‘यूपी से हूँ, हाँ योगी जी वाले यूपी से’

आप उत्तर प्रदेश के किसी भी तबके का चयन करके उसके साथ बात करें, चाहें वो कामगार हो या विद्वान। इस बातचीत में उत्तर प्रदेश के 2022 के चुनाव के सन्दर्भ में एक बात जो सामान्य तौर पर निकल कर आएगी वो ये कि, ‘योगी जी ईमानदार हैं’ और जब एक विश्लेषक के तौर पर मैं इस बात की समीक्षा करता हूँ तो पाता हूँ कि ये ईमानदारी सामान्य ‘आर्थिक संसाधनों की ईमानदारी’ से आगे निकल कर ‘व्यक्तित्व की ईमानदारी’ पर ठहरती है। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों पर आ रहे अनेक विश्लेषण में एक पक्ष जो छूट सा रहा है वो योगी आदित्यनाथ की व्यक्ति के तौर पर ईमानदारी और पारदर्शिता भी है।

एक शानदार नेतृत्वकर्ता होना आग पर चलने जैसा काम है। इस आग में नेतृत्वकर्ता हर क्षण निष्पक्षता की कसौटी पर कसा जायेगा। उसका हर कार्य और उसका हर बयान को दुनिया के नजरिये से देखा जायेगा। उसके खुद के विचारों और नजरिये पर दुनिया भर की सीमाएं लगेंगी। उसको फाइलों पर अपने हस्ताक्षरों से डर लगेगा और कई निर्णय और कई लोग निर्णायक मौकों पर उसे ठगेंगे बावजूद इसके सारे इल्ज़ाम भी नेतृत्वकर्ता के सर ही होंगे लेकिन इन सब के बावजूद देश के एक प्रदेश में एक नेतृत्वकर्ता ऐसा भी है जो हर रोज जमीन पर बिस्तर बिछा के सोता है और ये तय करता है कि मैं तय राहों पर चलने के लिए नहीं बल्कि उन्हीं तय ढर्रों को बदलने के लिए घर और परिवार छोड़कर आग पर चलने आया हूँ।

कोई भी शहर या समाज दशकों तक अनदेखा होने को अभिशप्त नहीं हो सकता हर ऐसे अँधेरे वाली जगहों पर रोशनियों के विद्यालय खुलने की हमेशा संभावना रहती है और इस वातावरण में अगर वो रोशनी वाला पथ प्रदर्शक स्वयं को अपने परिवार के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करके आया हो तो उससे बेहतर क्या हो सकता है ! एक ऐसा पथ प्रदर्शक जिसके लिए ‘स्वदेशो भुवनत्रयम’ है अर्थात वह त्रैलोक्य का नागरिक है, वह वर्गहीन है और वो पूर्वाश्रम से अलग है।

हाँ, उस नेतृत्वकर्ता का नाम योगी आदित्यनाथ है।

कोई भी सेना हो, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि जय और पराजय की मुख्य जिम्मेदारी उसके सेनापति की ही होती है। वैसे भी नेतृत्व क्षमता किताबों से नहीं सीखी जाती, वो तो हमारे भीतर ही होती है। हमारे साथ ही बड़ी होती है और फिर अवसरों को पा कर प्रदर्शित भी होती है और निखरती भी जाती है।

पूर्वांचल में मासूमों को शिकार बनाने वाली इन्सेफेलाइटिस चार दशक से कहर बरपा रही थी। 1978 से 2017 तक 50 हजार से ज्यादा मासूमों की मौतें हुईं थीं। सेनापति बदला और युद्ध की रणनीति बदली और फिर दस्तक अभियान द्वारा गांव की आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, प्राथमिक शिक्षक, एएनएम और ग्राम प्रधान के साथ ही सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टर को ट्रेनिंग दी गई।

गांव में इलाज के लिए सीएचसी में तीन-तीन बेड के मिनी आईसीयू बनाए गए, जिला अस्पताल में पीडियाट्रिक आईसीयू में पांच बेड बढ़ाए गए, सभी में आधुनिक वेंटिलेटर लगाए गए और अब लगभग उत्तर प्रदेश इस जानलेवा इन्सेफेलाइटिस के प्रकोप से मुक्त हो गया है। विजयदशमी पर दंडाधिकारी की भूमिका निर्वहन करने वाले योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस तरीके से इन्सेफेलाइटिस को ‘दंड’ दिया, उसने कई परिवारों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी है।

साभार : Business Today

राजनीति का वो क्षेत्र जहाँ खुद को बेहतर साबित न कर पाने पर दूसरे को बदतर बताने की होड़ मची रहती हो, वहां अगर कोई राज्य प्रमुख ये कहे कि देश के सेनापति के अनुशासन में बंधे होने और प्रदेश के करोड़ों लोगों की सुरक्षा के प्रति जवाबदेही की वजह से वो अपने पिता की अंत्येष्टि पर नहीं जाएगा तो इसे राज्य प्रमुख की नैतिकता का सोपान क्यों ना माना जाए !

हालाँकि इस महान देश में परिवारजनों  की मृत्यु के बाद भी कर्तव्यपरायणता ना छोड़ने के अधिसंख्य उदाहरण पहले से उपस्थित हैं लेकिन उन सभी उदाहरणों के बीच हमें ये जानना जरूरी होगा कि योगी आदित्यनाथ की घटना दूसरे उदाहरणों की तरह केवल पिता की मृत्यु की सूचना तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये अन्त्येष्टि में ना जाने के निर्णय तक विस्तार पाती है।

स्वामी शंकराचार्य जी भी अपनी माँ की मृत्यु के अंतिम संस्कार में शामिल होने आए थे, स्वामी विवेकानंद भी सन्यास लेने के बाद माँ को भारत दर्शन करवाने के लिए ले जाते हैं लेकिन योगी आदित्यनाथ, पिता के अंतिम दर्शन की इच्छा के बावजूद राजधर्म निभाना जरूरी समझते हैं और अविचल नेतृत्वकर्ता की तरह स्वयं ही नहीं बल्कि परिवारजनों से भी अंत्येष्टि में सोशल डिस्टेंसिग का पालन करने को कहते हैं। ऐसे ही लोग होते हैं जिनके कंधों पर सभ्यताएं, धर्म और प्रतीक जिंदा रहते हैं।

आप उत्तर प्रदेश के किसी भी तबके का चयन करके उसके साथ बात करें, चाहें वो कामगार हो या विद्वान। इस बातचीत में उत्तर प्रदेश के 2022 के चुनाव के सन्दर्भ में एक बात जो सामान्य तौर पर निकल कर आएगी वो ये कि, ‘योगी जी ईमानदार हैं’ और जब एक विश्लेषक के तौर पर मैं इस बात की समीक्षा करता हूँ तो पाता हूँ कि ये ईमानदारी सामान्य ‘आर्थिक संसाधनों की ईमानदारी’ से आगे निकल कर ‘व्यक्तित्व की ईमानदारी’ पर ठहरती है। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों पर आ रहे अनेक विश्लेषण में एक पक्ष जो छूट सा रहा है वो योगी आदित्यनाथ की व्यक्ति के तौर पर ईमानदारी और पारदर्शिता भी है।

पिछले कई दशकों में देश के समाचार पत्र घोटालों की खबरों से इतना भरे रहे कि भ्रष्टाचार का अर्थ केवल आर्थिक गड़बड़ी तक सिमट गया और हम ये भूलते गए कि सामाजिक जीवन में व्यक्ति जो असल में है, उसे नहीं दिखाना भी एक बड़ा भ्रष्टाचार है।

इन्हीं असमंजस के बीच उत्तर प्रदेश में नए – नए मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ का एक बयान आता है कि ‘मैं हिन्दू हूँ इसलिए मैं ईद नहीं मनाता।’ लोग चौंक जाते हैं, कुछ इसे विवादास्पद बयान मानते है, कुछ भड़काऊ बयान मानते हैं लेकिन अब, जब योगी आदित्यनाथ अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ ले चुके  हैं तब ये स्थापित हो चुका है कि भड़काऊ और विवादास्पद की जगह ये बेहद ईमानदार बयान था।

उस समय जब उत्तर प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल अपने घोषित उम्मीदवारों में एक जाति विशेष के प्रत्याशियों की जाति को हटाते हुए उनके नाम की घोषणा कर रहा था तब फिर से योगी आदित्यनाथ का बयान आता है कि ‘उन्हें क्षत्रिय होने पर गर्व है, इस जाति में पैदा होना कोई अपराध नहीं।’ लोग फिर चौंकते हैं कि ये बयान भस्मासुर का काम करेगा, ये तो जाति दम्भ है लेकिन कहानी फिर वहीं लौटती है और जनता अपने मतों द्वारा स्थापित करती है कि सही-गलत से अलग ये बेहद ईमानदार बयान था।

साभार : Live Law

योगी आदित्यनाथ का हर बयान और काम राज्य की राजनीति को पारदर्शी बनाता जा रहा था और समाज के हर वर्ग और भविष्य के हर राजनीतिक फैसलों पर यह गहरा असर कर रहा था। पिता की मृत्यु पर उनके अंतिम दर्शन को ना जाने वाले योगी आदित्यनाथ जब बहन के जिक्र मात्र पर भावुक हो जाते हैं तो उनकी ईमानदारी लोगों तक पहुँची। जब मुख्यमंत्री निवास पर अपने निजी सामान में एक गठरी मात्र का योगी आदित्यनाथ ने जिक्र किया तो उनकी वो ईमानदारी लोगों तक पहुँची। योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को चुनावों के लिए सबसे बेहतर स्थिति दे दी। जनता के सामने योगी आदित्यनाथ एक नेता के तौर पर बिल्कुल स्पष्ट और पारदर्शी रूप में खड़े थे, कुछ ढका -छिपा नहीं।

योगी आदित्यनाथ की इसी सहजता ने चुनाव को भाजपा के लिए आसान बना दिया। जिन योगी आदित्यनाथ ने अपने मुख्यमंत्री पद के पूरे कार्यकाल के दौरान आदर्श स्वरुप बनने के लिए कोई नकली प्रयास नहीं किया उन्होंने ही चुनाव के दौरान भी 80/20 की साफगोई रखी। योगी आदित्यनाथ की इसी ईमानदारी और पारदर्शिता ने एंटी इंकम्बेंसी के चिथड़े उड़ा दिए।

योगी आदित्यनाथ लगातार देश-दुनिया मुझे देख रही है जैसे प्रभावों से दूर रहे। सांसद के पहले कार्यकाल से मुख्यमंत्री के दूसरे कार्यकाल तक योगी आदित्यनाथ बिल्कुल नहीं बदले, कोई दिखावा नहीं, पल-पल बदलती विचारधारा नहीं, तेवर मे कमी नहीं और अभिनय तो बिल्कुल नहीं। उम्मीद है अपने दूसरे कार्यकाल में भी योगी आदित्यनाथ ऐसे ही सहज बने रहेंगे क्यूँकि उनकी ये सहजता ही हिंदी पट्टी की राजनीति को स्पष्ट और पारदर्शी बनाने मे सहायक होगी।

योगी आदित्यनाथ के गुरु अब नहीं रहे, पूर्वाश्रम का वो नाम भी नहीं लेते। उनका इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर कोई कागजी हिस्सा नहीं है। वैसे भी लोग असल में धरती का हिस्सा नहीं खरीदते बल्कि धरती उनके घुमंतू जीवन का एक अहम हिस्सा खरीद लेती है लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अपवादों के भी अपवाद हैं। वो एक ऐसी पीठ से आये हैं जिसका इतिहास और दर्शन एक आध्यात्मिक सत्ता, गोरक्षा और जातिवाद से ऊपर सभी को बराबर रखने का रहा है।

यहाँ मकर संक्रांति के दिन नेपाल से लेकर भारत तक खिचड़ी चढ़ाने वालों की जाति कभी नहीं पूछी जाती। इसके द्वारा उत्तर में विश्व हिन्दू परिषद के साथ दलितों के लिए मंदिरों का निर्माण कराया गया। यहाँ के महंत खुद काशी के डोमराजा के यहां भोजन करते थे। महाराणा प्रताप ट्रस्ट और सामाजिक एकता यहीं जन्म लेती है। ऐसे पीठ से निकलकर आने वाला व्यक्ति अगर इस वक्त 23 करोड़ लोगों का राज्य प्रमुख है तो हमें अब निश्चिन्त हो जाना चाहिए क्योंकि मर्यादाओं को सामने रखकर एक स्वर्णिम इतिहास को बनते हुए हम अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं।

फीचर फोटो साभार : ABP LIVE

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)