योग में निहित आसन और प्राणायाम हमे दैनिक जीवन में रोग से मुक्त तो रखते ही हैं, लेकिन योग मात्र आसन, प्राणायाम और मुद्राएं ही नहीं बल्कि योग जीवन जीने की पद्धति है। वह पद्धति जो मनुष्य को अपने जीवन के हर पहलू में जोड़ना सिखाती है। योग दर्शन भारतीय षड् दर्शनों में से एक है जो मानव का योगमय जीवन जीने की पद्धति से परिचय करवाता है।
कोरोना महामारी के प्रकोप को कम करने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकारों ने अनेक बार लॉकडाउन या कर्फ्यू का प्रयोग किया है, जिसके कारण मनुष्य जाति को अपने घर की चार दीवारी के अंदर ही सीमित रहने को मजबूर होना पड़ा है। शायद यह पहला मौका है जब मनुष्य को इतना समय घर के अंदर अथवा ऐसा कहा जाए कि अपने साथ बिताने को मिला हो।
लेकिन कुछ समय में ही अवसाद, उदासीनता और मानसिक रोगों ने मनुष्य को जकड़ लिया, जुलाई 2020 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार 43 प्रतिशत भारतीय अवसाद में थे। इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं लेकिन यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि विश्व भर में अपनी धरोहर योग का लोहा मनवाने वाले देश भारत के बहुत से लोग शायद इसका पूरा लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। योग के द्वारा शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखा जा सकता है।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि योग में निहित आसन और प्राणायाम हमे दैनिक जीवन में रोग से मुक्त तो रखते ही हैं, लेकिन योग मात्र आसन, प्राणायाम और मुद्राएं ही नहीं बल्कि योग जीवन जीने की पद्धति है। वह पद्धति जो मनुष्य को अपने जीवन के हर पहलू में जोड़ना सिखाती है। योग दर्शन भारतीय षड् दर्शनों में से एक है जो मानव का योगमय जीवन जीने की पद्धति से परिचय करवाता है। 140 से 150 (लगभग) ईसा पूर्व में जन्मे महर्षि पतंजलि ने ‘अष्टांग योग’ से प्रसिद्ध आठ अंगों वाले योग मार्ग को जन साधारण से परिचित करवाया।
अष्टांग योग में प्रथम पांच अंग है यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार यह पांच ‘बहिरंग‘ और इसके बाद आने वाले तीन अंग धारणा, ध्यान, समाधि को ‘अंतरंग‘ से भी जाना जाता हैं। अगर हम पांच यम जिसके अंतर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आते हैं और पांच नियम जिसके अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान का पालन करने का प्रयास करें जो कि हमारा समाज के प्रति और अपने व्यक्तिगत जीवन में अनुशासन और नैतिकता से परिचय करवाते हैं तो हमें मान लेना चाहिए कि हम योग के मार्ग पर चल पड़े हैं। महात्मा गाँधी ने स्वयं यम और नियम को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की थी।
इस भारतीय योग धरोहर से अगर किसी ने विश्व भर को परिचित करवाया तो वह हैं युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद जिनके ”भक्ति योग”, ”कर्म योग” और ”ज्ञान योग” पर व्याख्यान सुनने के लिए विदेशी धरती पर भी हज़ारों लोग उमड़ पड़ते थे। व्याख्यानों के अतिरिक्त स्वामीजी कक्षाएं भी लेते थे और योग मुद्राएं भी सिखाते थे। अमेरिका और इंग्लैंड में तो स्वामीजी को सुनने के लिए लोगों का तांता लग जाता था। अपने “राजयोग” विषय पर दिए गए व्याख्यानों में स्वामीजी अत्यंत सूक्ष्म बिंदुओं को भी विश्वभर के सामने बहुत ही सरलता के साथ प्रस्तुत करते थे।
राजयोग के अंतर्गत स्वामीजी प्राण, प्राण का आध्यात्मिक रूप, प्रत्याहार और धारणा, ध्यान और समाधि और अन्य विषयों पर प्रकाश डालते हैं। यह सारी जानकारी उनके द्वारा रचित पुस्तक ”राजयोग” में भी निहित है। इसके अतरिक्त स्वामीजी पतंजलि योगसूत्र के अंतर्गत जनसाधारण के लिए जटिल माने जाने वाले विषय जैसे समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और अन्य से भी पश्चिम जगत को परिचित करवाते हैं।
आज कोरोना महामारी से पीड़ित सम्पूर्ण विश्व योग और आयुर्वेद का सहारा अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ साथ मानसिक तनाव से बचने के लिए भी कर रहा है I लेकिन अंतराष्ट्रीय जगत ने योग के प्रति अपना रुझान और लगाव तो वर्ष 2014 में ही आधिकारिक रूप में दर्ज करवा दिया था जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा मे अपने भाषण के दौरान दिए गए ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के प्रस्ताव को मात्र 3 महीनों के अंदर 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा मंजूरी दे दी गयी थी।
अब समय आ गया है कि जब हम स्वामी विवेकानंद के आह्वान को चरितार्थ करें जो उन्होंने 1897 को मद्रास में ”हमारा प्रस्तुत कार्य” विषय पर व्याख्यान देते हुए किया था। वह कहते हैं, “चारों ओर शुभ लक्षण दिख रहे हैं और भारतीय आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारों की फिर से सारे संसार पर विजय होगी।” वह आगे कहते हैं, ”उठो भारत, तुम अपनी अध्यात्मिकता द्वारा जगत पर विजय प्राप्त करो।”
हमे विश्व पर विजय प्राप्त करनी हैं लेकिन किसी की जमीन हड़पकर या फिर गोला बारूद का सहारा लेकर युद्ध करके नहीं बल्कि अध्यात्म से। अब बारी हम भारतवासियों की है, परिश्रम हमे करना हैं क्योकि सम्पूर्ण विश्व की उम्मीद हमपर है। इसीलिए हम सब अपनी वर्षो पुरानी परंपरा योग को अपनी दिनचर्या के हर भाग में सम्मलित करें और विश्व को ”आनंद से जिओ और आनंद से सबको जीने दो” की जीवंत जीवन जीने की पद्धति से परिचित करवाएं।
(लेखक विवेकानंद केंद्र, उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधकर्ता हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)