अभी लखनऊ में अंतरराष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन किया गया। रामायण महोत्सव में रामायण से सम्बन्धित प्रदर्शनियां भी आयोजित की गयीं, जिसमें राम संस्कृति की विश्व यात्रा की प्रदर्शनी, रामलीलाओं के मुकुट मुखौटे, वेशभूषा अस्त्र-शस्त्र की प्रदर्शनी, दिव्यांग बच्चों द्वारा रामकथाओं पर आधारित चित्रकला प्रदर्शनी, विदेशी रचनाकारों के पोट्रेट की प्रदर्शनी तथा उर्दू फारसी ग्रन्थों में रामकथा का चित्रण है। इसके अलावा रामायण मसीही, रामायण ‘खुश्तर’ ग्रन्थ, रामायण यक काफिया एवं मुकम्मल रामायण आदि विषयक प्रदर्शनियों का आयोजन किया गया।
रामकथा और रामलीला केवल भारत तक ही सीमित नहीं हैं, विश्व के अनेक देशों में व्यापक पैमाने पर रामलीला का आयोजन होता है। इंडोनेशिया मुस्लिम देश है, फिर भी यहां रामलीला बहुत लोकप्रिय है। यहां के लोग स्वीकार करते हैं कि श्री राम उनके पूर्वज हैं। यह बात अलग है कि उनकी उपासना पद्धति अलग है। गत वर्ष अयोध्या में भव्य दीपावली मनाई गई थी, उसमें कोरिया की महारानी मुख्यातिथि के रूप में शामिल हुई थीं। उनका कहना था कि वह भी श्री राम की वंशज हैं।
ब्रिटिश राज्य में गिरमिटिया मजदूर बनकर गरीब भारतीय मॉरीशस, त्रिनिदाद, फिजी आदि अनेक देशों में गए थे। ये अपने साथ रामचरित मानस की प्रति लेकर गए थे। सदियों बाद भी ये अपने को श्रीराम का वंशज बताने में गर्व का अनुभव करते हैं। यहां भी रामलीला बहुत लोकप्रिय है। यहां कई स्थानों में मंच की जगह मैदान में रामलीला होती है। बड़ी संख्या में दर्शक उसका अवलोकन करते हैं। कम्बोडिया में रामलीला मंचन का अलग रूप है।
अभी लखनऊ में अंतरराष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन किया गया। इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित सहित बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। इसमें रामायण के विशेषकर लव कुश प्रसंग का चित्रण नृत्य नाटिका के माध्यम से किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के अन्तर्गत यह प्रसंग फिजी की प्रस्तुति में दिखाया गया।
फिजी में भारतीय मूल के लोग बहुमत में हैं। तब उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनकी समृद्धशाली भारतीय संस्कृति, धार्मिक विरासत, पारम्परिक लोकसंगीत, लोकगीत, महाकाव्यों में रामायण और भगवद्गीता, जो कि हमारी सबसे कीमती धरोहर है, को वह अपने साथ लेकर गए। यह धरोहर और विरासत आज भी फिजी में पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित है।
रामायण महोत्सव में रामायण से सम्बन्धित प्रदर्शनियां भी आयोजित की गयीं, जिसमें राम संस्कृति की विश्व यात्रा की प्रदर्शनी, रामलीलाओं के मुकुट मुखौटे, वेशभूषा अस्त्र-शस्त्र की प्रदर्शनी, दिव्यांग बच्चों द्वारा रामकथाओं पर आधारित चित्रकला प्रदर्शनी, विदेशी रचनाकारों के पोट्रेट की प्रदर्शनी तथा उर्दू फारसी ग्रन्थों में रामकथा का चित्रण है। इसके अलावा रामायण मसीही, रामायण ‘खुश्तर’ ग्रन्थ, रामायण यक काफिया एवं मुकम्मल रामायण आदि विषयक प्रदर्शनियों का आयोजन किया गया।
यह लखनऊ में पहली बार अंतरराष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन हुआ था। इसमें थाईलैण्ड, श्रीलंका, बांग्लादेश, माॅरिशस, कम्बोडिया, फिजी और त्रिनिदाद एवं टोबैगो देशों की रामलीला प्रस्तुतियां आयोजित की गईं। इन सभी देशों में नियमित रूप से रामलीला आयोजित होती है। जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते है। इन सभी की रामलीला प्रस्तुति में अंतर है, वस्त्र और सज्जा में भी भिन्नता है। लेकिन मूलभाव एक जैसा है। सभी की रामकथा में आस्था है, ये सभी श्री राम को अपना पूर्वज मानते हैं। उपासना पद्धति अलग होने के बाद भी इन देशों में रामलीला व्यापक रूप से मनाई जाती है।
लखनऊ में ऐशबाग रामलीला की प्रतिष्ठा भी दूर दूर तक है। कुछ वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे देखने ऐशबाग आये थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तो अक्सर यहाँ आते थे। इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह रामलीला देखने आए। उन्होंने परंपरागत ढंग से कलाकारों का स्वागत किया। वैसे भी योगी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
यहां उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सांस्कृतिक एकता और सनातन आस्था का प्रतीक हैं। उनसे सभी को प्रेरणा मिलती है। आम जनमानस प्रभु श्रीराम के साथ अपने को जोड़ता है। श्रीराम के प्रति लोगों की आस्था रामलीला को सतत जीवन्तता प्रदान करती है। रामलीला हमारे अतीत की समृद्ध परम्परा से जुड़ती है। भारत ने सदैव मानवता के कल्याण के लिए आदर्श प्रस्तुत किए। प्रभु श्रीराम से हमें उच्च आदर्शों और मूल्यों की प्रेरणा मिलती है। भारत की परम्परा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के बिना अधूरी है।
वास्तव में गुरु-शिष्य, भाई-भाई, माता-पुत्र, पिता-पुत्र और पति-पत्नी सभी संबंधों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र प्रेरणा देता है। रामराज्य की अवधारणा, सर्वांगीण विकास, सर्वसमावेशी, सर्वस्पर्शी समाज की रही है। यह लोक कल्याण की भावना से प्रेरित है। रामराज्य एक आदर्श राज्य के रूप में जाना जाता है।
इसके अलावा श्रीगणेश और जगतजननी दुर्गा जी के सार्वजनिक उत्सव हमारे समाज में समरसता को अभिव्यक्त करते हैं। आदिकाल से हमारे देश में प्रथमपूज्य श्री गणेश व शक्तिस्वरूपा जगदम्बा की आराधना होती रही है।
यह पर्व केवल व्रत और उपवास का नहीं, बल्कि नारी शक्ति और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है। शारदीय नवरात्रि में दुर्गा पूजा के सार्वजनिक एवं सामुदायिक आयोजन से सामाजिक समरसता सुदृढ़ होती है। यह पर्व हमारे मन और विचारों को पवित्र बनाता है। इसी के साथ दुर्गा पूजन उत्सव में समरसता का भाव भी दिखाई देता है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)