राजनीति के शिखर पर रहते हुए रामलाल ने बेहद सादगी और सहजता से कार्य किया है। उनके तेरह वर्ष के लंबे कार्यकाल के दौरान कभी कोई ऐसा मामला सामने नहीं आया, जिससे भाजपा अथवा संघ रामलाल से अहसज हुआ हो। पर्दे के पीछे रहकर संघ तथा भाजपा के बीच संतुलन साधने के साथ–साथ रामलाल ने बड़ी चतुराई के साथ पार्टी को गुटबाजी से भी बचाए रखा। जब भी भाजपा का कोई नेता असंतुष्ट नजर आया, रामलाल ने अपने राजनीतिक कौशल से उसकी असंतुष्टता को दूर किया।
वर्तमान भारतीय राजनीति में ऐसे बिरले लोग ही हैं जो महत्वाकांक्षा, स्वार्थ और लाभ से इतर मूल्याधारित राजनीति को प्रमुखता देते हैं। सियासत में रहकर अजातशत्रु बने रहना और इस छवि को बरकरार रखते हुए राजनीति से अलग होना, अपने आप मे एक बड़ी उपलब्धि है। रामलाल इसी प्रकार के नेता रहे हैं। गौरतलब है कि भाजपा और संघ में समन्वय की बुनियाद मजबूत रहे, इसके लिए भाजपा का संगठन मंत्री, संघ द्वारा भेजा गया प्रचारक होता है। अर्थात यह नियुक्ति संघ-भाजपा के तालमेल और विचार–विनिमय के मुख्य स्तम्भ के रूप में होती है।
इन बातों का जिक्र अभी इसलिए कर रहे कि विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी में सांगठनिक स्तर पर एक बड़ा बदलाव हुआ है, जो चर्चा का केंद्र बना हुआ है। विजयवाड़ा में अखिल भारतीय वार्षिक प्रचारक बैठक में तेरह वर्षों से भाजपा में संगठन महामंत्री के दायित्व का निर्वहन कर रहे रामलाल को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख की जिम्मेदारी दी है। रामलाल के इस दायित्व परिवर्तन को लेकर अलग–अलग भ्रांतियां राजनीतिक हलके में खड़ी करने की कोशिश की जा रही हैं। कई सवाल उठने लगे हैं जिसका जवाब ढूँढना आवश्यक है।
क्या रामलाल का यह दायित्व परिवर्तन उनके कद को कम करना है? सबसे आवश्यक सवाल यही है। सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर दें कि इस तरह के सवाल वही लोग उठा रहे हैं, जिन्हें संघ के क्रियाकलापों की जानकारी ठीक से नहीं है, परन्तु वह खुद को राजनीतिक विशेषज्ञ मानने का मुगालता पाल रखे हैं। वास्तव में, संघ अथवा भाजपा ने रामलाल के कद को छोटा करने के लिए यह फैसला नहीं लिया है, बल्कि यह फैसला रामलाल, भाजपा और संघ तीनों की आम सहमति से लिया गया है।
गौरतलब है कि रामलाल दो बार चिट्टी लिखकर दायित्व परिवर्तन की इच्छा जता चुके थे। पहली बार पार्टी ने उनके इस आग्रह को स्वीकार नहीं किया था, किन्तु अब पार्टी और संघ ने यह समयानुकूल फैसला लिया है। 13 वर्ष तक पार्टी में काम करते हुए रामलाल राजनीति के चकाचौंध से दूर रहते हुए जमीनी स्तर के मुद्दों एवं छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं से जुड़े रहे।
राजनीति में आज जब बड़ी मात्रा में द्वेष, असंयम और अभद्रता का बोलबाला है, ऐसे में रामलाल की उनकी सज्जनता तथा भाषाई गरिमा को बरकरार रखने के लिए अवश्य तारीफ़ होनी चाहिए। राजनीतिक जीवन में रहते हुए जिस तरह से इसके साथ सामाजिक जीवन का संतुलन उन्होंने बरकरार रखा, यह अन्य राजनेताओं के लिए प्रेरणादायक है।
राजनीति के शिखर पर रहते हुए उन्होने बेहद सादगी और सहजता से कार्य किया है। तेरह वर्ष के लंबे कार्यकाल के दौरान कभी कोई ऐसा मामला सामने नहीं आया, जिससे भाजपा अथवा संघ रामलाल से अहसज हुआ हो। पर्दे के पीछे रहकर संघ तथा भाजपा के बीच संतुलन साधने के साथ–साथ रामलाल ने बड़ी चतुराई के साथ पार्टी को गुटबाजी से भी बचाए रखा। जब भी भाजपा का कोई नेता असंतुष्ट नजर आया, रामलाल ने अपने राजनीतिक कौशल से उसकी असंतुष्टता को दूर किया।
रामलाल के पास संगठन को विस्तार देने का लंबा अनुभव है। संघ उनके इस अनुभव का लाभ अब अपने कार्यों के विस्तार में लेना चाहता है। संघ के पास 36 ऐसे आनुषंगिक संगठन हैं, जो बड़े पैमाने पर प्रभाव दिखाने के लिए उत्सुक हैं, ठीक उसी तरह जिस ढंग से आज संघ के विचारों व नीतियों से जुड़ा राजनीतिक संगठन भाजपा अपना प्रभाव और स्वीकार्यता देश के हर कोने में दिखा रहा है। इसके लिए संघ ने एक रणनीति के तहत रामलाल को वापस बुलाया है ताकि उनके अनुभवों और प्रभाव का लाभ संघ को अपने अन्य आनुषंगिक संगठनों के विस्तार में मिल सके।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)