श्रीराम की नैतिकता, सत्य, त्याग, धैर्य, करुणा, पराक्रम हर भारतीय को प्रेरित करते हैं। लंका पर विजय पाने के बाद भी उन्होंने उसपर कब्ज़ा नहीं किया बल्कि रावण के भाई विभीषण को ही वहाँ का राजा बनाया। किसी का दमन करना, अतिक्रमण करना, यह हमेशा से भारत की परंपरा के विरुद्ध रहा है। इसीलिए राममंदिर का निर्माण विश्व भर के लिए एक जीवंत सन्देश है। यह मंदिर प्रभु श्री राम की तरह धर्म आधारित जीवन जीने की प्रेरणा देने वाला सिद्ध होगा।
अयोध्या अब मात्र उत्तर प्रदेश का एक जिला नहीं रह जायेगा वह तो अब सभी श्रीराम भक्तों के लिए प्रेरणा, ऊर्जा और जीवन की दिशा देने वाला पावन धाम बनने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 अगस्त, 2020 को अयोध्या जाकर भव्य-दिव्य राम मंदिर की आधारशिला रखेंगे और करोड़ों भारतीयों का सपना साकार करेंगे। जिस भारत के रोम रोम में श्री राम बसते हैं, उसके वासियों के लिए यह हर्ष- उल्लास, गौरव एवं धर्म की विजय का दिन है।
मंदिर का एक लम्बा इतिहास है जो हर राम भक्त के संघर्ष की गाथा भी है। भगवान श्री राम को भी अपनी जन्म भूमि के साक्ष्य देने पड़े कलयुग में। हिंदुस्तान में हिन्दुओं को अपने प्रभु श्री राम की जन्मभूमि पर मंदिर बनवाने के लिए इतने साल लगातार संघर्ष करना पड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के साथ सालों तक मामला कोर्ट में रहा।
रामलला बरसों बरस पंडाल में रहे, सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जमीन नहीं दी। लेकिन कहा गया है कि सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं हो सकता और इस कथन को सत्य सिद्ध करते हुए आखिर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को अपने फैसले में राम मंदिर बनाने की अनुमति दे दी। पता नहीं कितने राम भक्तों ने अपना पूरा जीवन इस कार्य के लिए समर्पित कर दिया। यह उन सबके लिए बड़े उल्लास और गौरव का दिन था। आखिर राम और रामायण भारतवासियों के रोम-रोम में बसते हैं।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीराम का प्रभाव
गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा गुरुमुखी लिपि में लिखी रामायण उस समय के कार्यकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक साबित हुई थी। दक्षिण भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाले वि. वि. एस अय्यर जेल में ‘अ स्टडी ऑफ़ कंब रामायण’ लिखते हैं और अपने साथ-साथ बाकी क्रांतिकारियों को भी इस ग्रंथ से प्रेरित करते हैं। महात्मा गाँधी राम और राम राज्य की बात अपने अनेको भाषण में करते थे।
गाँधी जी ने 12 मार्च, 1930 में अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था, जिसे हम नमक मार्च, दंडी सत्याग्रह आदि नामों से जानते हैं, इस पैदल यात्रा के दौरान भी गाँधी जी ‘रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम’ भजन बीच-बीच में गाते रहे थे।
महात्मा गांधी अपनी आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में लिखते हैं कि ‘तुलसीदास की रामायण मेरे लिए धार्मिक साहित्य में सबसे महानतम पुस्तक है।‘भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सेनानी तथा सामाजिक कार्यकर्ता आचार्य विनोबा भावे रामायण को राष्ट्रीय महाकाव्य की संज्ञा देते हैं। वो रामायण को भारत के संगठित होने का केंद्र बिंदु मानते थे। स्वामी विवेकानंद अपने वक्तव्यों में रामायण से अक्सर उद्धरण देते, वह स्वयं श्रीराम के चरित्र से बहुत प्रभावित थे। लोकमान्य तिलक, भगिनी निवेदिता, मदनलाल ढींगरा जैसे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के लिए राम और रामायण प्रेरणा का स्त्रोत थे ।
भारत की अनेकता में एकता का राम कथा भी है उदाहरण
भारत का कोई भाग ऐसा नहीं है जहां श्री राम का नाम और विचार ना पंहुचा हो। ऋषि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में रामायण मूल रूप से लिखी गई और संस्कृत में ही उसके अनेक संस्करण भी हैं, जैसे कि वशिष्ठ रामायण, अगस्त्य रामायण, आध्यात्म रामायण आदि।
अगर भारतीय भाषाओं की बात करें तो तमिलनाडु में 12वीं शताब्दी के कवि कम्बन तमिल में कंब रामायण लिखते है, असम में 14वीं शताब्दी में माधवा कंडाली सप्तकाण्ड रामायण, 15वीं शताब्दी में कृत्तिबास ओझा बंगाली कृत्तिवासा रामायण, उत्तर प्रदेश के अवध में 16वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस, संत एकनाथ 16वीं शताब्दी में मराठी भावार्थ रामायण, कवि प्रेमानंद स्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस से प्रभावित होकर 17वीं शताब्दी में गुजराती में तुलसी रामायण लिखते हैं।
अगर हम कर्नाटक की बात करें तो कन्नड़ में कुमुदेन्दु रामायण (जैन संस्करण) 13वीं शताब्दी में लिखी जाती है और कुमारा-वाल्मीकि तोरवे रामायण 16वीं शताब्दी में लिखते हैं। ओडिशा में भी रामायण की परंपरा बहुत पुरानी है। उड़िया दाण्डि रामायण या बळराम दास कृत जगमोहन रामायण 14वीं शताब्दी में रची जाती है।
इनके अतरिक्त आंध्र प्रदेश, बिहार, गोवा, केरल, मणिपुर और अन्य प्रांतों में रामायण सालों से सुनाई और पढ़ी जा रही है। अनेक भारतीय भाषाओं में लिखित रूप में आने से पहले भी, रामायण घर घर में कहानियों के माध्यम से अनेक वर्षों से प्रचलित है। इसके अतरिक्त बौद्ध और जैन पंथों में भी रामायण के अपने-अपने संस्करण हैं।
भगवान श्री राम भारत वासियों के लिए ही नहीं, मध्य तथा दक्षिण एशिया वासियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत हैं। विदेशों में भी श्री राम का बोलबाला हज़ारो वर्षों से है। चीन, जापान, इण्डोनेशिआ, थाईलैंड, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल सहित और भी अनेक देशों में रामायण लिखित रूप में और कला के रूप में विद्यमान है।
सभी के लिए आदर्श हैं श्री राम
एक पुत्र के रूप में जब राजा दशरथ ने श्री राम को माता कैकेयी के कहने पर 14 वर्ष का वनवास दिया तो श्री राम ने एक बार भी नहीं सोचा और आदेश का पालन किया। एक भ्राता के रूप में श्री राम अपने सभी भाईयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न से अत्यंत स्नेह करते थे, जब उनको वनवास और भरत को शासन देने की बात हुई तो भी श्री राम को हर्ष ही हुआ कि भरत राजा बनकर शासन करेंगे। लक्ष्मण तो जैसे श्री राम की परछाई ही थे।
दोनों ने कभी भी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ा। आज भी अनेक घरों में भाइयो का नाम राम-लक्ष्मण रखा जाता है। एक पति के रूप में श्री राम ने अपने सभी धर्म निभाए, वो उनका स्नेह और धर्म का पालन ही था माता सीता के प्रति जो उन्हें हजारों किलोमीटर दूर लंका तक लेकर गया उनकी खोज में। माता सीता और श्री राम भारतीय दम्पतियो के लिए आदर्श हैं।
श्री राम की नैतिकता, सत्य, त्याग, धैर्य, करुणा, पराक्रम हर भारतीय को प्रेरित करते हैं। लंका पर विजय पाने के बाद भी उन्होंने उसपर कब्ज़ा नहीं किया बल्कि रावण के भाई विभीषण को ही वहाँ का राजा बनाया। किसी का दमन करना, अतिक्रमण करना, यह हमेशा से भारत की परंपरा के विरुद्ध रहा है। इसीलिए राममंदिर का निर्माण विश्व भर के लिए एक जीवंत सन्देश है। यह मंदिर प्रभु श्री राम की तरह धर्म आधारित जीवन जीने की प्रेरणा देने वाला है।
(लेखक स्वामी विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रांत के युवा प्रमुख हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)