केरल में संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर कब टूटेगी मानवाधिकारवादियों की खामोशी ?

केरल में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के कत्लेआम पर जंतर-मंतर पर मानवाधिकारवादियों का कैंडिल मार्च नहीं निकलता। कोई लेखक केरल सरकार को कोसते हुए अपने पुरस्कार को भी वापस नहीं करता। कश्मीर में आजादी के नारे लगाने वालों को टीम अरुंधति राय का बेशर्मी से समर्थन मिलने लगता है। ये देश के टुकड़े करने वालों के भी साथ खड़े हो जाते हैं। लेकिन, दुर्भाग्यवश इनकी केरल में माकपा के गुंडों द्वारा भाजपा-संघ के कार्यकर्ताओं के मारे जाने पर जुबानें सिल जाती हैं।

केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भाजपा के कार्यकताओं के कत्लेआम का सिलसिला बदस्तूर जारी है। लोकतंत्र में मतभेद संवाद से दूर होते हैं, हिंसा के सहारे विरोधियों का खात्मा नहीं किया जाता। राजनीतिक हिंसा तो अस्वीकार्य है ही। पर, केरल में लेफ्ट फ्रंट सरकार को यह समझ नहीं आता। केरल में भाजपा और संघ के जुझारू और प्रतिबद्धता के साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओं की नियमित रूप से होने वाली नृशंस हत्याओं पर अपने को मानवाधिकारवादी कहने वालों की चुप्पी सच में भयभीत करती है।

इनका तब कलेजा नहीं फटता, जब केरल में माकपा के गुंडे अपने राजनीतिक विरोधियों का खून करते हैं। ताजा घटना में एक हिस्ट्रीशीटर अपराधी के नेतृत्व वाले एक गिरोह ने विगत दिनों संघ के 34 वर्षीय कार्यवाह राजेश पर हमला कर उनकी हत्या कर दी। उनका बायां हाथ काट दिया गया और उनके शरीर पर कई घाव किए गए। ये कांड दिल दहलाने वाला है।

संघ कार्यकर्ता राजेश

विगत वर्ष मई में जब केरल में लेफ्ट फ्रंट सरकार सत्तासीन हुई तो लग रहा था कि अब केरल में अमन होगा। राजनीतिक विरोधियों की हत्याएं नहीं होंगी।  सरकार राज्य के समावेशी विकास पर जोर देगी। पर हुआ इसके विपरीत। लेफ्ट फ्रंट सरकार तो संघ और भाजपा की जान की दुश्मन होकर उभरी। उसकी देखरेख में संघ-भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले होने लगे।

खून से लथपथ आधी सदी

केरल में करीब आधी सदी में संघ के 267 सक्रिय कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं हैं। इनमें से 232 लोग, यानी अधिकांश माकपा के गुंडों द्वारा ही मारे गए। वर्ष 2010 के बाद, सोलह संघ कार्यकर्ताओं की सीपीएम द्वारा बेरहमी से बर्बरतापूर्ण हत्या कर दी गई। किसी के पैर काट दिए गए, किसी की आंखें फोड़ दी गईं, अनेक को पीट-पीट कर जीवन भर के लिए अपाहिज बना दिया गया। इन घायलों की संख्या मारे गए लोगों से लगभग छह गुना है। इन झड़पों के बाद शान्ति व्यवस्था के नाम पर पुलिस द्वारा क्रूरता का नंगा नाच किया गया।

यह सच है कि माकपा द्वारा किये जाने वाले प्रत्येक हमले के बाद पुलिस कुछ लोगों को गिरफ्तार करती है। इस बार भी कुछ लोगों को किया गया है गिरफ्तार। लेकिन लगभग सभी मामलों में वास्तविक अपराधियों को हाथ भी नहीं लगाया जाता। पुलिस केवल उन लोगों को गिरफ्तार करती है, जिन्हें गिरफ्तार करने के लिए पार्टी हरी झंडी दे देती है। इसे समझना चाहिए कि यह कैसे और क्यों होता है? दरअसल माकपा लीडरशिप का अपने कार्यकर्ताओं और केरल पुलिस पर पूरा प्रभाव है।

माकपा के गढ़ केरल के कन्नूर जिले में ही संघ स्वयंसेवकों पर सर्वाधिक अत्याचार हुए हैं। कन्नूर में पुलिस बल लेफ्ट फ्रंट के हाथ का खिलौना भर है। और जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को मार  गया, उन्हें सरकार से कभी कोई मदद भी नहीं मिली। संघ ने स्थानीय लोगों की मदद से अपने ऐसे पीड़ित कार्यकर्ताओं जिनकी हत्याएं हुई हैं, के परिजनों की देखरेख के लिए समुचित व्यवस्था बनाई है। इसी प्रकार अंगभंग के कारण स्थायी रूप से अपाहिज हुए कार्यकर्ताओं के उपचार में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।

सांकेतिक चित्र

कैंडिल मार्च कब ?

केरल में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के कत्लेआम पर जंतर-मंतर पर मानवाधिकारवादियों का कैंडिल मार्च नहीं निकलता। कोई लेखक केरल सरकार को कोसते हुए अपने पुरस्कार को भी वापस नहीं करता। कश्मीर में आजादी के नारे लगाने वालों को टीम अरुंधति राय का बेशर्मी से समर्थन मिलने लगता है। ये देश के टुकड़े करने वालों के भी साथ खड़े हो जाते हैं। लेकिन, दुर्भाग्यवश इनकी केरल में माकपा के गुंडों द्वारा भाजपा-संघ के कार्यकर्ताओं के मारे जाने पर जुबानें सिल जाती हैं।

इनके चुप रहने को माना जाए कि ये केरल में एक खास राजनीतिक दल से जुड़े लोगों के मारे जाने से विचलित नहीं हैं? क्या संघ-भाजपा से जुड़े लोगों का मारा जाना मानवाधिकारों के हनन की श्रेणी में नहीं आता? केरल अपनी संस्कृति और प्राकृतिक संपदा के लिए जाना जाता है। समुद्र के किनारे स्थित केरल के तट अपने शांतिपूर्ण माहौल के लिए लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। पर इस शांतिपूर्ण माहौल के पीछे कत्लेआम हो रहे हैं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के। इधर भाजपा या संघ से जुड़ा होना खतरे से खाली नहीं है।

भाजपा का दबदबा

दरअसल लेफ्ट फ्रंट के नेताओं की पेशानी से केरल में भाजपा की बढ़ती ताकत के कारण पसीना छूट रहा है।  भाजपा केरल में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी के तौर पर उभर रही है। वैसे केरल में भाजपा एक राजनीतिक पार्टी के रूप में 1987 के विधानसभा चुनाव से अपनी मौजूदगी करा दी थी। केरल में भाजपा को खड़ा करने में जन संघ के दौर में पार्टी से जुड़े राजगोपाल का खास रोल रहा है। ओ. राजगोपाल ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की नीतियों से प्रभावित होकर 1960 में ही भारतीय जनसंघ से जुड़कर केरल की राजनीति में कदम रखा।

केरल में भाजपा का बढ़ता प्रभाव (सांकेतिक चित्र)

कार्यकर्ताओं के सतत प्रयास से पिछले कुछ सालों में केरल की धरती पर भाजपा  की नींव यक़ीनन  मजबूत हुई है। लेफ्ट फ्रंट की परेशानी की एक बड़ी वजह यह भी है कि  देश में संघ की शाखाओं की सर्वाधिक संख्या केरल में ही है। राज्य में पढ़े- लिखे युवा भारी संख्या में संघ में शामिल होने के लिए उत्सुक हैं। संघ सबको प्रभावित कर रहा है, जिसने लेफ्ट फ्रंट सरकार को परेशान कर दिया है।

दरअसल केरल एक बहुत विकट राज्य के रूप में उभर रहा है। केरल तेजी से इस्लामी आतंकवाद की प्रजनन भूमि में बदल रहा है। केरल के हिंदुओं में असुरक्षा की भावना है और वे इन ताकतों के खिलाफ एक सेतु के रूप में संघ को देखते हैं। कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने हिन्दू विरोधी रुख के कारण केरल की मूल परम्पराओं और जीवन मूल्यों को नष्ट करने की कोशिश की थी। युवा पीढ़ी अब एक बार फिर अपनी जड़ों से जुड़ना चाहती है, और वह संघ और उसके अनुसंगों में अपने सांस्कृतिक पुनरुत्थान को देख रही है। यही चीज केरल लेफ्ट फ्रंट सरकार और माकपा के गुंडों को खल रही है, जिस कारण संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं एकबार फिर चल पड़ी हैं। केरल में  राजनीतिक हत्याओं पर रोक लगाने के लिए सरकार और समाज को आगे आना होगा।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)