अमित शाह साधारण विषय पर असाधारण निर्णय लेने वाले व्यक्ति हैं। आने वाला यह साल उनके लिए काफ़ी अहम है। चुनौतियों से भिड़ना और बाधाओं को पार करना उनकी आदत के रूप में मशहूर है, सो आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों की चुनौतियों से वे कैसे निपटते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपने जीवन काल के 54 साल पूरे कर 55वें बसंत में प्रवेश कर रहे हैं। यह उनके जीवन काल का अत्यंत अहम पड़ाव है, क्योंकि आगे पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव भाजपा उनके नेतृत्व में लड़ने जा रही है। जाहिर तौर पर अमित शाह की यह इच्छा होगी कि जब वह अपना 55वां साल पूरा कर रहे हों, तब भाजपा का वो स्वर्णिम काल चल रहा हो, जिसकी कल्पना उन्होंने की है।
देखा जाए तो भाजपा वर्तमान समय में अपने इतिहास के सबसे स्वर्णिम दौर से गुजर रही है, किन्तु, आज भी अमित शाह संतुष्ट होकर बैठने की स्थिति में नही हैं, बल्कि अत्यधिक ऊर्जा के साथ संगठन को विस्तार देने में लगे हुए हैं। सवाल उठता है कि आखिर अमित शाह के नजरिये से भाजपा का स्वर्णिम काल कौन सा होगा?
इसको समझने के लिए हमें दक्षिण की तरफ़ झांकना होगा जहाँ भाजपा उत्तर भारत के बरक्स मजबूत दिखाई नहीं देती। सो, पूर्वोत्तर के त्रिपुरा, असम, नगालैंड जैसे राज्यों में अपनी रणनीति के दम पर भाजपा को स्थापित करने वाले शाह का अगला मिशन इसी दक्षिण को फतह करना है, जिसके लिए वह दिन-रात परिश्रम करने में लगे हुए हैं।
त्रिपुरा में 25 वर्षों से गड़े वाम किले को उखाड़ने के पश्चात् अमित शाह की नजरें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर हैं, जहाँ भाजपा सत्ता से दूर तो है ही, इसके साथ–साथ विगत चुनावों में भाजपा को जनसमर्थन भी उम्मीद के अनुरूप नहीं प्राप्त हो सका। सो अब शाह की नजर दक्षिण पर है और उनकी रणनीति उसके अनुरूप आकार ले रही है।
यहाँ उल्लेखनीय होगा कि अमित शाह की रणनीति केवल चिड़िया की आँख देखती है, चिड़िया अथवा पेड़ नहीं। वे लक्ष्य पर केन्द्रित ही नहीं होते, उसे प्राप्त करने तक कर्मठ भाव से लगे भी रहते हैं। इस बात को ठीक से समझने के लिए हमें त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड जीत और उससे पूर्व की परिस्थितियों पर नजर डालनी होगी।
दरअसल 2013 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, लेकिन परिणाम यह निकला कि भाजपा को एक भी सीट हांसिल नहीं हुई। यहाँ तक कि 49 उम्मीदवार अपनी जमानत भी बचाने में सफ़ल नही हुए और इस चुनाव में भाजपा को मात्र 1.87 फ़ीसदी वोट के साथ संतोष करना पड़ा। परन्तु, पांच साल बाद त्रिपुरा के राजनीतिक परिदृश्य में जो बदलाव हुआ, उसका अंदाज़ा किसी को नहीं था।
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 43 फ़ीसदी वोटों के साथ 35 सीटों पर विजय प्राप्त कर सीधे सत्ता में पहुँच गयी। यह शून्य से शिखर की यात्रा थी। यह जीत लोगों के लिए अप्रत्याशित थी और इस बात का प्रमाण भी कि अमित शाह के हौसले कितने बुलंद हैं। साथ ही, उनका चुनाव प्रबंधन, सोशल इंजीनियरिंग केवल उत्तर भारत ही नहीं वरन देश के हर राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने तथा उसे बदलने का माद्दा रखता है। यही कारण है कि दक्षिण के राज्यों में भी अमित शाह भाजपा को नए सोपान गढ़ते देखने के लिए उत्सुक और प्रयत्नशील हैं। और शायद यही उनके लिए भाजपा के स्वर्णकाल की कल्पना भी है।
गौर करें तो शाह का ध्यान रणनीति बनाते हुए चुनाव-पूर्व सफ़लता या विफलता के आकलन से अधिक इस बात पर केन्द्रित रहता है कि आगामी चुनाव में पार्टी कैसे तय लक्ष्य को हांसिल करे। इसीके मद्देनजर वह पार्टी की नीतियों तथा चुनावी योजनाओं का निर्माण कर स्वयं उसे अमल में लाने के लिए कठिन परिश्रम करते हैं।
आज उनके आलोचक भी यह बात मानते हैं कि भारत के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य वह सबसे अधिक परिश्रमी पार्टी अध्यक्ष हैं। आज अमित शाह को भाजपा का सबसे सफलतम अध्यक्ष कहा जाता है, तो इसके पीछे केवल राजनीतिक विस्तार ही कारण नहीं है, वरन कई ऐसे और महत्वपूर्ण बिंदु भी हैं, जिनकी चर्चा कम होती है।
मसलन अध्यक्ष बनने के उपरांत अमित शाह ने सबसे पहले पार्टी को पूरी तरह से तकनीक से जोड़ते हुए पार्टी कार्यालयों का आधुनिकीकरण करने की दिशा में कदम बढ़ाया। शाही खर्चे पर अंकुश लगाने के लिए अमित शाह ने पदाधिकारियों से आग्रह किया कि होटल की बजाय सरकारी गेस्टहाउस में ठहरने को प्राथमिकता दें। यही नहीं, चुनाव को छोड़ दें तो राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पदाधिकारियों के लिए चार्टेड बिमान पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिए गए। यह न केवल अन्य नेताओं के लिए निर्धारित नियम है, बल्कि अमित शाह खुद भी पार्टी के इस नियम का पालन करते हैं।
इसके अलावा अमित शाह ने पार्टी के केन्द्रीय स्तर से लेकर राज्य तथा जिला इकाइयों तक पुस्तकालय एवं ग्रंथालय का निर्माण करवाकर पार्टी की अध्ययन परम्परा को बल दिया। जब राजनीति में सक्रिय लोग पठन–पाठन से विमुख हो रहे हैं, ऐसे समय में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अमित शाह अपने नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को इससे जोड़ रहे हैं। इसे एक अनूठे प्रयास के तौर पर देखा जाना चाहिए।
कुल मिलाकर अमित शाह साधारण विषय पर असाधारण निर्णय लेने वाले व्यक्ति हैं। आने वाला यह साल उनके लिए काफ़ी अहम है। चुनौतियों से भिड़ना और बाधाओं को पार करना उनकी आदत के रूप में मशहूर है, सो आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों की चुनौतियों से वे कैसे निपटते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)