काशी तमिल संगमम कोई सहज उत्पन्न हुआ विचार मात्र नहीं है। ये सम्बन्ध है भावना और संस्कृति का और ये सम्बन्ध इतना विस्तृत और प्राचीन है कि यदि आप काशी और तमिलनाडु के संबंधों को खोजने बैठेंगे तो एक विस्तृत ग्रन्थ तैयार हो सकता है। तमिलवाासियों के मन में यह भाव अत्यंत प्रबल रहता है कि काशी की यात्रा और बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बिना हर तीर्थ निष्फल है।
नीदरलैंड का एक गाँव है गिथॉर्न। यहाँ पर डच फिल्म निर्माता बर्ट हैन्स्ट्रा ने एक फिल्म शूट की जिसका नाम था फैनफेयर। फिल्म सुपरहिट साबित हुई और 1958 का वो साल था जब इस गाँव ने सिर्फ एक फिल्म को अपनी जमीन देकर दुनिया भर के पर्यटकों में पहचान हासिल कर ली। किसानों और मछुआरों का वो गाँव आज दुनिया के कुछ बेहतरीन पर्यटक जगहों में से एक है।
असल में कला और संस्कृति वो ‘सॉफ्ट पावर’ होती है जिसका उपयोग कर कोई भी भूमि विश्व मानचित्र में प्रभावी रूप से आ सकती है। कोई भी देश इस सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल करके ना केवल अर्थव्यवस्था की दृष्टि से शक्तिशाली हो जाता है बल्कि ग्लोबल रैकिंग के भी कई पायदान पर सफलतापूर्वक चढ़ जाता है।
अच्छी बात ये है कि हमारे महान देश को अब ये तथ्य पूरी तरह से स्पष्ट है। महाकाल लोक के उद्धाटन के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कहते हैं कि ‘किसी राष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव विशाल तभी होता है, जब उसकी सफलता का परचम विश्व पटल पर लहरा रहा होता है। सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिए ये जरूरी है कि राष्ट्र अपने सांस्कृतिक उत्कर्ष को छुए और अपनी पहचान के साथ गौरव से सर उठाकर खड़ा हो।’
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस से लेकर अयोध्या में प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर निर्माण तक भारत अब विश्व में ‘अध्यात्म और सांस्कृतिक पर्यटन’ के रूप में तेजी से ध्यान खींच रहा है। उत्तर प्रदेश में हो रहा ‘काशी तमिल संगमम’ भी महान सांस्कृतिक उत्कर्ष का एक ऐसा ही पड़ाव है। आयोजन की ये अद्भुत कल्पना ना केवल भारत के दो सुदूर राज्यों को निकट लेकर आ रही है बल्कि दुनिया भर में फैले भारतवंशियों को भी इससे जुड़ने का मोह प्रदान कर रही है। निश्चित तौर पर भारतीय सनातन संस्कृति के दो पौराणिक केंद्र विश्वेश्वर और रामेश्वर का ये मिलन सृजन और भावनात्मक संबंधों के नए द्वार को खोलेगा।
काशी तमिल संगमम कोई सहज उत्पन्न हुआ विचार मात्र नहीं है। ये सम्बन्ध भावना और संस्कृति का है और ये सम्बन्ध इतना विस्तृत और प्राचीन है कि यदि आप काशी और तमिलनाडु के संबंधों की गहराई को खोजने बैठेंगे तो एक विस्तृत ग्रन्थ तैयार हो सकता है। तमिलवाासियों के मन में यह भाव अत्यंत प्रबल रहता है कि काशी की यात्रा और बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बिना हर तीर्थ निष्फल है।
प्रत्येक दक्षिण भारतीय अपने जीवन काल में एक बार काशी का तीर्थ कर लेना अपना सौभाग्य समझता है और ऐसा केवल जनसमान्य के मन में नहीं रहता। इतिहास बताता है कि अनेक तमिल राजाओं, प्रसिद्ध आध्यात्मिक संतों, कवियों और प्रसिद्ध लोगों ने तमिलनाडु में रामेश्वरम और उत्तर प्रदेश में वाराणसी के बीच तीर्थ यात्रा अवश्य की है और इसे अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार करने के लिए एक पवित्र कर्तव्य माना है। साहित्य में भी एक शास्त्रीय तमिल काव्य ‘कालीथोगई’ काशी के महत्व को अद्भुत रूप में दर्शाता है।
तमिलनाडु के नाट्कोट्टई क्षत्रम की ओर से काशी विश्वनाथ मंदिर में 210 वर्षों से निर्बाध 3 आरती की जाती हैं। आरती के लिए भस्मी और चंदन भी तमिलनाडु से ही मंगाया जाता है। वर्ष 1926 में जब देश के अधिकांश भाग दक्षिण भारत के व्यजनों के विषय में बहुत कम जानते थे उस समय काशी में अय्यर परिवार के सौजन्य से दक्षिण भारतीय व्यंजन परोसने की शुरुआत हो चुकी थी।
तमिल के राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती जी ने 1898 में काशी आकर अपनी चार साल की पढ़ाई पूरी की थी और आप सभी के लिए ये एक रोचक तथ्य हो सकता है कि 1950 के बाद सिनेमा हॉल में सुबह का एक शो भी दक्षिण भारतीयों के लिए ही चला करता था।
काशी और तमिल का साहित्य, संस्कृति, गर्व का ये सम्बन्ध कई स्तर पर भावनात्मक डोरियों से भी बँधा हुआ है। काशी के हनुमान घाट इलाके से केदार घाट तक फैले लघु तमिलनाडु को हम कैसे उल्लेख से दूर रखें जहां पीढ़ियों से आकर बसे तमिल परिवार आज भी अपनी संस्कृति के साथ रह रहे हैं और रोज ही ‘भजन मठ’ को जी रहे हैं।
हालांकि ये आयोजन पहली नजर में सरकार की तरफ से किया जाने वाला प्रयास लगता है लेकिन काशी में पिछले तीन दिनों से चल रहे अपने प्रवास के दौरान मैंने ये पाया कि काशी के रिक्शा चालक, ऑटो रिक्शा चालक, सिविल डिफेंस के वॉलिंटियर्स, टूरिस्ट गाइड, व्यापारी, चाय वाले, होटल वाले सब बेहद उत्साहित हैं। सब इस समय छोटे-छोटे तमिल शब्दों को सीखने की कोशिश कर रहे हैं।
एक जर्नल स्टोर वाले साहब अपने सामने खड़े तमिल दंपत्ति की बात सुनते और फोन में कुछ देखते हुए उनसे कुछ बोलते और फिर मोबाइल को देखते। मैंने बाद में पूछा आप फोन में क्या देख रहे थे, तो वो मोबाइल दिखाते हुए बोले ये Bhashani ऐप है जिससे हिंदी में बोला गया शब्द तमिल और तमिल में बोला गया शब्द हिंदी में बता देता है।
तमिलनाडु से आये एक ग्रुप से अपने संवाद के दौरान मैंने पाया कि एक बुजुर्ग महिला अत्यंत भावुक होकर अपनी बातों में मोदी और योगी नाम को बोले जा रही थीं। मैंने ग्रुप के उस सदस्य से जो हिंदी जानते थे, उनसे पूछा अम्मा क्या कह रही हैं। वो बोले, ‘तमिल परंपरा में हम पूरे कार्तिक महीने शिव मंदिरों में दीपक जलाते हैं। इस बार मोदी योगी ने हमें काशी विश्वनाथ धाम में दीपक जलाने का सौभाग्य दे दिया है।’
इस संवाद के दौरान एक चीज जो मेरे दिमाग में गहरे उतरती जा रही थी कि कम से कम अब उत्तर प्रदेश सरकार को अपने लिए किसी ‘ब्रांड अम्बेसडर’ की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। क्यूँकि ये तमिल भाषी जिस तरीके से उत्तर प्रदेश की सुखद यादों को लेकर जा रहे हैं, वो किसी भी सेलेब्रिटी ब्रांड एंबेसडर की तुलना में अधिक प्रभावशाली है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। राजनीति और संस्कृति सम्बन्धी विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)