वे समस्त विद्याओं के ज्ञाता हैं; अष्ट सिद्धि-नौ निधि पर अधिकार रखते हैं; शास्त्र-शस्त्र दोनों के प्रयोग में निपुण हैं और एक महान बुद्धि के स्वामी हैं, परंतु इन बातों का प्रभाव कभी अपने व्यवहार में नहीं दिखने देते। किसीसे भी मिलते-जुलते बोलते-बतियाते पूरे सहज रहते हैं। गुरुभक्ति के साथ-साथ ये उनकी सहजता का भी उदाहरण है कि वे अपने समक्ष कहीं न ठहरने वाले एक चंचल-चपल वानर सुग्रीव के मंत्री बन जाते हैं।
पवनपुत्र हनुमान जी रामकथा के संभवतः एकमात्र ऐसे प्रमुख पात्र हैं जिनकी उपस्थिति इस कथा में तो प्रमुखता से है ही, इसके बाहर भी बड़ी सक्रियता से वे उपस्थित दिखाई देते हैं। रामकथा में बजरंगबली का महत्व इसीसे समझ सकते हैं कि इसमें लगभग पूरा एक काण्ड उनकी लीलाओं को समर्पित है और वो काण्ड रामायण का ‘हृदय‘ कहा जाता है। वहीं इस कथा के बाहर उनकी चर्चा वेद-पुराणों और महाभारत तक में इतनी बिखरी हुई है कि उसे संकलित कर गीताप्रेस पूरा हनुमान अंक ही प्रकाशित कर चुका है।
हनुमान की ये व्याप्ति ग्रंथों और कथाओं में जैसे है, वैसे ही लोकमानस में भी वे प्रतिष्ठित हैं। क्या बालक, क्या वृद्ध और क्या युवा, हनुमान समान रूप से सबको भाते हैं। एक छोटे बच्चे को भी हनुमान इतने आकर्षित कर लेते हैं कि उनपर एनिमेशन फिल्में बन जाती हैं, तो वहीं ‘कूल ड्यूड‘ कही जाने वाला युवाओं का वर्ग भी उनके मंदिर के सामने से गुजरते हुए जल्दबाजी में ‘हाय हनु‘ बोलने में नहीं झिझकता।
पहलवानी का शौक पाले गबरू जवान को हनुमान अपने आदर्श दिखते हैं, तो लाठी टेककर चलने वाले वृद्ध को वे भक्ति मार्ग के प्रदर्शक व पूज्य दिखाई देते हैं। वे एक असमर्थ-अशक्त के भी प्रिय हैं, तो दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति रह चुके बराक ओबामा भी हमेशा अपने पास उनकी एक मूर्ति रखकर चिंतामुक्त रहते हैं। इन उदाहरणों से समझा जा सकता है कि लोक में हनुमान जी की व्याप्ति कितनी विराट है।
हनुमान सबको प्रिय हैं, तो इसका कारण उनके चरित्र में निहित है। उनके दो प्रमुख गुण हैं – सहजता और सकारात्मकता।
वे समस्त विद्याओं के ज्ञाता हैं; अष्ट सिद्धि-नौ निधि पर अधिकार रखते हैं; शास्त्र-शस्त्र दोनों के प्रयोग में निपुण हैं और एक महान बुद्धि के स्वामी हैं, परंतु इन बातों का प्रभाव कभी अपने व्यवहार में नहीं दिखने देते। किसीसे भी मिलते-जुलते बोलते-बतियाते पूरे सहज रहते हैं। गुरुभक्ति के साथ-साथ ये उनकी सहजता का भी उदाहरण है कि वे अपने समक्ष कहीं न ठहरने वाले एक चपल वानर सुग्रीव के मंत्री बन जाते हैं।
उनके पिता केसरी अपने क्षेत्र के राजा हैं, परंतु हनुमान न राजा बनते हैं न ही इसका मिथ्या गौरव लेकर ही चलते हैं। वे अपने भाव में एकदम सहज विनम्रता धारण किए रहते हैं। यही नहीं, कठिन से कठिन परिस्थिति में भी उनकी सहजता भंग नहीं होती। सहज रहकर ही वे बड़े-बड़े संकटों का मोचन कर संकटमोचक बन जाते हैं।
सकारात्मकता, बजरंगबली का दूसरा प्रमुख गुण है। तुलसी के हनुमान तो खैर ईश्वरीय आभा ही लिए हुए हैं, सो उनके चिंतित होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। परन्तु वाल्मीकि के हनुमान भी किसी भी परिस्थिति में चिंतन ही करते हैं, चिंतित नहीं होते; और उनके चिंतन की दिशा प्रायः सकारात्मक होती है। वे समस्या से अधिक उसके समाधान पर चिंतन करते हैं, मन ही मन तीव्रता से योजना बनाते हैं और तत्पश्चात उसी गति से उसे क्रियान्वित करने भी निकल पड़ते हैं।
यथा, समुद्रलंघन के बाद जब वे माता सीता को देखते हैं तो उनके अकेले होते हुए भी सीधे उनके सम्मुख नहीं जाते, अपितु छिपकर पहले पूरी स्थिति को समझते हैं, उन्हें पूरी रामकथा सुनाकर विश्वास में लेते हैं फिर सीता के कहने पर उनके सामने जाते हैं।
यदि वे अनायास सीता के सम्मुख चले जाते तो अविश्वास में सीता शोर मचा सकती थीं या कुछ भी अप्रत्याशित व अप्रिय कर सकती थीं। इसलिए पहले वे उनके मन में कुछ विश्वास उत्पन्न करते हैं फिर सामने जाते हैं।
यहाँ भी एक समस्या उत्पन्न होती है कि सीता अचानक प्रश्न कर देती हैं कि राम-लक्ष्मण अपनी सेना सहित समुद्र पार कर यहाँ कैसे आएँगे? इस प्रश्न पर उस समय तक राम के दल में हनुमान समेत किसीने कोई विचार नहीं किया होता है, परन्तु पवनपुत्र यहाँ भी नहीं चूकते और सीता के मनोबल और विश्वास को दृढ़ रखने के लिए कहते हैं कि मैं उन्हें अपने कंधे पर बिठाकर ले आऊंगा और शेष वानर भी आकाशमार्ग से आ जाएंगे (हनुमान अंक)। इस कथन में आंशिक असत्य है, परन्तु समयोचित है।
लौटते हुए सीता से उनकी भेंट के प्रमाणस्वरूप चूड़ामणि और वाटिका विध्वंस के द्वारा शत्रु के बल की थाह लेना नहीं भूलते। रावण के दरबार में बंधनयुक्त होने और पूँछ जलाई जाने की घोषणा पर भी विचलित नहीं होते, अपितु मन ही मन इस संकट से ही समाधान निकालकर, शत्रु को क्षति पहुंचा सकुशल अपने दल के पास लौट भी जाते हैं।
इसी प्रकार लक्ष्मण शक्ति के समय जब औषधि लाने की बात होती है, तो हनुमान पर ही विश्वास किया जाता है। यहाँ भी उनके सम्मुख औषधि को पहचानने का संकट है, क्योंकि औषधियां चार हैं और लक्ष्मण को केवल एक चाहिए। समय भी इतना नहीं कि गहन निरीक्षण कर उनकी पहचान की जाए।
परन्तु हनुमान तो हनुमान हैं! वे जाने से पूर्व ही इस विषय में निश्चय कर लेते हैं कि यदि पहचान न हुई तो औषधि से सम्बंधित पर्वत का हिस्सा ही ले आएंगे। वे वही करते हैं। क्या यह सब बिना सुचिंतित योजना के अनायास हो सकता था? नहीं।
यह सब इसलिए संभव हुआ कि हनुमान की दृष्टि सदैव सकारात्मक होती थी और इसी दृष्टि से वे हर समस्या को देखते थे। सत्य ही कहा गया है कि – ‘पवनपुत्र के कोश में शब्द असंभव नाहि’। निष्कर्षतः पवनपुत्र की कार्यकुशलता का एक रहस्य उनकी यह सकारात्मकता भी है।
कलयुग में आठ अमर विभूतियों के होने की बात कही जाती है, जिनमें से एक अपने हनुमान जी भी हैं। त्रेता और द्वापर के बाद अब कलियुग के मानव को भी कहीं बैठे देख-परख रहे हैं। सो यदि आप हनुमान जी के भक्त हैं, तो उनकी पूजा तो अपनी इच्छानुसार कीजिये ही, परन्तु उससे पूर्व अपने भीतर अहंकार, कुटिलता, हताशा और दीनता जैसे भावों को आने से पूरी शक्ति लगाकर रोकिये।
हर परिस्थिति में पवनपुत्र का नाम लेकर सहज व सकारात्मक रहिये, क्योंकि क्या पता कहीं दूर किसी पर्वत कंदरा में बैठे बजरंगबली राम-राम जपते हुए अपने भक्तों की कथनी-करनी को निहार रहे हों।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)