1947 के अंत में वेंकट राम को गाँधी जी ने खुद ये नोट लिखवाया था, “देश में जो हो रहा है, उसके लिए मैं खुद जिम्मेदार नहीं हूँ। बहुत सी बातें मुझे बिना बताये, या मेरे संज्ञान के बिना हो रही हैं। मेरी बात अनसुनी की जाती है। मेरी कुछ भी नहीं चली है। एक समय था, जब लोग मेरी बात को वजन देते थे, लाखों लोगों तक मेरी बात पहुँचती थी, लेकिन अब अपने लोग ही मेरी बात पर कान नहीं धरते।”
देश को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी वर्षों के संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को मिली और इसके साथ ही महात्मा गाँधी को आभास हो गया था कि कांग्रेस पार्टी को भंग करने का समय आ गया है। महात्मा गाँधी ने 27 जनवरी, 1948 को एक महत्वपूर्ण ड्राफ्ट तैयार किया था, जिसका शीर्षक था “Last will and Testament” (इसके बाद ही उनकी हत्या हो गयी थी, अतः इसे उनकी अंतिम इच्छा भी कहा जा सकता है।), इस ड्राफ्ट का मूल संदेश ये था कि कैसे कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर महत्वहीन हो गयी थी और उसे भंग करने का सही समय आ गया था।
देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भी महात्मा गाँधी की उस अभिव्यक्ति को स्वर देते हुए कहा था कि कांग्रेस ने एक संगठन के तौर पर अपनी उपयोगिता ख़त्म कर ली है और अब उसे भंग करके “लोक सेवक संघ” जैसा स्वरूप दिया जाना चाहिए, जिसका मुख्य उद्देश्य देश के सामाजिक हित तक ही सीमित रखने का विचार था।
इस विचार के तहत कांग्रेस को पंचायतों में विभक्त कर दिया जाता और उसे तमाम तरह के सामाजिक दायित्व दिए जाते, इन पंचायत सदस्यों का समूह लगातार समाज और देश हित में काम करता। समाज सेवा का यह स्वरूप अपने आप में बिलकुल अलग विचारधारा से उपजा था, जिसके पीछे राजनीतिक स्वार्थ शामिल नहीं था।
इन पंचायत सदस्यों के लिए कुछ ख़ास मानदंड भी महात्मा गाँधी ने तय किये थे, जिसका प्रारूप उनकी मृत्यु के पश्चात् 2 फ़रवरी, 1948 को ‘हरिजन’ पत्रिका में बिन्दुवार निम्नलिखित प्रकार से प्रकाशित हुआ था:
1. कांग्रेस के सभी सदस्यों के लिए हाथ से बुना हुआ खादी पहनना ज़रूरी था, साथ-साथ उनके लिए यह भी ज़रूरी था कि वह शराब से तौबा कर लें। अगर आप एक हिन्दू हैं, तो आपके लिए यह भी ज़रूरी था कि आपने छुआछूत का पूरी तरह से त्याग कर दिया हो।
2. पंचायत के हर सदस्य को अपने गाँव में आने वाले हर नागरिक से संपर्क करना ज़रूरी होता।
3. संगठन के लोग गाँव के हर नागरिक को सामाजिक कार्यों के लिए प्रशिक्षित करते।
4. संगठन के लोगों के लिए हर दिन के कार्यों का विवरण रखना ज़रूरी था।
5. इसका मकसद था कि हर गाँव अपनी ज़रूरतों के लिए अपने पैरों पर खड़ा हो सकें।
6. सेहत और सफाई बेहतर रखने के लिए गाँव के हर नागरिक का प्रशिक्षण करना था।
7. हिन्दुस्तानी तालीम संघ की तर्ज़ पर गाँव के हर नागरिक की शिक्षा ज़रूरी था।
8. गाँव के हर नागरिक का नाम चुनाव लिस्ट में होना ज़रूरी था, जिसके ज़रिये समाज के हर व्यक्ति को राजनीतिक गतिविधि का हिस्सा बनाया जा सके।
9. जो व्यक्ति मतदान के अधिकार का प्रयोग न कर पा रहा हो, उसे इस प्रक्रिया में शामिल करना।
10. संघ की गतिविधियाँ समय-समय पर परिभाषित की जाएंगी।
स्पष्ट है कि महात्मा गाँधी ने कांग्रेस को एक गैर राजनीतिक संगठन बनाने के लिए रोडमैप तैयार कर लिया था, लेकिन कांग्रेस में जिन लोगों के निहित राजनीतिक स्वार्थ थे, उनके लिए महात्मा गाँधी के इन विचारों का मूल्य सिफर से ज्यादा कुछ भी नहीं था।
असल में देखा जाए तो जो लोग आज़ादी से पहले कांग्रेस के आन्दोलन से जुड़े थे, वे देश आज़ाद होने के बाद कांग्रेस से दूर होते गए। गाँधी जी के निजी सचिव रहे महादेव देसाई के बेटे नारायण देसाई ने अपने आखिरी इंटरव्यू में स्वतंत्र पत्रकार दीपक पर्वतियार को कहा था कि उनके पिता 1930 के बाद से ही लगातार कांग्रेस के सदस्य थे, लेकिन उनकी मौत के बाद कोई भी कांग्रेस में शामिल नहीं हुआ, सक्रिय राजनीति से उनका मोहभंग हो गया था।
आज कुछ राजनीतिक दल इस मुद्दे को उठाते हैं, इसका सकारात्मक पक्ष यही है कि गाँधी जी ने खुद चाहा था कि कांग्रेस को “लोक सेवक संघ” में तब्दील कर दिया जाए। हालाँकि कांग्रेस वर्किंग कमिटी में इस विचार को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया। कहना न होगा कि गांधी के नाम पर राज करने वाली कांग्रेस ने उनके इस सबसे बड़े सपने या अंतिम इच्छा की पूरी तरह से उपेक्षा कर दी।
नारायण देसाई ने माना कि देश की आज़ादी के 70 साल से अधिक बीतने के बाद यह मुद्दा और ज्यादा प्रासंगिक हो गया है। गाँधी चाहते थे कि लोग आज़ाद रहें, अपने फैसले खुद करें, पंचायतों के पास काफी सारे अख्तियार हों, लेकिन ऐसा कहाँ हो पाया? कांग्रेस से जिन नेताओं का मोहभंग हुआ था, उनमें ज़्यादातर गांधीवादी शामिल थे।
यहाँ एक और शख्स वेंकट राम कल्याणम का जिक्र बेहद जरूरी है, जिनके सामने महात्मा गाँधी को गोली मारी गई थी। जिस वक़्त महात्मा गाँधी को गोली मारी गई, वेंकटराम उनसे सिर्फ तीन फीट की दूरी पर खड़े थे। इनका कहना है कि गाँधी जी चाहते थे कि कांग्रेस को हमेशा-हमेशा के लिए दफ़न कर दिया जाए।
दरअसल, गाँधी ने कांग्रेस के हर वरिष्ठ नेता से इस बात की चर्चा भी की थी कि कांग्रेस ने देश की आज़ादी में अहम भूमिका निभाकर अपनी सार्थकता साबित कर ली है और उसे भंग किया जाना ज़रूरी है। देश के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि देश का शासन कैसे चलाया जाए, इसके लिए गाँधी ने “लोक सेवक संघ” की परिकल्पना देश के सामने रखी थी।
वेंकट राम कहते हैं कि “जिस तरह से नेहरू की सरकार चल रही थी, उससे गाँधी जी को बेहद दुःख हुआ था। हर दिन उन्हें पचासों ख़त मिल रहे थे, जिसमें सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार का खुलासा किया जाता था, लेकिन नेहरु पर उन आरोपों का ज़रा भी असर नहीं था।” 1947 के अंत में वेंकट राम को गाँधी जी ने खुद ये नोट लिखवाया था, “देश में जो हो रहा है, उसके लिए मैं खुद जिम्मेदार नहीं हूँ। बहुत सी बातें मुझे बिना बताये, या मेरे संज्ञान के बिना हो रही हैं। मेरी बात अनसुनी की जाती है। मेरी कुछ भी नहीं चली है। एक समय था, जब लोग मेरी बात को वजन देते थे, लाखों लोगों तक मेरी बात पहुँचती थी, लेकिन अब अपने लोग ही मेरी बात पर कान नहीं धरते।”
महात्मा गाँधी ने अपने प्राइवेट सचिवों, प्यारे लाल और महादेव देसाई जी को बहुत सी ऐसी बातें बताई, जिससे उस वक़्त देश गुजर रहा था। लेकिन सत्ता के मद में चूर कांग्रेस के लिए इसका कोई महत्त्व नहीं था। इन घटनाक्रमों से साफ़ है कि देश के आजाद होने के बाद कांग्रेस के लिए गांधी का महत्व एकदम समाप्त हो गया था और उसके नेतागण गांधी की किसी बात को सुनने के लिए तैयार नहीं थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)