विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता रविन्द्र नाथ टैगोर ने एक बार कहा था, ”आपको भारत को जानना है तो स्वामी विवेकानंद जी को पढ़िए उनमें सबकुछ सकारात्मक है, कुछ भी नकारात्मक नहीं”। आज इस वातावरण के बीच में हमे गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर के ये शब्द फिर से याद करने की जरुरत है जो उन्होंने स्वामीजी के बारे में कहे हैं।
चर्चा-विमर्श प्रगतिशील समाज का अभिन्न अंग है। लेकिन जब यह चर्चा-विमर्श राजनैतिक या वैचारिक विषयों पर होते हैं, तो अच्छे मित्रों में भी मतभेद करवा देते हैं, जो जल्दी ही मनभेद में तब्दील हो जाता है। बहुत बार तो कई लोग राजनीतिक और वैचारिक लड़ाई में राष्ट्रहित को भी पीछे छोड़ देते हैं, उसको भूल जाते हैं।
लेकिन आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि अपनी विचारधारा हमें किसी दूसरे के ऊपर थोपने की जरुरत नहीं है। हमें तो अपनी विचारधारा, जो की एक विचार है, को धारण करके उसके अनुरूप जीवन जीने की जरुरत है।
19वी शताब्दी में जन्मे महान कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद जी के विचारों को याद करने की जरुरत है, जिनके बारे में विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता रविन्द्र नाथ टैगोर ने एक बार कहा था, ”आपको भारत को जानना है तो स्वामी विवेकानंद जी को पढ़िए उनमें सबकुछ सकारात्मक है, कुछ भी नकारात्मक नहीं”। आज इस वातावरण के बीच में हमे गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर के ये शब्द फिर से याद करने की जरुरत है जो उन्होंने स्वामीजी के बारे में कहे हैं।
यह स्वामी विवेकानंद के सकारात्मक विचार ही हैं, जिसके कारण बाल गंगाधर तिलक से लेकर महात्मा गाँधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस से लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर से लेकर वामपंथी नेता तक सब उनसे प्रभवित थे। इस लेख में आगे आपको कुछ वैचारिक नेताओं का स्वामी विवेकानंद के प्रति भाव बताऊंगा।
“रेमिनिसेंसेस ऑफ़ स्वामी विवेकानंद- एन अन्थोलोजी बाय हिज ईस्टर्न एंड वेस्टर्न ऐडमायरर्स” पुस्तक में बाल गंगाधर तिलक लिखते हैं कि एक समय जब वो बम्बई के रेलगाड़ी स्टेशन से पुणे जाने के लिए यात्री-डिब्बे में बैठे थे, उसी समय यात्री-डिब्बे में एक संन्यासी ने प्रवेश किया। वे स्वामीजी थे। स्वामीजी को जो लोग छोड़ने आये थे, वो श्री तिलक जी को जानते थे और उन्होंने स्वामीजी से उनका परिचय भी करवा दिया था और पुणे में तिलक जी के घर पर ही रहने का अनुरोध किया।
बाल गंगाधर तिलक आगे लिखते हैं कि, स्वामी जी के पास बिलकुल भी पैसे नहीं थे और वो हाथ में एक कमंडल साथ रखते थे। विश्व धर्म महासभा की सफलता के बाद जब स्वामीजी के चित्र तिलक जी ने समाचार पत्रों में देखे तो उनको याद आया कि यह वही संन्यासी हैं, जिन्होंने उनके घर पर कुछ दिन तक निवास किया था।
इसके बाद दोनों के बीच पत्र व्यवहार भी हुआ था। 1901 में जब इंडियन नेशनल कांग्रेस का 17वां अधिवेशन हुआ तो उसमें भाग लेने के लिए तिलक जी कलकत्ता आये थे, इसी दौरान वह बेलुड़ मठ जाकर स्वामीजी से मिले।
स्वामीजी ने उन्हें संन्यास लेने और बंगाल आकर उनका कार्यभार सँभालने को भी कहा था, क्योंकि स्वामीजी के अनुसार अपने क्षेत्र में कोई व्यक्ति इतना प्रभावशाली नहीं होता जितना सुदूर क्षेत्रों में। इस मुलाकात के बाद तिलक जी बेलुड़ मठ आये थे और स्वामीजी से मार्गदर्शन लिया था। उनके द्वारा स्थापित समाचार पत्र “केसरी” के संपादक एन. सी. केलकर भी स्वामीजी से मिलने आते थे।
महात्मा गांधी अपनी आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में लिखते हैं कि अपने कलकत्ता प्रवास में वो एक दिन पैदल ही बेलुड़ मठ की ओर चल पड़े थे, लेकिन उनको यह जानकर बहुत निराशा हुई कि स्वामीजी अस्वस्थ हैं और उनकी मुलाकत स्वामीजी से नहीं हो पाई। हालांकि स्वामीजी की शिष्या भगिनी निवेदिता से गांधी जी दो बार मिले थे और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा भी की थी।
स्वामीजी के निधन के काफी बाद एक बार पुनः वर्ष 1921 को गांधी जी बेलुड़ मठ आये थे और उन्होंने कहा था, कि “उनके हृदय में दिवंगत स्वामी विवेकानंद के लिए बहुत सम्मान है। उन्होंने उनकी कई पुस्तकें पढ़ी हैं और कहा कि कई मामलों में उनके विचार इस महान विभूति के आदर्शों के समान ही हैं। यदि विवेकानंद आज जीवित होते तो राष्ट्र जागरण में बहुत सहायता मिलती। किंतु उनकी आत्मा हमारे बीच है और उन्हें स्वराज स्थापना के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें सबसे पहले अपने देश से प्रेम करना सीखना चाहिए और उनका इरादा एक जैसा होना चाहिए।”
जवाहरलाल नेहरू भी स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व, गौरव और गरिमा से प्रभावित थे। जवारलाल नेहरू द्वारा लिखी ”दी डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया” और ”ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री” में अनेक बार वह स्वामीजी का सन्दर्भ देते हैं।
एमओ मथाई की पुस्तक ‘रेमिनिसन्स ऑफ नेहरू एज’ के अनुसार बाबा साहब आंबेडकर के साथ मथाई के संवाद के दौरान आंबेडकर जी ने यह कहा था कि ”हाल की शताब्दियों में भारत में जन्मे सबसे महान आदमी, गांधी नहीं, बल्कि विवेकानंद हैं।“ बाबा साहब का स्वामी विवेकानंद को सबसे महान बताना उनके स्वामीजी के प्रति सकारात्मक भाव को बताता है।
विवेकानंद जी के स्मारक निर्माण के लिए समाजवादी नेता श्री राम मनोहर लोहिया, साम्यवादी नेता श्रीमती रेणु चक्रवर्ती द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक या डीएमके) के संस्थापक और तमिलनाडु के प्रथम मुख्यमंत्री अन्नादुराई ने सहयोग भी दिया और स्वामीजी की प्रशंसा भी की थीI ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) की स्वर्गीय नेता जयललिता जयराम भी स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित थीं।
ऐसे ही सुभाष चंद्र बोस का स्वामीजी के साहित्य से परिचय महज़ 15 वर्ष की उम्र में हुआ था। सुभाष चंद्र बोस ने कहा था कि स्वामीजी को पढ़ने के बाद उनका पूरा जीवन ही बदल गया और भटकाव खत्म होने लगा, उसके बाद उन्होंने पूरे जीवन स्वामीजी का अनुकरण किया।
स्वामी विवेकानंद ने पूरा जीवन निस्वार्थ भाव से भारत माता के चरणों में समर्पित कर दिया था। वह जीवन भर मनुष्य निर्माण के कार्य में लगे रहे। वह भारतीयता और वेदांत को घर-घर में जागृत करने का कार्य कर रहे थे।
इसीलिए हम सबको समझना पड़ेगा कि मार्ग अलग हो सकते हैं, लेकिन देश के लिए कोई रचनात्मक और सृजनात्मक कार्य करते समय राजनीतिक और वैचारिक द्वंद्व को दूर रखते हुए उस सकारात्मक कार्य का समर्थन करना चाहिए। राष्ट्रहित सर्वोपरि रहना चाहिए। भारत माता के हर पुत्री और पुत्र का एकमात्र संकल्प इस सदियों पुरानी भारतीय सनातन परंपरा को विश्व गुरु बनाने का होना चाहिए।
(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक की डिग्री प्राप्त कर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैंI प्रस्तुत विचार उनके निजी हैंI)