महात्मा गांधी खुद चुनावी राजनीति में शामिल नहीं थे, लेकिन उनके विचार धर्म और राजनीति को लेकर स्पष्ट थे। आज भले ही कुछ ख़ास विचारधारा के लोगों द्वारा हिंदुत्व को लेकर एक नकरात्मक बहस चलाने की कोशिश की जाती हो, लेकिन महात्मा गांधी का मानना था कि हिंदुत्व के रास्ते पर चलकर राजनीतिक श्रेष्ठता को हासिल किया जा सकता है।
आज जब राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को लेकर बेमानी बहस होती रहती है, ऐसे समय में हमारे लिए इन विषयों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को जानना जरूरी हो जाता है। आज अगर कोई हिंदुत्व या राष्ट्रवाद की बात करता है, तो उसे एक ख़ास विचारधारा से जुड़ा हुआ मानकर नीचा दिखाने का प्रयत्न किया जाने लगता है। लेकिन देखा जाए तो महात्मा गांधी इन बिन्दुओं यानी राष्ट्रवाद और अपनी धार्मिक पहचान को लेकर स्पष्ट एवं प्रतिबद्ध थे।
इसकी चर्चा बापू ने अपनी आत्मकथा सहित कई महान विचारकों के साथ अपनी बातचीत में भी की है। एक बार डॉक्टर एस. राधाकृष्णन ने महात्मा गांधी से कुछ रोचक सवाल पूछे थे, जिसके जवाब में बापू ने जो कहा था, उसका उल्लेख करना समीचीन होगा। राधाकृष्णन ने पूछा था कि आपका धर्म क्या है? आपके जीवन पर धर्म का कैसा असर रहा है? हमारे सामाजिक जीवन में धर्म की क्या उपयोगिता है?
पहले प्रश्न के जवाब में गांधीजी ने कहा था, “मेरा धर्मं हिंदुत्व है, हिंदुत्व ही मानवता का धर्म है, जितने धर्मों को मैं जानता हूँ, उनमें यही सर्वश्रेष्ठ धर्म है।“ महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के बड़े पुजारी थे, उन्होंने दूसरे प्रश्न के जवाब में कहा कि उनके लिए सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर ही सत्य है। नियमित प्रार्थना में मुझे सत्य ही ईश्वर के पास ले जाता है। उन्होंने आगे कहा कि वह अपने धर्म यानि हिंदुत्व को सत्य का धर्म मानते हैं।
तीसरे प्रश्न के जवाब में गांधीजी ने कहा, “सत्य के प्रति समर्पित रहने से इंसान का पूरा जीवन ही बदल जाता है। हिंदुत्व मुझे मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करता है। मैं जितनी गहराई से हिंदुत्व का पालन करता हूँ, मेरा इसमें विश्वास और अधिक गहरा होता जाता है। मेरे लिए हिंदुत्व ब्रह्माण्ड से भी ज्यादा व्यापक है।”
महात्मा गांधी खुद चुनावी राजनीति में शामिल नहीं थे, लेकिन उनके विचार धर्म और राजनीति को लेकर स्पष्ट थे। आज भले ही कुछ ख़ास विचारधारा के लोगों द्वारा हिंदुत्व को लेकर एक नकरात्मक बहस चलाने की कोशिश की जाती है, लेकिन महात्मा गांधी का मानना था कि हिंदुत्व के रास्ते पर चलकर राजनीतिक श्रेष्ठता को हासिल किया जा सकता है।
गरीबों और वंचितों की सेवा के लिए महात्मा गांधी को वेदों से प्रेरणा मिली थी। इन्हीं विचारों को आधार बनाकर महात्मा गांधी ने अपने राजनीतिक विचारों को आयाम दिया था। आज़ादी के आन्दोलन में सत्य, अहिंसा, त्याग, उपवास और तपस्या की भावना उन्हें वेदों और हिंदुत्व से ही मिली।
महात्मा गांधी ने उच्चतम धार्मिक मूल्यों को साथ लेकर राजनीति में निःस्वार्थ सेवा की भावना को राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में संचारित किया। महात्मा गांधी की छवि आने वाले कई सौ वर्षों तक न सिर्फ भारत में अपितु पूरी दुनिया में लोगों के मनो-मस्तिष्क में बसी रहेगी। आज महात्मा गांधी को याद रखने का सबसे बड़ा तरीका यही है कि उनके धार्मिक संदेशों को समझें और ग्रहण करें।
भारत के नैतिक कद को और अधिक बढाने के लिए यह ज़रूरी है कि हम अपने सनातनी संस्कृति और उसके मूल्यों को अपने सामाजिक और धार्मिक जीवन में ज्यादा से ज्यादा समाहित करें। समाज में व्याप्त जातिवाद, भ्रष्टाचार, क्षेत्रवाद, आतंकवाद यह कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिन्हें अपने धार्मिक विश्वासों पर कायम रहकर दूर किया जा सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)