी हवा का एक झोंका भी बर्दाश्त करने को ना तैयार होती एक कौम हिंसक तरीकों से अपनी बात मनवाने पर तुली है। 57 इस्लामिक मुल्कों में अल्पसंख्यकों को एक भी सहूलियत ना देने को राज़ी होने वाली बिरादरी को शरणार्थी होने पर भी शरण देने वाले के तौर-तरीके बदलवाने होते हैं।

ऐसा ही एक चर्चित वाकया ब्रिटेन में अभी हाल में हुआ था। तनवीर अहमद नाम का सुन्नी मुसलमान कभी असद शाह नाम के अहमदिया मुसलमान से मिला नहीं था। इस साल मार्च में वो घर से निकला और ब्रैडफोर्ड से 320 किलोमीटर दूर ग्लासगोव गया। वहां उसने एक दुकानदार असद शाह को इसलिए चाकू मारा क्योंकि वो एक अहमदिया मुसलमान था! सिर्फ अहमदिया होने के कारण। ब्रिटिश मीडिया में खासे चर्चित रहे इस मुक़दमे में अभी हाल में ही अहमद को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।

हाल की दुनियां को देखें तो आपको लगभग हर मुल्क में ऐसी घटनाएँ होती दिखेंगी। फ़्रांस का शार्ली हेब्दो वाला मामला हो या भारत के मालदा, टोंक जैसी जगहों पर लगे “सर तन जुदा” के नारे, हर जगह ये असहिष्णुता आपको एक ही समुदाय विशेष के साथ जुड़ी दिख जाएगी। किसी भी किस्म के सुधार, ताज़ी हवा का एक झोंका भी बर्दाश्त करने को ना तैयार होती एक कौम हिंसक तरीकों से अपनी बात मनवाने पर तुली है। 57 इस्लामिक मुल्कों में अल्पसंख्यकों को एक भी सहूलियत ना देने को राज़ी होने वाली बिरादरी को शरणार्थी होने पर भी शरण देने वाले के तौर तरीके बदलवाने होते हैं।

Muslims shout slogans during a protest against the visit of author Salman Rushdie, after offering their Friday prayers, outside Jama Masjid in the old quarters of Delhi March 16, 2012. Rushdie is scheduled to speak at a conference on Friday, under two months after death threats forced the Booker Prize-winning author to pull out of Asia's biggest literary festival, the event organiser said earlier this week. REUTERS/Parivartan Sharma (INDIA - Tags: RELIGION CIVIL UNREST POLITICS)
साभार : गूगल

अब अगर आप सोच रहे हैं कि इस किस्म की वारदातें सिर्फ विदेशों में होती हैं तो आपका ख़याल गलत है। आश्चर्यजनक रूप से इस तरह का धार्मिक विद्वेष इस्लामिक आबादी के बढ़ते ही दिखने लगता है। भारत के उत्तर पूर्व के कई राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। वहीँ पर असम में मुस्लिम आबादी करीब चालीस फीसदी हो गई है (2011 के सेन्सस में 34.22%)। अन्य भारतीय राज्यों की तुलना में असम में मुस्लिम आबादी बढ़ने की दर भी तेज है।

धार्मिक विद्वेष फैलाने का एक ऐसा ही मामला वहां एक प्रचलित पत्रिका पर लगा। आउटलुक नाम की ये पत्रिका षड्यंत्रकारी तरीके से भारत के बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ स्थानीय भावनाएं भड़काने के प्रयास में रत थी। वहां संघ परिवार पर लड़कियों को अगवा करने का बेबुनियाद आरोप लगाकर हिन्दुओं के खिलाफ दुर्भावनाएं भड़काने का प्रयास किया गया। जब मुकदमा दर्ज हुआ और जांच शुरू हुई तो अचानक इस पत्रिका ने कहना शुरू किया कि कवर फीचर लिखने वाली पत्रकार पत्रिका की मुलाज़िम नहीं, बल्कि स्वतंत्र पत्रकार है। अजीब है कि इतनी नामी पत्रिका के फीचर लेख भी स्वतंत्र पत्रकार लिखते हैं, उनके पास काम करने वाले नहीं लिखते। फ़िलहाल मामले पर कानूनी जांच शुरू होते देख कर पत्रिका ने अपने संपादक कृष्णा प्रसाद को निकाल बाहर किया है। ध्यान रहे कि ये एक बड़े मामले का नमूना भर है, हर रोज़ छोटे कॉलम में ऐसी ख़बरें डालते अफवाहबाज गिरोहों के कई गुर्गे आज भी खुद को “निष्पक्ष” पत्रकार घोषित कर रहे हैं। इनसे सतर्क रहने की ज़रूरत है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)