विगत दिनों थाईलैंड के प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओ-चा तीन की भारत यात्रा कई मायनों में खास रही। इस यात्रा में थाईलैंड ने व्यापार रक्षा सहयोग और समुद्री जल व्यापार पर भारत को सहयोग करने की बात कही। भारत-थाईलैंड का यह करार आपसी संबंधों में नई उर्जा का संचार करेगा। थाईलैंड सांस्कृतिक रूप से भारत के जितना करीब रहा है उतनी ही भरोसमंद भी रहा है। अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए दुनियाभर में मशहूर थाईलैंड भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। भारत को सड़क मार्ग से जोड़ने का सपना भी इस द्विपक्षीय संबंध में एक नई इबारत लिखेगा । इससे भारत की दक्षिण-पूर्वी एशिया में आर्थिक पकड़ मजबूत होगी तथा उद्योग व्यापार को नई उंचाई मिलेगी। इसके अलावा समुद्री सुरक्षा करार से हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में सहायता मिलेगी। भारत और थाईलैंड का आपसी संबंध कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस बार से भी लगाया जा सकता है कि विगत दो वर्षों में चार बार दोनों देशों के नेता मिल चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2014 में पूर्वी एशिया सम्मेलन में भाग लेने म्यांमार गए थे तब थाईलैंड के प्रधानमंत्री से अकेले में विशेष मुलाकात कर दोनो देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने को लेकर चर्चा की थी।
रिश्तों की नई इबारत लिखने के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मई 2015 में बैंकाक की यात्रा पर गयी। इस दौरान थाईलैंड के साथ भारत ने दोहरे कराधान से बचने के लिए दोहरा कराधान बचाव संधि (डी.टी.एटी) समेत कई नए करार किए। इसमें 2013 में हस्ताक्षरित प्रत्यर्पण संधि का अनुसर्मथन भी शामिल है। यह संधि भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण के लिए कानूनी तंत्र मुहैया कराती है। नालंदा यूनिवर्सिटी स्थापित करने व थाईलैंड के एक विश्वविद्यालय में आयुर्वेद पीठ की स्थापना को लेकर भी समझौता हुआ। उसके बाद इस साल फरवरी में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी थाईलैंड गए। यह साल में किसी भारतीय उपराष्ट्रपति की पहली आधिकारिक यात्रा थी।
इस बार यह पहल थाईलैंड की ओर से किया गया जब थाई प्रधानमंत्री चान-ओ-चा तीन भारत की यात्रा पर आए। प्रधानमंत्री मोदी और थाई प्रधानमंत्री ने आपसी संबंधों को मजबूत करने तथा सहयोग बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता को दुहराई। थाईलैंड में हिंदू मतावलंबी और बौद्ध धर्म को मानने वालों की संख्या अत्यधिक है रिश्तों में प्रगाढ़ता और आपसी जुड़ाव का एक कारण यह भी है। थाईलैंड में लाखों प्रवासी भारतियों का अपना उद्योग व्यापार है जो वहां के राजस्व और विकास में अपना सहयोग दे रहे हैं वहीं कुछ प्रवासी कामगार भी वहां पर काम कर रहे हैं जिससे भारत को भी आर्थिक लाभ होता है। इस प्रकार दोनो देशों में सांस्कृतिक आर्थिक और सुरक्षा का लेकर जितना विश्वास प्रगाढ़ होगा दोनो देश के लिए उतना ही फायदेमंद साबित होगा। इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आने वाले भविष्य में भारत और थाईलैंड मिलकर आपसी सहयोग की नई इबारत लिखेंगे।
(लेखक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान में रिसर्च एसोसिएट है)