देश के हर ‘कोविंद’ की आँख में भाजपा ने आकाश तक पहुँचने का स्वप्न रोप दिया है !

भारत एक अद्भुत और स्वर्णिम युग में प्रवेश कर चुका है। विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल और भारत की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने फिर से एक बार अपने होने का मतलब साबित किया है। फिर से दीनदयाल के अन्त्योदय का सपना साकार हुआ है। भारत के करोड़ों रामनाथके घर की कच्ची दीवाल के पक्के होने की अलख जगी है। देश के हर कोविंदकी आंखों में आकाश तलक पहुंच पाने का सपना फिर से धान के बिचड़े की तरह रोपने में भारतीय जनता पार्टी फिर से सफल हुई है।

वर्षा ऋतु का यह समय कृषि प्रधान हमारे देश के लिए हमेशा उम्मीदों की फसल को लहलहाने वाला होता है। अच्छे फसल की उम्मीद में अन्नदाता अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा से खेतों में जुट पड़ते हैं। श्रमिक वर्ग भी हंसी-खुशी अपने श्रम का बिरबा धरती मां की गोद में रोप अगली फसल आने तक रोटी-कपड़ा-आवास के साथ-साथ बेटी के हाथ पीले करने के सपने और बच्चों को विद्यालय तक पहुंचाने के जुगत भी उसी लहलहाती फसल से भिड़ाने लगते हैं।

निश्चय ही समय से आया यह मानसून केवल किसी सुकारू के पेट और पीठ की दूरी ही बढ़ाने के काम नहीं आता, अपितु मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में बैठे रोटी से खेलने वाले बड़े-बड़े ‘बुल्स और बीयर्स’ का खेल भी धरती के शस्य-श्यामला होने से ही चल पाता है। किसी मंगरू का ही नहीं बल्कि वित्त विभाग का जीडीपी, जीएनपी, पर कैपिटा इनकम आदि आंकड़ों से भरने का काम भी धरती का सीना चाक कर निकले अनाजों से ही हो पाता है। तो गांव-गरीब-किसान से लेकर उद्योग-व्यापार संस्थान तक समय से आये अच्छे मानसून से अभी लहलहाते नज़र आ रहे हैं।

लेकिन मानसून की यह झमाझम बारिश बालक रामनाथ के लिए पहले इतना अच्छा भी नहीं हुआ करता था। ऐसे मौसम में अपने फूस की टपकती छत से भाई-बहनों के साथ वह बालक कच्ची मिट्टी की दीवाल से चिपक कर खड़ा हो जाता था ताकि बूंदों की इस मार से ज़रा सा बच सके। ताकि उसका एकमात्र पुराना कपड़ा भी अगले दिन स्कूल जाने लायक कम से कम बचा रह सके। दिक्कत केवल बारिश से भी नहीं थी। गर्मी का मौसम तो इस परिवार के लिए एक बार जानलेवा ही हो गया था।

जेठ की तपती दुपहरी और रूह तक को जलाने वाली पछुआ हवा एक दिन आग बनकर ‘टूटी मरैया’ पर बरस पड़ी थी। कलेजे से चिपके अपने रामनाथ को तो बचाने में मां सफल रही लेकिन खुद को उस लपटती आग से बचा नहीं सकी थी। मुश्किल से चलने लायक भी नहीं हो पाने की उम्र में अनाथ हो चुके बालक कोविंद का संघर्ष और बढ़ गया था। लालन-पालन फिर किसी तरह पिता और भाभी ने मिलकर किया था।

आज उस भाभी के आनंद का पारावार नहीं है। वे अपने कोविंद को भारत के सबसे बड़ेघरमें जाते देख कर अपनी खुशी को शब्द देने में असमर्थ हैं। दीनदयाल का यह अंतिम व्यक्ति अनेक रपटीली राहों से निकलते हुए, विभिन्न जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए आज महान भारत के राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुआ है। आसेतु हिमाचल तक विस्तृत, दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र ने अपना संवैधानिक प्रमुख उन्हीं रामनाथ कोविंद को चुन लिया है।

भारत एक अद्भुत और स्वर्णिम युग में प्रवेश कर चुका है। विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल और भारत की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने फिर से एक बार अपने होने का मतलब साबित किया है। फिर से दीनदयाल के अन्त्योदय का सपना साकार हुआ है। भारत के करोड़ों ‘रामनाथ’ के घर की कच्ची दीवाल के पक्के होने की अलख जगी है। देश के हर ‘कोविंद’ की आंखों में आकाश तलक पहुंच पाने का सपना फिर से धान के बिचड़े की तरह रोपने में भारतीय जनता पार्टी फिर से सफल हुई है। निश्चय ही ये इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि भाजपा ही जानती है कि सबसे बेहतर होता है एक सपने को ज़िंदा कर देना। दारिद्र्य के पाश से मुक्ति का सपना, भारत के पुरा-वैभव को पुनर्स्थापित करने का आदिम स्वप्न ! ऐसा सपना जिसे सब जानते हैं कि मुखर्जी-दीनदयाल, अटल-आडवाणी, मोदी-शाह की पार्टी ही साकार कर सकती है।

भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए भी यह गौरव का क्षण है जहां देश के सभी शीर्ष पदों पर आज विचार-परिवार के ‘रामनाथ’ आसीन हैं। नव निर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, अवश्यम्भावी उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन समेत शीर्ष से नीचे तक केवल और केवल आज राष्ट्रवादी हस्तियां ही राष्ट्र के मुकुट का रत्न बनी हुई हैं। देश का लोकतंत्र एक ऐसा वितान रच रहा है जहां इन्द्रधनुष के विभिन्न रंगों की तरह हर जाति-समूह-वर्ग-लिंग खुद का प्रतिनिधित्व पा रहा है जैसा कि नए चयनित राष्ट्रपति ने कहा भी कि वे रायसीना की पहाड़ी पर करोड़ों रामनाथ कोविंद का प्रतिनिधि बन कर जा रहे हैं।

न केवल सभी वर्ग-समूह के लोग आज इस लोकतंत्र में हिस्सेदारी कर रहे हैं, अपितु सायास देश की सभी दिशायें भी आज शीर्ष का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। उत्तर से राष्ट्रपति, दक्षिण से उपराष्ट्रपति, पूर्व से निवर्तमान राष्ट्रपति तो पश्चिम से प्रधानमंत्री और मध्य से लोकसभाध्यक्ष। इस तरह का सुन्दर संतुलन, सामान हिस्सेदारी की ऐसी कल्पना निश्चय ही राष्ट्रवादी विचारधारा के वश की ही बात है। ‘ये फूल क्या मुझको विरासत में मिले हैं, तुमने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा।’ निश्चित ही यह अनायास तो नहीं ही हुआ है। यह दशकों के परिश्रम का, पार्टी के दर्ज़नों मनीषियों के चिंतन, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के प्रति आदर, सर्व समूह समादर की भावना मन में रख काम करने का ही साफल्य है। अपने जन्म के समय से ही भाजपा सतत इस कोशिश में लगी रही है।

अगर आप गौर करेंगे तो पायेंगे कि विपक्षियों के लाख दुष्प्रचार के उलट आज भारत में सबसे ज्यादा दलित सांसद और विधायक भाजपा के पास हैं। दीनदयाल की भाजपा समान रूप से गांधी, लोहिया और अम्बेडकर के विचारों से प्रेरणा लेती है। हाल ही में नरेंद्र मोदी की सरकार ने बाबा साहब अम्बेडकर के लन्दन वाले घर को खरीद कर उसे वहां संग्रहालय का रूप दिया है। खुद बाबा साहब अम्बेडकर भी 1939 में पुणे के शिविर में जा कर, वहां सभी सवर्ण-दलित राष्ट्रवादियों को एक ही पंक्ति में बैठे देख कर गद्गद हुए थे। उन्होंने (भाजपा की वैचारिक खुराक) समन्वय की उस राष्ट्रवादी भावना को करीब से महसूसा था। उसी विचार के ईमानदार परिपालन के कारण भाजपा आज समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने में सक्षम हुई है।

अपने छत्तीसगढ़ में इस चुनाव में संभावित आंकड़ों से भी आगे जा कर अंतरात्मा की आवाज़ पर विपक्ष के कुछ वोट प्राप्त करने में भी राजग सफल रही है, यहां भी भाजपा के नौ विधायक दलित वर्ग से हैं। यहां तक कि 1993 में जब छत्तीसगढ़ अंचल में पार्टी को तब तक की सर्वाधिक 30 सीटें मिली थीं, उनमें से 25 विधायक अनुसूचित समूहों से ही थे। यही फर्क भाजपा को अन्यों से मीलों आगे रखता है।

अन्य सभी दलों के लिए लक्षित वर्गों का तुष्टिकरण जहां वोट पाने के लिए उनकी पॉलिसी मात्र है, वहीं भाजपा के लिए हर व्यक्ति तक उसका अधिकार पहुंचाना पार्टी की संस्कृति का हिस्सा है। जब भी पार्टी ने मौका हासिल किया है तब-तब अपनी इस सामूहिकता की भावना को, गुरूजी के शब्द ‘मैं नहीं तू’ को चरितार्थ किया है। पार्टी की यही भावना इस राष्ट्रपति चुनाव में और ज्यादा स्पष्ट और सच्चे तरीके से मुखरित हुई है।

(यह लेख छत्तीसगढ़ भाजपा के मुखपत्र दीपकमल का सम्पादकीय है।)