भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है, जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की पट्टी का श्वेत रंग शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता और वृद्धि का सूचक है। सफ़ेद पट्टी पर बने चक्र को धर्म चक्र कहते हैं, जो जीवन की गतिशीलता, देश की प्रगति और न्याय को प्रतीकात्मक रूप में बताता है।
राष्ट्रध्वज को फहराने का अधिकार नागरिकों के मूलभूत अधिकार और अभिव्यक्ति के अधिकार का एक हिस्सा है। यह अधिकार संसद द्वारा कुछ खास परिस्थितियों में बाधित किया जा सकता है। ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19 में उल्लेखित किये गये हैं। इस खण्ड में यह भी कहा गया है कि नागरिकों के द्वारा राष्ट्रध्वज का सम्मान किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायलय के 22 सितंबर, 1995 के निर्णय के अनुसार भी भारत का हर नागरिक राष्ट्रीय ध्वज के घ्वजारोहण के लिए स्वतंत्र है, लेकिन किसी भी नागरिक को राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का अधिकार नहीं है।
पहली बार, राष्ट्रीय ध्वज को 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया, जिसे लाल, पीला और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। सबसे ऊपरी नीली पट्टी में आठ सितारे बने थे, जिसमें कमल का खिलता हुआ फूल अंकित था। बीच की पीली पट्टी में देवनागरी लिपि में वंदे मातरम लिखा हुआ था। प्रत्येक छोर पर सूर्य और सितारा तथा एक छोटा सा अर्धचंद्र पीले रंग की पट्टी पर अंकित था।
दूसरी बार, पेरिस में मैडम कामा द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को फहराया गया। पुनश्च: मैडम कामा और कुछ क्रांतिकारियों ने 1907 में इसे फहराया, जो पहले वाले झंडे के लगभग समान था। इसमें एक ही अंतर था। इसकी सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल अंकित था, लेकिन सात तारों की आकृति सप्तऋषि के प्रतीक के रूप में बने थे।
इस झंडे को बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था। 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने एक सम्मेलन का आयोजन किया, जहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाकर महात्मा गांधी जी को दिया, जो दो रंगों यथा लाल और हरे रंगों में रंगा था। लाल रंग हिंदू समुदाय का प्रतीक था और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का। गांधी जी ने सुझाव दिया कि दूसरे बचे हुए समुदायों के प्रतीक के रूप में इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति को इंगित करने के लिये एक चलते हुए चरखे का समावेश किया जाये। इससे इसकी सार्थकता बढ़ जायेगी।
तदुपरांत, 1931 में पिंगाली वेंकैय्या ने एक नया झंडा बनाया, जिसके बीच में चरखा बना हुआ था। वर्ष 1931 में ही तिरंगा को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिये प्रस्ताव पारित किया गया था, लेकिन कांग्रेस समिति ने इसे मंजूरी नहीं दी।
इस साल अपनाये गये झंडे में केसरिया, सफेद, हरा रंग था और मध्य में चरखा बना हुआ था, जिसे मौजूदा राष्ट्रीय ध्वज का मिलता-जुलता स्वरूप देश को आजादी मिलने के बाद राष्ट्रीय ध्वज में चरखे की जगह मौर्य सम्राट अशोक के कालखंड में बने आशोक स्तंभ में अंकित धर्म चक्र का समावेश किया गया।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंगों की क्षैतिज पट्टियां समानुपात आकार में बनी हुई हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी है। ध्वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र मौर्य सम्राट अशोक के कार्यकाल में बने अशोक स्तंभ, जो सारनाथ में स्थित है, से लिया हुआ है।
इसमें 24 तीलियां है। 18 जुलाई, 1947 को हमारे तिरंगा को एक मानक रुप प्रदान किया गया और भारत के राष्ट्रध्वज को 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने स्वीकार किया था और 26 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अंगीकार किया गया।
भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है, जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की पट्टी का श्वेत रंग शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता और वृद्धि का सूचक है। सफ़ेद पट्टी पर बने चक्र को धर्म चक्र कहते हैं, जो जीवन की गतिशीलता, देश की प्रगति और न्याय को प्रतीकात्मक रूप में बताता है।
ब्यूरो ऑफ इंडियन स्डैंडर्ड्स ने झंडे के निर्माण करने के लिये कुछ मानक तय किये हैं। इस मानक में कपड़े के प्रयोग, डाई का इस्तेमाल, रंग, धागे, फहराने के तौर-तरीके आदि के संबंध में बरती जानी वाली सावधानियों का जिक्र किया गया है। उदाहरण के तौर पर तिरंगा को सिर्फ खादी के कपड़ों से बनाया जाना चाहिए। इसके निर्माण में डाई, रंग और धागों का प्रयोग किया जाता है। झंडा बनाने के लिए दो तरह की खादी का प्रयोग किया जाता है।
एक प्रकार की खादी से कपड़ा बनाया जाता है और दूसरी प्रकार की खादी से टाट बनाया जाता है। खादी से बनने वाली टाट की बुनाई विशेष तरीके से की जाती है, जो परंपरागत बुनाई से अलग होती है। परंपरागत खादी की बुनाई में दो धागों का इस्तेमाल किया जाता है तो खादी के टाट की बुनाई में तीन धागों का इस्तेमाल।
ब्यूरो ऑफ इंडियन स्डैंडर्ड्स ने 1951 में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज के लिये दिशा-निर्देश तय किये थे, जिसे 1964 में संशोधित किया गया। 17 अगस्त 1968 में इसे पुनः संशोधित किया गया। वर्ष 2002 में ध्वज संहिता में पुनः संशोधन किया गया। तत्पश्चात भारतीय नागरिक अपने घरों, कार्यालयों और अन्य स्थानों पर राष्ट्रीय दिवस एवं आम दिवसों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिये स्वतंत्र हो गये, लेकिन सहिंता में साफ तौर पर चेताया गया है कि इससे जुड़े दिशा-निर्देशों का अक्षरश पालन करना सभी के लिये जरूरी है।
बैंगलुरू से लगभग 550 किमी दूर स्थित बगालकोट जिले के खादी ग्रामोद्योग और धारवाड़ के निकट गदग में तिरंगा के कपड़े को काता और बुना जाता है। केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडे के लिए उपयुक्त माना जाता है। यह कपास, रेशम और ऊन से बना होता है।
तिरंगे को तीन अलग-अलग रंगो में डाई किया जाता है। डाई किए हुए कपड़े बैंगलुरू से 420 किमी स्थित हुबली भेजा जाता है, जहां इन्हें झंडे के आकार के मुताबिक अगल-अलग आकारों में काटा जाता है। कटे हुए कपड़े को हुबली में सिला जाता है। हुबली स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग को राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण और आपूर्ति के लिये लाइसेंस मिला हुआ है।
भारत में झंडा विनिर्माण इकाइयों की स्थापना की अनुमति खादी विकास और ग्रामीण उद्योग आयोग द्वारा दी जाती है, लेकिन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने पर वह इसे रद्द भी कर सकता है। बुनाई के बाद सामग्री को परीक्षण के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्डैंडर्ड्स के प्रयोगशाला में भेजा जाता है। कड़े गुणवत्ता परीक्षण के बाद ही झंडा का अनुमोदन किया जाता है। तत्पश्चात उसे रंगने के लिये कारख़ाना भेजा जाता है। सबकुछ नियमानुसार रहने पर तिरंगा को बाजार में बेचने की अनुमति दी जाती है।
राष्ट्रीय ध्वज को सिर्फ एक ध्वज की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। वस्तुत: यह देश की स्वतंत्रता, स्वाभिमान, आकांक्षा तथा आदर्श का प्रतीक है। राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान राष्ट्र का सम्मान होता है और इसके अपमान से राष्ट्र अपमानित होता है। अतः हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि हमसे या हमारे आसपास भूलवश भी किसीसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान न हो।
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)