इस शिखर सम्मेलन में जिस एक बिंदु ने सर्वाधिक ध्यान खींचा वह है भारतीयता एवं सनातन संस्कृति के प्रतीकों को इस आयोजन का हिस्सा बनाना। आयोजन स्थल पर इंडिया की जगह भारत की झलक ज्यादा नजर आई। पीएम मोदी ने जब उद्घाटन भाषण दिया, तो उनकी नेम प्लेट पर भी देश के नाम के रूप में ‘भारत’ लिखा था। दिल्ली में जिस स्थल पर यह सम्मेलन किया गया उसका नाम ही भारत मंडपम रखा गया है। इसी से भारतीयता के संकेत का आरंभ होता है। आयोजन स्थल के बाहर अष्टधातु से बनी नटराज की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
गत 10 सितंबर को राजधानी दिल्ली में चल रहे जी-20 शिखर सम्मेलन का समापन हो गया। इस बार जी-20 की अध्यक्षता भारत के पास थी और सम्मेलन के दो दिनों में देश व दुनिया की मीडिया में यह आयोजन सुर्खी का केंद्र बना रहा। 10 सितंबर को तीसरे चरण की बैठक के बाद भारत ने ब्राजील को जी-20 की अध्यक्षता सौंपी। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन हुआ और इस सम्मेलन का समापन हो गया।
बीते शनिवार यानी 9 सितंबर को इसका पहला दिन अनेक अर्थों में ऐतिहासिक रहा। सभी अहम एवं बड़े फैसलों में भारत की भूमिका बहुत अहम रही। भारत बैठक के सफल आयोजन की दुनियाभर में तारीफ प्रशंसा हो रही है। भारत की अतिथि सत्कार परंपरा सदैव अपने आप में बड़ा मूल्य रही है और इसकी सर्वत्र चर्चा रहती है।
इस शिखर सम्मेलन में भारत ने अतिथि देशों के राष्ट्राध्यक्षों की जो खातिरदारी की, उससे सभी दिग्गज गदगद हुए बिना नहीं रह सके। सम्मेलन के समापन के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इन दो दिनों में आप सभी ने बहुत सारे सुझाव दिए एवं प्रस्ताव रखे।
हम चाहते हैं कि इनकी एक बार फिर से समीक्षा की जाए, ताकि यह देखा जा सके कि उनकी प्रगति को कैसे तेज किया जा सकता है। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि आगामी नवंबर के अंत में हम जी-20 का एक वर्चुअल सत्र आयोजित करें। हम इस शिखर सम्मेलन में तय किए गए विषयों की समीक्षा उस वर्चुअल सत्र में कर सकते हैं।
मोदी का यह संबोधन दूरदर्शी भी है और व्यवहारिक रूप से सत्य भी। बीते साल नंवबर में बाली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद दिसंबर से इसकी अध्यक्षता भारत के पास थी। इसी क्रम में दिल्ली में 9 एवं 10 सितंबर को यह सम्मेलन आयोजित किया गया। इसके सफल आयोजन के बाद से विश्व भर में भारत की धाक जम गई है और एक उन्नत राष्ट्र के रूप में भारत का नाम अग्रणी हो गया है।
पिछली बार हुई जी-20 की बैठक से तुलना की जाए तो भारत की अध्यक्षता में विश्व नेताओं की बैठक को सबसे समावेशी माना जा रहा है। पिछली बार हुई बैठक की तुलना में भारत की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में अधिक मुद्दों पर चर्चा हुई और इसके लिए सहमति भी बनी। इस बैठक में 112 मुददों पर परिणाम सामने आए। जो 2017 में हुई जी-20 की बैठक में आए परिणाम से दोगुना है।
इस शिखर सम्मेलन में जिस एक बिंदु ने सर्वाधिक ध्यान खींचा वह है भारतीयता एवं सनातन संस्कृति के प्रतीकों को इस आयोजन का हिस्सा बनाना। आयोजन स्थल पर इंडिया की जगह भारत की झलक ज्यादा नजर आई। पीएम मोदी ने जब उद्घाटन भाषण दिया, तो उनकी नेम प्लेट पर भी देश के नाम के रूप में ‘भारत’ लिखा था।
दिल्ली में जिस स्थल पर यह सम्मेलन किया गया उसका नाम ही भारत मंडपम रखा गया है। इसी से भारतीयता के संकेत का आरंभ होता है। आयोजन स्थल के बाहर नटराज की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है जो कि अष्टधातु से बनी है।
इसके बारे में यह बताया गया है कि यह विश्व की सबसे ऊंची एवं भव्य नटराज प्रतिमा है। नटराज भगवान शिव का नृत्य स्वरूप है जब उन्होंने तांडव किया था। कई लोगों ने नटराज के स्वरूप को अभी तक धार्मिक प्रसंगों में सुना था लेकिन अब प्रत्यक्ष रूप से वे इसकी मूर्ति को देख पा रहे हैं।
भारत मंडपम के बाहर स्थापित इस प्रतिमा पर विदेशी मेहमानों की बरबस ही निगाह ठहर गई। सम्मेलन के सभाकक्ष तक पहुंचने के रास्ते के बीच कोर्णाक के सूर्य मंदिर एवं अशोक चक्र की विशाल कलाकृति स्थापित की गई है। यहां खड़े होकर स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने सभी राष्ट्राध्यक्षों की अगवानी की एवं उन्हें इसके महत्व के बारे में स्वयं बताया। इस क्रम में नालंदा विश्वविद्यालय को भी शामिल किया गया। इतना ही नहीं, भीतर देश के सभी प्रदेशों की संस्कृति को दर्शाती प्रदर्शनी भी लगी थी जिससे हर प्रदेश का एक परिचय स्वत: ही मिल रहा था।
एक और विशेष बात यह थी कि भोजन सत्रों के दौरान मोटे अनाज से तैयार किए गए व्यंजनों, पकवानों के स्टाल लगाए गए। इस साल भारत अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स ईयर मना रहा है। इसके चलते मध्य प्रदेश के डिंडौरी आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं ने यहां मोटे अनाज से बने भोज्य पदार्थों को प्रस्तुत किया जिसे विदेशी मेहमानों ने खासा पसंद किया।
इन सब गतिविधियों से यह तो सुस्पष्ट हो गया कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस बड़े आयोजन के मंच के ज़रिये भारतीयता एवं सनातन से जुड़े प्रतीकों को सम्मुख लाकर खड़ा किया एवं विश्व को भारत की गौरवशाली विरासत से परिचित कराया। मोदी के स्वयं के बैठक स्थान पर नेम प्लेट पर देश का नाम इंडिया की बजाय भारत था। यह बहुत दूरदर्शी एवं गहरे संकेत देने वाला उपक्रम है।
इस देश को इसके वास्तविक नाम से ही पहचाना जाए और इसके लिए जी-20 का मंच एक माध्यम बनकर सामने आया। सम्मेलन के दूसरे दिन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में सपत्नीक जाकर पूजा की। वे भी भारतीयता के रंग में रंगे नज़र आए।
अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर वे पूरे मनोयोग से मंदिर पहुंचे। यहां उन्होंने रिसेप्शन सेंटर पर ही अपने जूते उतारे फिर बारिश के बीच छाता लेकर पत्नी सहित पैदल चलकर अंदर पहुंचे। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें हिंदू होने पर गर्व है।
इससे अन्य राष्ट्रों को परोक्ष रूप से यह भी संकेत जाता है कि भारत के बारे में उन्होंने अब तक जो भी नकारात्मक सुना या पढ़ा था वह कपोल कल्पित वामपंथी एजेंडा था। यहां आकर इन दिग्गजों को पहली बार पता चला कि भारत की सांस्कृतिक विरासत इतनी समृद्ध रही है। इसलिए भारतीय मूल्यों एवं प्रतीकों को फिर से चर्चा में लाकर स्थापित करने का जो कार्य प्रधानमंत्री मोदी ने किया है, वह वास्तव में स्तुत्य एवं प्रणम्य है।
यह सम्मेलन देश में अब तक के सबसे समावेशी, सांस्कृतिक रूप से जीवंत और लक्ष्य-उन्मुख आयोजनों में से एक के रूप में दर्ज किया गया। जी-20 शिखर सम्मेलन में टेक्नोलाजी के उपयोग के जरिए जीवन को आसान बनाने के साथ, सभी हिस्सों में शांति लाकर देश के विकास की गति देने की बात हुई।
इस दौरान 115 से अधिक देशों से आए 25 हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने देशभर के 60 शहरों में 220 से ज्यादा मीटिंग की। भारत की अध्यक्षता में हुई जी-20 शिखर सम्मेलन की यह बैठक ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के अपने संदेश पर कायम रही। सम्मेलन से भारत ने विश्व को यही संदेश दिया है कि अब वह एक सशक्त एवं मार्गदर्शक भारत है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)