भारत ने पहला चंद्र अभियान 22 अक्टूबर, 2008 को लांच किया था। चंद्रयान-2 मिशन के तहत चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव की सतह पर लैंडर उतारा जाएगा। इसरो चेयरमैन के. शिवन ने कहा कि किसी भी देश ने अभी तक चंद्रमा के इस क्षेत्र में रोवर भेजने की कोशिश नहीं की है। यदि भारत इस मिशन में सफल हो जाता है तो यह देश की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत एक और उपलब्धि हासिल करने जा रहा है। 15 जुलाई को भारत चंद्रयान-2 मिशन के तहत रॉकेट लॉन्च करेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इस यान को 15 जुलाई रात 2 बजकर 51 मिनट पर लॉन्च करेगा। इसका भार 640 टन है और इसके निर्माण में 375 करोड़ रुपए की लागत आई है। तेलुगु मीडिया में बाहुबली के नाम से ख्यात हो चुके इस यान की लॉन्चिंग का बेसब्री से इसलिए भी इतंजार है क्योंकि एक दशक बाद भारतीय यान फिर से चांद तक पहुंचने वाला है।
भारत ने पहला चंद्र अभियान 22 अक्टूबर, 2008 को लांच किया था। चंद्रयान-2 मिशन के तहत चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव की सतह पर लैंडर उतारा जाएगा। इसरो चेयरमैन के. शिवन ने कहा कि किसी भी देश ने अभी तक चंद्रमा के इस क्षेत्र में रोवर भेजने की कोशिश नहीं की है। यदि भारत इस मिशन में सफल हो जाता है तो यह देश की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
निश्चित ही इस अर्थ में यह मिशन बहुत महत्वाकांक्षी है। जहां तक चांद की सतह पर लैंडिंग की बात है, तो ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बन जाएगा। चंद्रयान 6 या 7 सितंबर को चांद के दक्षिण ध्रुव के निकट लैंडिंग करेगा। इसमें 3 मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल होंगे जो रॉकेट के साथ गति करेंगे। चंद्रयान-1 की प्रमुख खोज यह थी कि चांद की सतह पर पानी है। चंद्रमा की चट्टानों में मैग्नीशियम पाए जाने के संकेत भी चंद्रयान-1 ने दिए थे। इससे यह अंदाज लगाया गया था कि चांद बीते समय में कभी पिघले हुआ मैग्मा से ढंक गया था। चंद्रमा की संरचना कैसी है, उसे समझने के लिए पहला मिशन कारगर था।
मिशन का उद्देश्य और चुनौतियां
चंद्रयान-2 का मुख्य मकसद चंद्रमा की सतह, वातावरण, तापमान और विकिरण का अध्ययन करना है। इसरो के अनुसार चंद्रयान-2 की कक्षा को बढ़ाया जाएगा। चांद के प्रभाव क्षेत्र में पहुंचने के कुछ देर बाद ही इस यान में लगे इंजन धीमे हो जाएंगे। चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के 4 दिन बाद लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा। विक्रम नाम का लैंडर 6 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक उतरेगा। उस जगह यह तीन तरह के वैज्ञानिक प्रयोग करेगा।
उधर, रोवर उससे अलग होकर अन्य प्रयोगों को करेगा। यह चांद पर एक दिन तक प्रयोगों को अंजाम देगा। वह दो प्रयोगों को अंतिम रूप देगा। तीसरा मॉड्यूल ऑर्बिटर एक साल तक चंद्रमा की परिक्रमा करते हूए 8 प्रयोगों को अंजाम देगा। इस मिशन की चुनौती यह है कि इसे चंद्रयान-1 के अधूरे कार्यों को आगे बढ़ना है। जिस जगह इसे भेजा जा रहा है वहां सूर्य का प्रकाश सीधे तौर पर नहीं पहुंच पाता है और वहां पानी की संभावना भी प्रतीत होती है, ऐसे में इसके तीन मॉड्यूल को वहां प्रयोग करके निष्कर्ष निकालना एक चुनौती रहेगी। इस मिशन पर नासा की भी निगाहें हैं।
मिशन चंद्रयान-2 की ये हैं खासियतें
यह चांद के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष मिशन होगा। यदि इस मिशन में भारत को कामयाबी मिल जाती है तो, हमारा देश अमेरिका चीन और रूस के बाद ऐसा करने वाला विश्व का चौथा देश होगा। यह स्वदेशी प्रोजेक्ट है और इसका संपूर्ण निर्माण एवं संचालन स्वदेशी है। इसरो में निर्मित यान चंद्रमा पर लैंडिंग करेगा। ऐसा करने वाला यह देश का भी पहला ही मिशन होगा। चंद्रयान-1 से जो जानकारियां प्राप्त हुई थीं, यह उनमें बढ़ोतरी करेगा और इसके आधार पर नए शोध, खोजों के लिए अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को मदद मिलेगी।
चंद्रयान मिशन क्यों है इतना जरूरी
वर्ष 1999 में इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस की बैठक में चांद पर एक वैज्ञानिक मिशन का विचार प्रस्तुत किया गया था। इसके बाद 2008 में भारत ने श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केंद्र से पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) से यान लॉन्च किया था। अब आगामी 15 जुलाई को चंद्रयान -2 को जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) एमके III से लॉन्च किया जाएगा। यह अपेक्षाकृत रूप से अधिक ताकतवर लॉन्चर है।
निश्चित ही 15 जुलाई का दिन पूरे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन साबित होने वाला है। उम्मीद है कि यह मिशन सफल होगा। इसके सफल होते ही इसरो का नाम विश्व में और ऊंचा हो जाएगा और उम्मीद है कि भारत के यान द्वारा किया गया चांद का अध्ययन पूरे विश्व के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)