जिस वक्त राज्यपाल राम नाईक दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन संबोधित कर रहे थे, उसी बीच समाजवादी नेता लगातार सीटियां बजाने लगे। इसी दौरान उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पीछे खड़े होकर मुस्कुरा रहे थे। ये विधानसभा और विधानपरिषद का संयुक्त सत्र था। अपने विधायकों के इस कदाचरण पर अखिलेश यादव का मौन बने रहना इस कुकृत्य पर न केवल उनकी सहमति ज़ाहिर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि विधानसभा चुनाव में मिली भीषण हार के बाद भी उनके तथाकथित समाजवाद की अकड़ नहीं कम हुई है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा में विगत सोमवार को समाजवादी पार्टी के विधायकों ने जिस तरह का आचरण किया, उससे लोकतंत्र कलंकित हुआ है। वे जिस तरह से माननीय राज्यपाल राम नाईक पर कागज के गेंदें उछल रहे हैं, वो बेशक शर्मनाक है। उत्तर प्रदेश एक दौर में देश की प्राण और आत्मा माना जाता था। कहते थे, जो उत्तर प्रदेश आज सोचता है, उसे शेष देश दो दिनों के बाद सोचता है।
पर, हाल ही में राज्य विधानसभा के चुनाव में धूल में मिल गई समाजवादी पार्टी के बचे-खुचे विधायक हंगामा काटते रहे राज्यपाल के अभिभाषण के वक्त। जिस वक्त राज्यपाल राम नाईक दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन संबोधित कर रहे थे, उसी बीच समाजवादी नेता लगातार सीटियां बजाने लगे। इसी दौरान उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पीछे खड़े होकर मुस्कुरा रहे थे। ये विधानसभा और विधानपरिषद का संयुक्त सत्र था। अपने विधायकों के इस कदाचरण पर अखिलेश यादव का मुस्कुराना दिखाता है कि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद भी उनके समाजवाद का चरित्र वैसा ही अकड़ वाला है।
दरअसल राज्यपाल राम नाईक के अभिभाषण के पढ़ना शुरू करते ही विपक्षी सदस्यों ने जोरदार हंगामा शुरू कर दिया और सपा विधायकों ने राज्यपाल की ओर कागज के गोले फेंकने चालू कर दिए। उन्हें नाईक से दूर रखने के लिये सुरक्षाकर्मियों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। सपा विधायकों ने जहाँ सीटियाँ बजाईं और राज्यपाल पर कागज़ उछाले, वहीँ बसपा और कांग्रेस के विधायकों ने बैनर-पोस्टर लहराए। मंगलवार को देश भर के अखबारों में उस शर्मनाक कृत्य के चित्र देखे। क्या देश के सबसे बड़े राज्य की विधानसभा की कार्यवाही इस तरह से चलेगी? क्या लोकतांत्रिक परम्पराओं और मर्यादाओं को इस तरह से तार-तार किया जाएगा? देश को इन सवालों पर विचार करना होगा।
और तो और, समाजवादी पार्टी के विधायक राज्यपाल का पूरा अभिभाषण सुनने की विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित की अपील को भी मानने को राजी नहीं थे। समाजवादी पार्टी (सपा) ने पहले ही घोषणा की थी कि वह सरकार को कानून-व्यवस्था तथा कुछ अन्य मुद्दों पर घेरेगी। यहां तक तो ठीक है। विपक्ष को जम्हूरियत में सरकार को घेरने या कसने का अधिकार प्राप्त है। लेकिन, विपक्ष का सोमवार का व्यवहार किसी भी दृष्टि से वाजिब नहीं माना जा सकता।
हद तो यह है कि जिस समाजवादी पार्टी को राज्य की जनता ने उसके लचर काम के चलते नकार दिया, वो ही हंगामा कर रही है। उसे बीते विधानसभा चुनाव में 60 से भी कम सीटें मिली हैं। अंदरूनी कलह के कारण वैसे भी तार-तार हो रही इस पार्टी के चरित्र को सारा देश देख चुका है। इतनी करारी हार झेलने के बाद भी इसके नेताओं की आंखें शर्म से नहीं झुकीं। ये जनता के आदेश को समझ नहीं पा रहे हैं।
दुर्भाग्यवश उत्तर प्रदेश की विधानसभा हाल के सालों में कोई बहुत शानदार उदाहरण देश के सामने पेश नहीं कर पाई है। बेशक, यह भारत के प्रजातांत्रिक इतिहास के कुछ ऐसे कारनामों की गवाह रही है, जिन्हें देश याद नहीं रखना चाहेगा। एक उम्मीद थी कि बदलते वक्त के साथ उत्तर प्रदेश विधानसभा का माहौल भी अधिक रचनात्मक होने लगेगा। उधर सही तरीके से प्रदेश की जनता के हित में योजनाएं बनने लगेगीं। पर समाजवादी पार्टी के सदस्यों के घोर अराजक रवैये के बाद उस उम्मीद को धक्का लगा है।
राज्यपाल पर कागज के गोले छोड़ने वाले विधायक यह भूल गए कि राज्यपाल का पद संवैधानिक पद है। वो राजनीतिक पद नहीं है। और अगर राजनीतिक पद भी होता तो क्या राम नाईक जैसे वरिष्ठ नेता पर कागज के गोले फेंके जाने चाहिए? क्या उनके अभिभाषण के दौरान सिटी बजाई जानी चाहिए थी? समाजवादी पार्टी के सदस्यों की हरकतों के बावजूद राम नाईक अपना अभिभाषण पढ़ते रहे। उस दौरान वे विपक्षी सदस्यों के रवैये को सवालिया नजरों से देखते और इशारों में आपत्ति जताते रहे।
क्या राम और कृष्ण का उत्तर प्रदेश अपने बड़े-बुजुर्गों का मान–सम्मान करना भूल गया है? क्या समाजवादी पार्टी के विधायकों को इतनी-सी बात भी नहीं पता है कि राज्यपाल के अभिभाषण में राज्य सरकार की उपलब्धियों और योजनाओं का उल्लेख होता है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में करीब 14 साल बाद भाजपा की सरकार बनी है। अभिभाषण में राज्य सरकार की भावी योजनाओं का ब्यौरा था। पर, समाजवादी पार्टी के सदस्यों को इससे कोई सरोकार नहीं था। साफ है कि समाजवादी पार्टी का नेतृत्व विधानसभा चुनाव में अपनी शर्मनाक हार को पचा नहीं पाई है। इसलिए उसके विधायक टुच्ची हरकतों को कर रहे हैं।
इस विधानसभा सत्र के दौरान वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक पारित कराया जाएगा। बेहतर होता कि समाजवादी पार्टी के विधायक उसकी तैयारी करते। लेकिन, उन्हें मार्गदर्शन देने वाले अब मेच्योर नेता कहां हैं? सरकार को एक जुलाई से जीएसटी लागू करना है। लेकिन समाजवादी पार्टी को जीएसटी से क्या लेना-देना। अगर वो जनता से जुड़े सवालों पर काम कर रही होती तो जनता उसकी इतनी दुर्गति तोड़ी करती।
(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)