आज सम्पूर्ण भारतवर्ष ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं संवैधानिक दृष्टि से एक है। हमारा संविधान ‘हम भारत के लोग…..’ से शुरू होकर हमारी एकता को रेखांकित करता है। संवैधानिक स्तर पर भारत का कोई भी नागरिक अपने मूल निवास स्थान के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी चुनाव लड़ने के लिए अधिकृत है। यह हमारी एकता का भी प्रमाण है। इसी आधार पर आज गुजराती मूल के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उ.प्र. के वाराणसी संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं। आश्चर्य का विषय है कि देश की ताज़ा राजनीति देश के अंदर ही देश के नेताओं को बाहरी बता रही है। उ.प्र. विधान सभा के चुनावों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का नारा ‘अपने लड़के बनाम बाहरी मोदी’ इस दुर्भाग्यपूर्ण और राष्ट्रीय एकता के लिए घातक क्षेत्रीय मानसिकता को उजागर करता है।
उ.प्र. में कांग्रेस के स्ट्रेटजिस्ट प्रशांत किशोर ने ‘अपने लड़के बनाम बाहरी मोदी’ नारा दिया है। सूत्रों की मानें तो राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी और अखिलेश यादव ने भी इस नारे को स्वीकृति दे दी है। ऐसे नारे न केवल संवैधानिक एकता की उदार भावना के प्रतिकूल हैं, अपितु राष्ट्रीय एकता के लिए भी घातक हैं। यदि क्षेत्रीय राजनीतिक दल, राजनीतिक लाभ लेने के लिए ऐसी संकीर्ण मानसिकता को प्रोत्साहित करें तो उन्हें भी एकता और अखण्डता के लिए हानिकारक ऐसे दुष्प्रचार के लिए क्षमा नहीं किया जा सकता फिर कांग्रेस, सपा जैसे मान्य राष्ट्रीय स्तर के स्थापित दलों द्वारा किया जा रहा ऐसा प्रचार निश्चय ही अक्षम्य अपराध है। चुनाव आयोग को संज्ञान लेते हुए इस सम्बन्ध में आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
उ.प्र. में कांग्रेस के स्ट्रेटजिस्ट प्रशांत किशोर ने ‘अपने लड़के बनाम बाहरी मोदी’ नारा दिया है। सूत्रों की मानें तो राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी और अखिलेश यादव ने भी इस नारे को स्वीकृति दे दी है। ऐसे नारे न केवल संवैधानिक एकता की उदार भावना के प्रतिकूल हैं, अपितु राष्ट्रीय एकता के लिए भी घातक हैं। यदि क्षेत्रीय राजनीतिक दल, राजनीतिक लाभ लेने के लिए ऐसी संकीर्ण मानसिकता को प्रोत्साहित करें तो उन्हें भी एकता और अखण्डता के लिए हानिकारक ऐसे दुष्प्रचार के लिए क्षमा नहीं किया जा सकता फिर कांग्रेस, सपा जैसे मान्य राष्ट्रीय स्तर के स्थापित दलों द्वारा किया जा रहा ऐसा प्रचार निश्चय ही अक्षम्य अपराध है। चुनाव आयोग, न्यायपालिका और जनता को ऐसे दुष्प्रचार पर संज्ञान लेकर आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
भारतीय जनमानस क्षेत्रीय संकीर्णताओं से सदा मुक्त रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व जब देश, देशी रियासतों में बँटा हुआ था तब भी सांस्कृतिक एकता सम्पूर्ण देश में व्याप्त थी। राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाएँ भारतीय समाज में सदा स्वीकृत हुईं। सुदूर केरल में जन्मे शंकराचार्य उत्तर भारत में भी समादृत हुए। राम और कृष्ण केवल अवध अथवा ब्रज तक सीमित नहीं रहे; सम्पूर्ण देश में पूजित हुए। सारे देश में स्थापित उनके मंदिर इस तथ्य के साक्षी हैं। महाराणा प्रताप, शिवाजी और गुरूगोविन्द सिंह जैसे सिंह सपूत सारे देश के लिए वीरता और स्वातंत्र्य चेतना के प्रेरणा स्रोत बने। महाराष्ट्र मूल के लोकमान्य तिलक को सारे देश ने अपना नेता माना। स्वामी विवेकानंद और सुभाष भारतीयों के लिए केवल बंगाली नहीं, अपितु भारतीय हैं; अपने हैं। महात्मा गाँधी हमारे लिए गुजराती नहीं हैं; सारे देश के राष्ट्रपिता हैं। मिसाइल मैंन स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम पर सारा भारतवर्ष गर्व करता है। देश की सीमाओं पर बलिदान होने वाले हर सैनिक की शहादत पर हमारी आँखे भर आती है; हमारे मन आक्रोशित होते हैं। तब हम उसके मद्रासी, बंगाली, पंजाबी आदि होने पर कभी विचार नहीं करते। हमें हर सैनिक अपना लगता है। भारतवर्ष की सीमाओं में जन्म लेने वाला प्रत्येक महापुरूष हमारा अपना है; हमारे लिए समानतः वंदनीय है; हमारी राष्ट्रीय एकता का आधार और भारतीय अस्मिता का प्रतिमान है।
जन मानस क्षेत्रीय संकीर्णताओं से मुक्त होकर एकता के स्वर्ण-सूत्र को पुष्ट करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जब महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी सारे देश के राष्ट्रपति हैं; प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सारे भारतवर्ष के प्रधानमंत्री हैं, तब ‘अपने लड़के बनाम बाहरी मोदी’ जैसे नारों का क्या औचित्य है ? राहुल गांधी और अखिलेश यादव जैसे युवा नेता यदि राष्ट्रीय एकता की महान विरासत की अनदेखी करके सत्ता के लिए ऐसी संकीर्ण मानसिकता को हवा देंगे, तो यह देश की एकता, अखण्डता और संप्रभुता को दूर तक आहत करने वाला कदम होगा। अतः ऐसे दुष्प्रचारों, भ्रामक नारों और राष्ट्रविरोधी विचारों से सावधान रहने की आवश्यकता है। सत्ता में बने रहने और सत्ता को हस्तगत करने की प्रबल इच्छा होना सभी राजनीतिक दलों में सहज स्वाभाविक है; इसके लिए समुचित प्रचार और हरसंभव न्यायसंगत विधिमान्य प्रयत्न किया जाना भी कहीं से कहीं तक अनुचित नहीं है, किन्तु जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि संकीर्णताओं के आधार पर चुनाव जीतने के कूट प्रयत्न कत्तई उचित नहीं कहे जा सकते। अतः सपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों जो कि इस तरह की संकीर्ण राजनीति को प्रश्रय दे रहे हैं, को इस बात को समझते हुए राष्ट्र की एकता व अखंडता को क्षति पहुंचाने वाली ऐसी राजनीति से परहेज करना चाहिए। अन्यथा वे जनमानस के बीच अपनी छवि ही धूमिल करेंगे।
(लेखक उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान, भोपाल, में सहायक-प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)