सरकार ने वित्त वर्ष, 2019 के बजट में “आयुष्मान भारत” कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना (एनएचपीएस) नाम से एक नई योजना की घोषणा की है। इसके अंतर्गत प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का प्रस्ताव है। इस योजना के माध्यम से 10 करोड़ से अधिक गरीब परिवार (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) लाभान्वित होंगे और माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर इन्हें प्रति परिवार 5 लाख रुपये तक स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान किया जायेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड की राजधानी रांची से प्रधानमंत्री “आयुष्मान भारत” कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना (एनएचपीएस) की औपचारिक शुरुआत 23 सितंबर, 2018 को की। इस योजना को ‘मोदी केयर’ के नाम से भी जाना जाता है। इसे आजादी के बाद की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना माना जा रहा है। इस योजना के तहत गरीब परिवारों को पाँच लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराया जाएगा।
प्रधानमंत्री के अनुसार यह वैश्विक स्तर पर आदर्श स्वास्थ्य योजना साबित होगी। आबादी के दृष्टिकोण से देखा जाये तो अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको की कुल आबादी से ज्यादा लोग इस योजना के दायरे में हैं। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से घोषणा की थी कि इस योजना की शुरुआत 25 सितंबर, 2018 से की जायेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार गरीबों को इलाज की सुविधा मुहैया कराने के लिये सरकार शिद्दत से कोशिश कर रही है। इस योजना के तहत करीब 13,000 अस्पतालों में इलाज मुहैया कराया जाएगा। लाभार्थियों को गोल्ड कार्ड जारी किया जायेगा, लेकिन इलाज के लिये लाभार्थियों को अनिवार्यतः कार्ड नहीं ले जाना होगा। बिचौलिये और फर्जीवाड़ा से बचाव हेतु लाभार्थियों के उंगलियों के निशान लिये जायेंगे, ताकि उनके पहचान का बायोमेट्रिक की मदद से सत्यापन किया जा सके। आप इस योजना के दायरे में आते हैं या नहीं, यह योजना की वेबसाइट पर जाकर देख सकते हैं।
फिलहाल, 26 राज्यों ने इस योजना को अपने यहाँ लागू करने की सहमति दी है। इन राज्यों में अस्पतालों की सूची बनाने का काम चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार आगामी कुछ सालों में दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में 2500 से अधिक अस्पताल खोले जाने का अनुमान है, जिससे यह योजना और भी प्रभावशाली हो सकेगी।
झारखंड में योजना की स्थिति
झारखंड के कुल 68 लाख परिवारों में से राज्य सरकार 57 लाख परिवारों को स्वास्थ्य बीमा मुहैया करायेगी। इनमें से 25 लाख परिवार आयुष्मान भारत योजना के तहत आयेंगे। शेष 32 लाख परिवार भी इस योजना का लाभ ले सकेंगे, लेकिन उनकी किस्त का भुगतान राज्य सरकार करेगी। झारखंड में प्रति परिवार सालाना बीमा किस्त 900 रुपये है। इस राज्य ने हाइब्रिड योजना का विकल्प चुना है। 1,00,000 रुपये से अधिक के दावों का निपटारा एक ट्रस्ट के माध्यम से किया जायेगा।
फिलहाल, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज किया जाता है, लेकिन इस योजना के लागू होने के बाद लाभार्थियों का इलाज करने पर सरकारी अस्पतालों को इलाज का भुगतान किया जायेगा, जिससे जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की विविध योजनाओं के सुचारु संचालन के लिये राशि की स्वीकृति हेतु सरकार पर से निर्भरता कम होगी। इस योजना की उपयोगिता को देखते हुए हरियाणा सरकार भी इसे अपने यहाँ अपनाने पर विचार कर रही है।
क्या है योजना
सरकार ने वित्त वर्ष, 2019 के बजट में “आयुष्मान भारत” कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना (एनएचपीएस) नाम से एक नई योजना की घोषणा की थी। इसके अंतर्गत प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का प्रस्ताव है। इस योजना के माध्यम से 10 करोड़ से अधिक गरीब परिवार (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) लाभान्वित होंगे और माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर इन्हें प्रति परिवार 5 लाख रूपये तक स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान किया जायेगा।
आज गरीब लोगों के स्वास्थ्य के प्रति सरकार की संवेदनशीलता समय की जरूरत है। कई विकसित एवं विकासशील देशों में ऐसी योजना 40 के दशक में ही लागू कर दी गई थी। उदाहरण के तौर पर सार्वभौमिक स्वास्थ्य योजना को जापान ने 1938, जर्मनी ने 1941 और बेल्जियम ने 1945 में लागू किया था।
राज्यवार अनुभव
वर्तमान में भारत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) चल रहा है, जिसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराना है। इसके अंतर्गत 5 सदस्यीय परिवार को अस्पताल भर्ती खर्च के लिये 30,000 हजार रूपये तक फ्लोटर आधार पर भुगतान किया जाता है। वर्ष 2017 में आरएसबीवाई के तहत लाभार्थी परिवारों की संख्या लगभग 3.65 करोड़ थी, जो कुल पात्र परिवार का 61% था।
इस तरह, राशि और कवरेज दोनों दृष्टिकोण से इस योजना को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है। दूसरी चीज कि सभी राज्यों में आरएसबीवाई अभी भी लागू नहीं है। जैसे, आंध्र प्रदेश में यह योजना लागू नहीं है। इसकी जगह वहाँ राजीव आरोग्य श्री योजना चल रही है।
जम्मू एवं कश्मीर और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहाँ आधिकारिक तौर पर आरएसबीवाई को लागू किया गया है, लेकिन सितंबर, 2016 से इन दोनों राज्यों के किसी भी जिले में किसी परिवार ने इस योजना के लिये अपने को पंजीकृत नहीं किया है। कर्नाटक और तमिलनाडू के केवल कुछ ही जिलों में आरएसबीवाई को लागू किया गया है। वहाँ, दूसरे जिलों में राज्य द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएं चल रही हैं। साफ है, स्वास्थ्य बीमा की सुविधा सभी राज्यों में उपलब्ध नहीं है। जहाँ उपलब्ध है वहाँ भी सभी को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में इस मोर्चे पर देशभर में समानता लाने की जरूरत है।
अन्य महत्वपूर्ण बातें
मई 2015 में सरकार ने ‘जन सुरक्षा योजना’ के तहत 2 कम लागत वाली बीमा योजनाएं शुरू की थी। दोनों बीमा योजनाओं के लिये बैंक खातों में ऑटो डेबिट के माध्यम से बीमा का हर साल नवीनीकरण किया जा रहा है। इन दोनों बीमा योजनाओं के लिये समाज के सभी वर्गों का अच्छा प्रतिसाद मिला था, जिसका कारण कम बीमा प्रीमियम था। आज की तारीख में इस योजना के तहत 19 करोड़ बीमा पॉलिसी पंजीकृत हैं और लगभग 18 करोड़ नई पॉलिसियां बीमा कंपनियों द्वारा जारी की गई हैं। इस योजना की सफलता से साफ हो जाता है कि सरकार समर्थित बीमा योजना की सफलता की संभावना ज्यादा रहती है।
कहा जा सकता है कि एनएचपीएस की प्रारंभिक लागत बाजार अनुमान, जो 12,000 करोड़ रूपये है, से कम रहेगी। सरकार ने बजट में 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किया है और 11,000 करोड़ रुपये उपकर के जरिये जुटाने का प्रस्ताव है। इसमें कोई परेशानी भी नहीं है, क्योंकि शुरू के वर्षों में दावा अनुपात कम होने का अनुमान है। आम तौर पर ऐसी योजनाओं के लोकप्रिय होने में समय लगता है। उदाहरण के तौर पर शुरू के सालों में आरएसबीवाई के दावे कम आये थे। वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान इसका दावा अनुपात 87% था, जो वित्त वर्ष 2016-17 में बढ़कर 122% हो गया।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)