आजादी के बाद से देश में बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएँ बनाई गईं हैं। सब्सिडी या कर्ज ब्याज दर में रियायत देने के प्रावधान भी किये गये हैं, लेकिन पहली बार रेरा के जरिये आम आदमी के घर के सपने को पूरा करने की कोशिश की गई है। इस नजरिये से कहा जा सकता है कि रेरा की मदद से आम आदमी आसानी से घर के सपने को पूरा कर सकेगा और वैसे लोग जो अभी तक बिल्डरों के डर से घर खरीदने से परहेज कर रहे थे, भी इसे खरीदने के लिए प्रेरित होंगे।
रेरा क़ानून का प्रस्ताव पहली बार जनवरी, 2009 में राज्यों एवं संघ क्षेत्रों के आवास मंत्रियों की राष्ट्रीय बैठक में पारित किया गया था। पुनश्च: आवासीय और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय के आठ वर्षों के लंबे प्रयास के बाद 01 मई, 2016 को इस कानून को अमलीजामा पहनाया गया एवं कुल 92 अनुच्छेदों में से 69 को अधिसूचित किया गया। देखा जाये तो इस अधिनियम का मकसद रियल्टी कंपनियों की गतिविधियों में पारदर्शिता लाना, रियल्टी क्षेत्र में निवेश बढ़ाना और खरीददारों के हितों का संरक्षण करना है।
रेरा के तहत राज्य स्तर पर भी रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण का गठन किया गया है। इसके तहत विवादों का 60 दिनों के भीतर त्वरित न्यायाधिकरणों द्वारा निष्पादन किया जायेगा। 500 वर्ग मीटर या 8 अपार्टमेंट तक की निर्माण योजनाओं को छोड़कर सभी निर्माण योजनाओं को रेरा के तहत पंजीकरण कराना अनिवार्य है। ग्राहकों से ली गई 70 प्रतिशत धनराशि को अलग बैंक खाते में रखने एवं उसका उपयोग केवल निर्माण कार्य में करने का प्रावधान इस अधिनियम में किया गया है।
माना जा रहा है कि इससे रियल इस्टेट में व्याप्त विसंगतियों की पुनरावृति पर लगाम लगेगी और आवासीय परियोजनाओं को निर्धारित समय पर पूरा करना संभव हो सकेगा। परियोजना संबंधी जानकारी जैसे, प्रोजेक्ट का ले-आउट, स्वीकृति, ठेकेदार एवं प्रोजेक्ट की मियाद का विवरण खरीददार को अनिवार्य रूप से देना होगा। समय-सीमा में निर्माण कार्य नहीं पूरा करने पर बिल्डर को ब्याज का भुगतान ग्राहक को उसी दर पर करनी होगी, जिस दर पर बिल्डर भुगतान में हुई चूक के लिए ग्राहक से ब्याज वसूलता है।
रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण के आदेश की अवहेलना करने पर बिल्डर को 3 वर्ष की सजा दी जा सकती है साथ ही साथ इस संदर्भ में उसपर जुर्माना लगाने का प्रावधान भी है। इधर, बैंकों ने रिजर्व बैंक के साथ सलाह-मशविरा करके यह फैसला किया है कि रेरा के तहत पंजीकरण नहीं कराने पर वे बिल्डरों को कर्ज नहीं देंगे। बैंकों के इस फैसले से बिल्डर रेरा के तहत परियोजनाओं को पंजीकृत कराने के लिये मजबूर हो जायेंगे, जिससे उनके लिये धोखाधड़ी करना आसान नहीं होगा।
परियोजनाओं में देरी करने पर बिल्डरों पर परियोजना की अनुमानित राशि से 10 प्रतिशत अधिक जुर्माना लगाया जा सकता है। पंजीकृत परियोजनाओं के बिल्डरों के खिलाफ शिकायत करने का भी प्रावधान इस कानून में है। शिकायत सीधे चेयर पर्सन को की जा सकती है, जिसकी सूचना शिकायतकर्ता को देने का प्रावधान है।
वैसे, जिन परियोजनाओं को पंजीकृत नहीं कराया गया है, वे भी बिल्डर के खिलाफ शिकायत कर सकते हैं। शिकायत हेतु शिकायतकर्ता को अपना नाम, बिल्डर का नाम, ई मेल, परियोजना का नाम, परियोजना का पता, फ्लैट आवंटित है या नहीं आदि जानकारियाँ देनी होंगी। साथ ही, शिकायत से संबंधित दस्तावेजों के प्रमाण, घोषणा पत्र, जिसपर शिकायत क्रमांक लिखा हो, दस्तावेज के हर पेज पर शिकायतकर्ता का हस्ताक्षर और यदि शिकायतकर्ता वकील के जरिये शिकायत करता है तो कोर्ट फीस, स्टैम्प, मोबाइल नंबर, पता आदि विवरण देना अनिवार्य है।
रेरा के तहत बिल्डर को अपने 5 सालों के रिकॉर्ड को भी दर्ज कराना होगा, जिससे ग्राहक बिल्डर के प्रोफ़ाइल को एक्सेस करके उसके पिछले प्रदर्शन के अनुसार सही बिल्डर का चयन कर सकेंगे। रेरा से बिल्डरों को भी फायदा होगा। परियोजना के रेरा में पंजीकृत होने से बिल्डर की ब्रांड इमेज बनेगी और उन्हें बैंकों से कर्ज लेने में आसानी होगी। ग्राहक पंजीकृत बिल्डर के पास बिना हिचक के मकान या फ्लैट लेने के लिये जा सकेंगे। रेरा में बिल्डरों की पूरी जानकारी होने से बैंकों को भी उन्हें कर्ज देने में आसानी होगी।
गौरतलब है कि चालू परियोजनाओं के पंजीकरण के लिये अंतिम तिथि 31 जुलाई, 2017 थी। ऐसी परियोजनाओं को रेरा के तहत पंजीकृत कराने के लिये बिल्डरों को 90 दिनों का समय दिया गया था। 31 जुलाई, 2017 तक मुंबई में रेरा के तहत 15122 ऑनलाइन फॉर्म तक जमा किये गये थे। शुरू में पंजीकरण की रफ्तार बहुत धीमी थी, लेकिन आखिरी 5 दिनों में इसके अंतर्गत 5000 परियोजनाओं का पंजीकरण कराया गया, जबकि 31 जुलाई, 2017 को 24 घंटों के अंदर 3000 परियोजनायेँ पंजीकृत की गईं। इसतरह, 31 जुलाई तक मुंबई में कुल 9554 परियोजनाओं का पंजीकरण कराया गया।
इसमें दो राय नहीं है कि रेरा के आने से बिल्डरों में कानून का भय पैदा हुआ है। अन्यथा मुंबई में चालू परियोजनाओं को पंजीकृत कराने के लिए अंतिम 5 दिनों में 5000 परियोजनाओं का पंजीकरण नहीं कराया जाता। मौजूदा समय में देशभर में बिल्डरों की मनमानी चल रही है। आमतौर पर बिल्डर गाहकों को समय पर फ्लैट आवंटित नहीं करते हैं।
चूँकि, आज फ्लैट की कीमत इतनी बढ़ चुकी है कि बिना कर्ज के इसे नहीं खरीदा जा सकता है। ऐसे में समय पर फ्लैट नहीं मिलने पर ग्राहकों को किराया और कर्ज की किस्त व ब्याज दोनों देना पड़ता है। बिल्डरों द्वारा ग्राहकों पर अतार्किक तरीके से ब्याज आरोपित करने एवं फ्लैटों की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ करने के मामले भी देखे जाते हैं।
आमतौर पर रियल एस्टेट के क्षेत्र में बिल्डर एक परियोजना का पैसा दूसरी परियोजना में लगा देते हैं, जिससे ग्राहकों को घर मिलने में देरी होती है। माना जा रहा है कि इस नये कानून से रियल इस्टेट में व्याप्त ऐसी अनियमितताओं का समापन होगा। आजादी के बाद से देश में बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएँ बनाई गईं हैं। सब्सिडी या कर्ज ब्याज दर में रियायत देने के प्रावधान भी किये गये हैं, लेकिन पहली बार रेरा के जरिये आम आदमी के घर के सपने को पूरा करने की कोशिश की गई है। इस नजरिये से कहा जा सकता है कि रेरा की मदद से आम आदमी आसानी से घर के सपने को पूरा कर सकेगा और वैसे लोग जो अभी तक बिल्डरों के डर से घर खरीदने से परहेज कर रहे थे, भी इसे खरीदने के लिए प्रेरित होंगे।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। स्तंभकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)