हेमू कालाणी ने ‘इंकलाब-जिंदाबाद’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते हुए खुद अपने हाथों से फांसी का फंदा अपने गले में डाला, मानो वे फूलों की माला पहन रहे हों। जब फांसी दिए जाने के पूर्व हेमू कालाणी से उनकी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मां भारती की गोद में पुनः जन्म लेने की इच्छा प्रकट की। मात्र 19 वर्ष की आयु में अमर शहीद हेमू कालाणी का प्राणोत्सर्ग सदैव याद रखा जाएगा एवं अंग्रेजों को भारत से भगाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हजारों वन्दनीय वीरों को जब जब याद किया जाएगा तब तब उनमें सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर बलिदानी हेमू कालाणी को भी सदैव याद किया जाएगा।
इतिहास गवाह है कि मां भारती को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से चलाए गए स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में देश के कोने कोने से कई वीर सेनानियों ने भाग लिया था। इन वीर सेनानियों में से भारत के कई वीर सपूतों ने तो मां भारती के श्री चरणों में अपने प्राण भी समर्पित कर दिए थे। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में भी, उस समय पर भारत का अभिन्न अंग रहे, सिंध प्रांत की भूमिका अग्रणी रही है।
देश सेवा के इस पुनीत कार्य में सिंध प्रांत के कई वीर सेनानियों ने अपने प्राणों की बाजी भी लगा दी थी। भारत के इन्हीं वीर सपूतों में अमर बलिदानी हेमू कालाणी का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है क्योंकि उन्हें बहुत ही कम उम्र, मात्र 19 वर्ष की आयु में दिनांक 21 जनवरी 1943 को क्रूर अंग्रेजी शासन द्वारा फांसी दे दी गई थी।
अमर बलिदानी हेमू कालाणी का जन्म अविभाजित भारत के सक्खर, सिंध प्रांत में 23 मार्च 1923 को हुआ था। आपके पिता का नाम श्री पेसूमल जी कालाणी एवं माता का नाम श्रीमती जेठीबाई कालाणी था। जब हेमू कालाणी की आयु मात्र सात वर्ष की थी, तब इस अल्पआयु में भारतमाता का तिरंगा लेकर अपने मित्रों के साथ अंग्रेजों की बस्ती में जाकर निर्भीक होकर भारत माता को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने की दृष्टि से की जा रही सभाओं की व्यवस्थाओं में उत्साहपूर्व भाग लेते थे।
हेमू कालाणी अपनी पढ़ाई-लिखाई पर भी पूरा ध्यान देते हुए एक अच्छा तैराक तथा धावक बनने का प्रयास कर रहे थे। तैराकी की कई प्रतियोगिताओं में तो वे कई बार पुरस्कृत भी हुए थे। बचपन से ही हेमू कालाणी एक कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। हेमू कालाणी अपने बचपन काल से ही राष्ट्रवाद की भावना से भी ओतप्रोत थे एवं अपनी किशोरावस्था में ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का आग्रह विभिन्न ग्रामों में निवास कर रहे नागरिकों से करते थे एवं उस समय पर भी सिंध प्रांत के नागरिकों में स्वावलम्बन का भाव जगाने का प्रयास आपके द्वारा किया जा रहा था।
कुछ समय बाद तो हेमू कालाणी ने अंग्रेजों की क्रूर हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प ही ले लिया था और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भी भाग लेना शूरू कर दिया था। अत्याचारी अंग्रेजों द्वारा संचालित सरकार के विरुद्ध छापामार गतिविधियों में भाग लेकर उनके वाहनों को जलाने में हेमू कालाणी अपने साथियों का नेतृत्व भी करने लगे थे। यह भी एक अद्भुत संयोग ही कहा जाएगा कि हेमू कालानी की जन्मतिथी एवं अमर शहीद भगतसिंह जी की पुण्यतिथी एक ही है, अर्थात 23 मार्च।
वर्ष 1942 में, पूरे भारत वर्ष के साथ ही, सिंध प्रांत की जनता ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध उग्र आंदोलन की शुरुआत की थी जिससे क्रांतिकारी गतिविधियों में बहुत तेजी आई। हेमू कालाणी भी अन्य कई नवयुवकों के साथ इस आंदोलन से जुड़ गए थे और उन्होंने इस दौर में सिंधवासियों में जोश और स्वाभिमान का संचार कर दिया था।
चूंकि हेमू कालाणी अपने बचपन काल से ही सिंध प्रांत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सम्पर्क में रहे थे अतः एक बार वर्ष 1942 में उन्हें अपने साथियों के माध्यम से यह गुप्त जानकारी मिली कि बलूचिस्तान में चल रहे उग्र आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से 23 अक्टोबर 1942 की रात्रि में अंग्रेजी सेना, हथियारों एवं बारूद से भरी, रेलगाड़ी में सिंध प्रांत के रोहड़ी शहर से होकर सक्खर शहर से गुजरती हुई बलूचिस्तान के क्वेटा शहर की ओर जाने वाली है।
प्राप्त हुई इस गुप्त सूचना के आधार पर हेमू कालाणी ने अपने कुछ साथियों को इकट्ठा कर आनन फानन में एक योजना बनाई कि किस प्रकार रेल की पटरियां उखाड़कर इस रेलगाड़ी को गिराया जाए ताकि अंग्रेजी सेना का भारी नुकसान हो सके।
बस फिर क्या था, रात्रि काल में अत्यंत गुपचुप तरीके से कुछ साथी मिलकर उस स्थान पर पहुंच गए जहां रेल की पटरियों को नुकसान पहुंचाने का निर्णय लिया गया था। वहां पहुंचकर उन्होंने रिंच और हथौड़े की सहायता से रेल की पटरियों की फिशप्लेटों को उखाड़ने का कार्य प्रारम्भ कर दिया। परंतु पास ही में पुलिस की एक टुकड़ी पहरा दे रही थी।
उन्होंने रेल की पटरियों पर किए जा रहे प्रहार की आवाजें सुन लीं और वे तुरंत वहां पहुंच गए जिस स्थान पर हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल के पटरियों को नुकसान पहुंचाने का कार्य कर रहे थे। पुलिस को आते देख हेमू कालाणी के दो साथी तो भाग खड़े हुए परंतु हेमू कालाणी पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए।
हेमू कालाणी पर कोर्ट में केस चलाया गया और वहाँ जब जब भी उनसे पूछा गया कि आपके साथ और कौन से साथी थे तो उनका जवाब था कि मेरे साथी तो केवल रिंच और हथौड़ा ही थे। सक्खर की कोर्ट ने हेमू कालाणी को, उनकी मात्र 19 वर्ष की अल्पायु होने के कारण, देशद्रोह के अपराध में आजीवन कारावास की सजा प्रदान की।
जब उक्त निर्णय को अनुमोदन के लिए हैदराबाद (सिंध) स्थित सेना मुख्यालय में भेजा गया तो सेना मुख्यालय के प्रमुख अधिकारी कर्नल रिचर्डसन ने हेमू कालाणी को ब्रिटिश राज का खतरनाक शत्रु मानते हुए उनकी आजीवन कारावास की सजा को फांसी की सजा में परिवर्तित कर दिया।
हेमू कालाणी की अल्पायु को देखते हुए सिंध के गणमान्य नागरिकों ने कोर्ट में एक पिटीशन फाइल की एवं अंग्रेज वायसराय से आग्रह किया कि हेमू कालाणी को दी गई फांसी की सजा को निरस्त किया जाय। अंग्रेज वायसराय ने इस आग्रह को एक शर्त के साथ स्वीकार किया कि हेमू कालाणी रेल के पटरियों को नुकसान पहुंचाने वाले अपने अन्य साथियों के नाम अंग्रेज प्रशासन को बताएं। परंतु, हेमू कालाणी ने वायसराय की इस शर्त को नकारते हुए खुशी खुशी फांसी पर चढ़ जाना बेहतर समझा और इस प्रकार 21 जनवरी 1943 को प्रातः सात बजकर 55 मिनट पर अंग्रेजों द्वारा हेमू कालाणी को फांसी दे दी गई।
हेमू कालाणी ने ‘इंकलाब-जिंदाबाद’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते हुए खुद अपने हाथों से फांसी का फंदा अपने गले में डाला, मानो वे फूलों की माला पहन रहे हों। जब फांसी दिए जाने के पूर्व हेमू कालाणी से उनकी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मां भारती की गोद में पुनः जन्म लेने की इच्छा प्रकट की। मात्र 19 वर्ष की आयु में अमर शहीद हेमू कालाणी का प्राणोत्सर्ग सदैव याद रखा जाएगा एवं अंग्रेजों को भारत से भगाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हजारों वन्दनीय वीरों को जब जब याद किया जाएगा तब तब उनमें सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर बलिदानी हेमू कालाणी को भी सदैव याद किया जाएगा।
वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के समय लाखों की संख्या में हिंदू सिंधियों ने सिंध से विस्थापित होकर भारत को अपनी माता मानते हुए भारत के विभिन्न राज्यों में अपना घर बसा लिया और अपनी महान भारतीय संस्कृति को अपनाए रखना उचित समझा। हालांकि हिंदू सिंधियों के उस वक्त के सबसे बुरे दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी सिंध क्षेत्र में हिंदू सिंधियों की बहुत सार्थक मदद की थी।
भारत के विभाजन के पूर्व सरसंघचालक माननीय गोलवलकर “गुरु जी” ने सिंध क्षेत्र में पहुंचकर स्वयंसेवकों को आदेश दिया था कि देश का विभाजन होने की स्थिति में हिंदू सिंधियों को भारत में लाने में पूर्ण मदद की जाय एवं तब तक कोई भी स्वयंसेवक इस क्षेत्र को न छोड़े जब तक समस्त हिंदू सिंधी भारत की ओर प्रस्थान नहीं कर लेते। उस समय सिंध क्षेत्र में 75 प्रचारक एवं 450 पूर्णकालिक कार्यकर्ता सेवारत थे। इस प्रकार उस समय के कठिन दौर में संघ ने हिंदू सिंधियों की पूर्ण मदद की थी जिसके कारण आज हिंदू सिंधी मां भारती के आंगन में रच बस गए है।
अमर बलिदानी हेमू कालाणी द्वारा मां भारती के श्रीचरणों में अर्पित किए गए अपने प्राणों के बलिदान को 21 जनवरी 2023 को 80 वर्ष पूर्ण होंगे एवं 23 मार्च 2023 को आपका 100वां जन्म दिवस होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से अखिल भारतीय स्तर पर सेवा कार्य कर रही संस्था ‘भारतीय सिंधु सभा’ द्वारा दिनांक 31 मार्च 2023 को भोपाल नगर में अमर शहीद हेमू कालाणी को श्रद्धांजली अर्पित करने के उद्देश्य से बहुत बड़े स्तर पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी के भाग लेने की भी संभावना है। इस आयोजन में पूरे देश से सिंधी एवं अन्य समस्त समुदायों के 125,000 से अधिक नागरिक भाग लेकर अमर शहीद हेमू कालाणी को अपनी श्रद्धांजली अर्पित करेंगे।
(फीचर फोटो साभार : Prabhasakshi)
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)