चुनावी घोषणा पत्र, ये तीन शब्द अपना अर्थ लगभग खो चुके हैं और इसका इस्तेमाल उन वादों के लिए किया जाने लगा है जो या तो पूरे नहीं हो पाते थे या फिर उनके पूरे होने का ख्वाब दिखाकर राजनीतिक अपना उल्लू सीधा करते रहते थे । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने लोक कल्याण संकल्प पत्र जारी किया, जिसमें चुनाव के बाद जनता के सामने उतर प्रदेश को लेकर अपने विज़न को रखा है । बीजेपी के इस लोक कल्याण संकल्प पत्र के जारी होने के बाद कांग्रेस के युवराज के साथ गलबहियां कर रहे अखिलेश यादव ने बीजेपी पर समाजवादी पार्टी के घोषणा पत्र के नकल का आरोप लगाया । अपनी चुनावी रैलियों में अखिलेश ने कहा कि बीजेपी ने उनके चुनावी घोषणा पत्र की नकल की है और सवाल उठाया कि अच्छे दिन कहां हैं । अखिलेश यादव ने दावा किया कि पिछले पांच वर्षों में उनकी रहनुमाई में यूपी में प्रत्येक क्षेत्र में बहुत प्रगति की है । इस सिलसिले में उन्होंने समाजवादी एम्बुलेंस सेवा शुरू करने के साथ-साथ अपराध नियंत्रित करने और लोगों को सुरक्षा मुहैय्या कराने के लिए आपात पुलिस सेवा डायल 100 शुरू करने के लिए अपनी सरकार की पीठ थपथपाई ।
‘सत्ताईस साल यूपी बेहाल’ का नारा देकर यूपी के चुनावी समर में कूदनेवाले राहुल गांधी अब अखिलेश की साइकिल के कैरियर पर बैठ गए हैं । सत्ताईस साल यूपी बेहाल नहीं, सत्तर साल यूपी बेहाल की बात होनी चाहिए । आज़ादी के बाद से सत्तर साल में यूपी की सत्ता पर बीजेपी सिर्फ अलग-अलग वक्त में पांच साल से भी कम वक्त तक के लिए रही है । पैंसठ साल तक तो उत्तर प्रदेश पर कांग्रेस, चरण सिंह, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने ही राज किया । इन पैंसठ सालों में इन लोगों ने क्या किया, इसपर बहस होनी चाहिए ।
इसके अलावा अखिलेश यादव सूबे में मेट्रो और आगरा लखनऊ हाइवे का उदाहरण देकर अपने विकासपुरुष की छवि को पुख्ता करना चाहते हैं । दरअसल यह इस देश का दुर्भाग्य है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी हम सड़क, परिवहन और एंबुलेंस सेवा शुरू कर अपनी पीठ थपथपाते हैं । अखिलेश यादव एक चतुर राजनेता की तरह जनता के सामने पांच साल बाद ये दिखाना चाहते हैं कि वो बहुत काम करना चाहते थे, लेकिन उनके पिता या फिर चाचा ने उनको काम करने नहीं दिया । परिवार के झगड़े की आड़ में उनकी छवि चमकाने की जुगत तो सामने आ ही चुकी है । डायल 100 की जरूरत उनको अपने शासनकाल के पांचवें साल में महसूस हुई जब सूबे में अपराध चरम पर पहुंच गया । जब सरेआम हाइवे पर परिवार को अगवा कर पुरुषों को बंधक बनाकर उनके सामने महिलाओं से गैंगरेप किया गया ।
अपने चुनावी घोषणा पत्र में अखिलेश यादव ने दक्षिण भारत के राज्यों में चुनाव के वक्त रेवड़ियां बांटकर वोटरों को लुभाने जैसी चाल चली है । अगर देखें तो लगभग मुफ्त में गेंहूं, चावल, घी और प्रेशर कुकर देने जैसे वादे किए गए हैं । महिला वोटरों को लुभाने के लिए उनको राज्य टांसपोर्ट की बसों में किराए में पचास फीसदी छूट का वादा किया है । अपने करीब तीस पन्नों के घोषणा पत्र में समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से लैपटॉप बांटने का वादा किया है । बीजेपी पर अपने घोषणा पत्र की नक़ल का आरोप लगानेवाले अखिलेश यादव ने अपने घोषणा पत्र में नीतीश कुमार की नक़ल की है और छात्राओं को साइकिल देने का वादा किया है । इसके अलावा अगर अन्य घोषणाओं पर नजर डालें तो साफ नजर आता है कि ये वही वादें हैं जो दशकों से किए जा रहे हैं । मसलन सड़कें, बिजली, पानी, किसानों के लिए सुविधाएं आदि लेकिन उसका कोई ठोस रोडमैप नहीं है कि किस तरह से वो इन वादों को पूरा करेंगे । इसके उलट अगर हम बीजेपी के संकल्प पत्र पर नज़र डालें तो उसमें फॉर्वर्ड लुकिंग रोडमैप नजर आता है । आम आदमी की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का संकल्प है । स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा और रोज़गार गारंटी को बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र का आधार बनाया है । अब सवाल यही उठता है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी हम बुनियादी सुविधाओं की बात ही क्यों कर रहे हैं ।
‘सत्ताईस साल यूपी बेहाल’ का नारा देकर यूपी के चुनावी समर में कूदनेवाले राहुल गांधी अब अखिलेश की साइकिल के कैरियर पर बैठ गए हैं । सत्ताईस साल यूपी बेहाल नहीं सत्तर साल यूपी बेहाल की बात होनी चाहिए । आज़ादी के बाद से सत्तर साल में यूपी की सत्ता पर बीजेपी सिर्फ अलग-अलग वक्त में पांच साल से भी कम वक्त तक के लिए रही है । पैंसठ साल तक तो उत्तर प्रदेश पर कांग्रेस, चरण सिंह, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने ही राज किया । इन पैंसठ सालों में इन लोगों ने क्या किया, इसपर बहस होनी चाहिए । कांग्रेस सिर्फ ‘सत्ताईस साल यूपी बेहाल’ की बात करती है जबकि कायदे से उसको बात करनी चाहिए कि यूपी में लगभग आधी शती तक उनका राज रहा, लेकिन विकास की बुनियादी जरूरतें क्यों नहीं पूरी हो पाईं । क्यों नहीं शिक्षा और रोजगार के लिए प्रयास किए गए । देश का सबसे बड़ा राज्य होने के बाद भी उत्तर प्रदेश पिछड़ा क्यों रह गया । कांग्रेस के बाद अगर देखा जाए तो मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में विकास के लिए क्या किया । पारिवारिक कलह के निबटारे से अलग हटकर जनता को यह सवाल अखिलेश यादव से पूछना चाहिए । पिता की सियासी विरासत पर अगर वो अपना हक जता रहे हैं तो उनको समग्रता में इस विरासत को अपनाना होगा । सिर्फ सत्ता और पार्टी नहीं बल्कि उनके कार्यकाल में यूपी के विकास नहीं होने के कठिन सवालों को भी अपनाते हुए जवाब देना होगा ।
अखिलेश यादव लगातार इस बात का संकेत देते हैं कि गुंडे उनको बर्दाश्त नहीं लेकिन जिस तरह की गुंडागर्दी उनके शपथ ग्रहण समारोह के फौरन बाद देखने को मिली थी या फिर उनके पांच साल के शासनकाल में बलात्कार और अन्य संगीन इल्जामों की जो फेहरिश्त है, वो हकीकत बयां करते हैं । अखिलेश के मंत्रिमंडल में पांच साल तक कितने दागी मंत्री रहे उनके नाम गिनाने का कोई अर्थ नहीं है । मायावती के कार्यकाल में भ्रष्टाचार की याद दिलाने की जरूरत है क्या ? सीएमओ से लेकर चीफ इंजिनियरों तक को पैसे नहीं देने पर क्या गत बनाई जाती थी, यह उत्तर प्रदेश की जनता भूली नहीं है । इस चुनाव में जनता को इन राजनीतिक दलों से ये सवाल पूछना चाहिए कि आजादी के बाद भी सूबे में इतनी गरीबी क्यों हैं ? शिक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं हैं, स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी लचर क्यों हैं ? अब वो दिन लद गए कि जनता जाति-पांति और भावनात्मक मुद्दों में भटक कर वोट डालेगी । उसको तो ठोस विकास की रूपरेखा और उसको पूरा करने की इच्छाशक्ति वाला नेता चाहिए ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)