अमित शाह : चुनौतियों से लड़कर नई लकीर खींचने वाले नेता

पहले गुजरात में पार्टी के संगठन से सरकार और फिर राष्ट्रीय स्तर पर भी संगठन से सरकार तक की अमित शाह की राजनीतिक यात्रा का सार यही है कि वे एक ऐसे नेता हैं, जो न केवल नयी चुनौतियाँ लेते हैं बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा कर नयी लकीर खींचने में भी कामयाब रहते हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व और उसके पश्चात् भी भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत के बाद सबसे दिलचस्प सवाल यही था कि अमित शाह संगठन से सरकार की तरफ आएंगे अथवा नहीं ? शपथ ग्रहण के उपरांत यह तय हो गया कि अमित शाह नरेंद्र मोदी के मंत्रीमंडल में शामिल होंगे। उन्हें गृहमंत्री का दायित्व दिया गया। यहाँ से अमित शाह ने एक नई लकीर खींचनी शुरू की जिसकी कल्पना किसी भी भारतीय को नहीं होगी।

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ऐसा इसलिए भी कहना पड़ रहा क्योंकि पदभार सँभालने के कुछ ही महीने बाद अमित शाह और देश की संसद पर देश की नजर टिक जाती है, जब वह अनुच्छेद-370 व 35ए को निष्प्रभावी करने वाला विधेयक संसद में प्रस्तुत करते हैं।

किसी को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि अमित शाह इतनी जल्दी इतना बड़ा कदम उठाएंगे। यह देश की एकता-अखंडता की दृष्टि से ऐतिहासिक घटना तो थी ही, भाजपा के वैचारिक नजरिये से भी यह मुद्दा भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था।

आज जब नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल को लगभग डेढ़ वर्ष गुजर चुके हैं, तो यह बात एकदम साफ़ देखी जा सकती है कि सरकार के इस कार्यकाल में सबसे ज्यादा चर्चित नाम अमित शाह का ही रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण अमित शाह की निर्णय लेने की शक्ति और उसे कुशलता से अमल में लाने की नीति है।

शाह की निर्णय-क्षमता में एक महत्वपूर्ण बात झलकती है कि वे जब भी कोई निर्णय लेते हैं, उस मुद्दे के सभी बिंदुओं पर पूरी तैयारी के साथ व्यापक चर्चा विचार-विमर्श करते हैं। जिसे हम ‘होम वर्क’ भी कह सकते हैं।

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सदन में किसी भी बड़े मुद्दे की चर्चा को देखें मसलन अनुच्छेद 370, नागरिकता संशोधन विधेयक अथवा यूएपीए बिल अमित शाह ने सभी नेताओं के सवालों के ठोस जवाब दिए। यहाँ तक की कई बार ऐसा हुआ कि उनके जवाबों से कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल सकते में पड़ गए।

अमित शाह के सामाजिक-राजनीतिक जीवन को देखें तो एक बात स्पष्ट होती है कि वे कठिन परिश्रम और कुशल रणनीति के साथ चुनौतियों से लड़ते हुए अपने दायित्व से संबंधित बड़ी लकीर खींचते हैं।

2014 के आम चुनावों में उनको उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, वहां के चुनाव परिणाम ने देश के बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान कर दिया। उसके बाद भाजपा के अध्यक्ष के रूप में जो कार्य उन्होंने किया उसे देखकर उनके आलोचकों ने भी शाह के संगठन कौशल और उनकी रणनीतियों की प्रशंसा की।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अमित शाह के नेतृत्व में ही भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनी। अमित शाह ने भाजपा को नई उंचाई प्रदान की दक्षिण से लेकर पूर्वोत्तर जैसे राज्यों में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ी, तो इसके पीछे अमित शाह का कठिन परिश्रम और संगठन कौशल था।

बतौर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कितने सफल रहे, इसको गहराई से समझने के लिए 2013 और 2018 में हुए त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करना होगा। यह उदाहरण सबसे उपयुक्त होगा।

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दरअसल 2013 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, लेकिन परिणाम यह निकला कि भाजपा को एक भी सीट हासिल नहीं हुई। यहाँ तक कि 49 उम्मीदवार अपनी जमानत भी बचाने में सफ़ल नही हुए और इस चुनाव में भाजपा को मात्र 1.87 फ़ीसदी वोट के साथ संतोष करना पड़ा।

परन्तु, पांच साल बाद (2018) त्रिपुरा के राजनीतिक परिदृश्य में जो बदलाव हुआ, उसका अंदाज़ा किसी को नहीं था। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 43  फ़ीसदी वोटों के साथ 35 सीटों पर विजय प्राप्त कर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज गई। यह शून्य से शिखर की यात्रा थी। यह जीत लोगों के लिए अप्रत्याशित थी और इस बात का प्रमाण भी कि अमित शाह के हौसले कितने बुलंद हैं।

साथ ही,  शाह का चुनावी प्रबंधन, सोशल इंजीनियरिंग केवल उत्तर भारत ही नहीं, वरन देश के हर राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने तथा उसे बदलने का माद्दा रखता है। बहरहाल, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जब सभी दल भाजपा के खिलाफ लामबंद होने लगे उसके बावजूद अमित शाह कहते थे कि इस चुनाव में भाजपा पिछले से ज्यादा सीटें लाएगी। तब हर कोई उनके इस बयान के निहितार्थ को समझने की बजाय तंज कसता था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम ने यह बता दिया कि शाह आम जनमानस के मन को कितने करीब से समझते हैं।

अमित शाह चुनौतियों से लड़ने वाले योद्धा हैं, उनकी कार्यशैली यह बताती है कि वह अपने लक्ष्य को साधे बगैर शांत नहीं रह सकते। गृहमंत्री बनने के उपरांत अमित शाह ने उन मुद्दों को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जो आज़ादी के बाद से ही देश के लिए नासूर बने हुए थे।

यह ऐसे मुद्दे थे, जिन्हें छूने का साहस भी कोई नहीं करता था, लेकिन चुनौतियों से ठकराने में माहिर अमित शाह ने बतौर गृहमंत्री छह महीने के भीतर ही देश की आकांक्षाओं को देखते हुए उन मुद्दों को सफलतापूर्वक सुलझा कर यह बता दिया कि कोई काम कठिन नहीं होता, बस करने की प्रबल इच्छाशक्ति होनी चाहिए।

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कोरोना महामारी के इस दौर में भी अमित शाह ने उल्लेखनीय कार्य किया। राज्यों को मदद देने से लेकर श्रमिकों में मुद्दे पर हर प्रदेश के बीच समंजस्य बैठाने तक हमें उनका कुशल प्रबंधन देखने को मिला है। अमित शाह लगातार सक्रिय नजर आए। यहाँ तक कि वो खुद कोरोना से संक्रमित हुए।

इसी बीच कई बार ऐसा हुआ कि उसके स्वास्थ्य को लेकर लगातार अफवाहें फैलाई जाने लगी। एक बार अफवाह की गति इतनी तेज़ थी कि गृहमंत्री को ट्विट करके स्पष्टीकरण देना पड़ा। उसके बावजूद इस तरह की अफवाहें आज भी सोशल मीडिया पर कहीं न कहीं दिख जाती हैं।

दरअसल, अनुच्छेद-370 को हटाने, नागरिकता संशोधन कानून के बाद से देश में तथाकथित सेकुलर और लेफ्ट लिबरल समूह की आँखों में अमित शाह पहले की अपेक्षा अधिक खटकने लगे हैं। यही कारण है कि शाह लगातर उनके निशाने पर हैं, अब ये लोग अमित शाह को दुश्मन की नजर से देखने लगे हैं।

परिणामस्वरुप कुछ नहीं मिलने पर अफवाहों के बाज़ार को गर्म करने में अपना श्रम खपा रहे हैं। दूसरी तरफ अमित शाह पुनः पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने कामकाज में जुट गए हैं। अभी हाल ही में एक चैनल को दिए साक्षात्कार में गृहमंत्री ने अपने स्वास्थ्य को लेकर अभी भी चल रहीं अफवाहों पर पूर्णविराम लगा दिया।

अमित शाह के वो पक्ष जिसे कम लोग जानते हैं

उपर्युक्त पृष्ठभूमि के आलोक में कह सकते हैं कि गृहमंत्री अमित शाह एक ऐसे राजनेता हैं, जिनको जानने की इच्छा सबकी होती है। प्राय: मीडिया में जो खबरे आती हैं, उस आधार पर लोग उन्हें बेहद कड़े स्वभाव वाला और क्रोधी नेता मान लेते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।

शाह बेहद सहज-सरल किन्तु अनुशासनप्रिय व्यवहार वाले राजनेता हैं। अमित शाह के ऊपर डॉ अनिर्बान गांगुली और शिवानंद द्विवेदी द्वारा लिखी गई पुस्तक “अमित शाह और भाजपा की यात्रा” में हमें अमित शाह के जीवन से जुड़ी ऐसी महत्वपूर्ण व रोचक घटनाओं का उल्लेख मिलता है, जो अमित शाह के सभी पक्षों को समझने में सहायक हैं।

इस किताब में शाह के दादा की भूमिका को बताते हुए लिखा गया है, ‘..वे अपनी नन्ही सी पोती रुद्री को गोद में बैठाकर वैष्णव जन ते तैने ही कहिए, जे पीर पराई जाने ना को सुनते और उसके साथ बाल-क्रीडा में सहभागी बन जाते हैं’। ऐसे अनेक प्रसंग इस पुस्तक में मिलते हैं जो अमित शाह की मीडिया में गढ़ी गयी छवि से अलग उनकी वास्तविक छवि को सामने लाते हैं।

राजनीतिक जीवन में सक्रिय अमित शाह व्यस्तताओं के चलते अपनी शादी का सालगिरह भूल जाते हैं। दिलचस्प बात ये भी है कि अमित शाह खाने के शौक़ीन हैं और उन्हें पकौड़े बेहद प्रिय हैं। वे साहिर लुधियानवी और कैफ़ी आज़मी की शायरी के प्रशंसक हैं।

कुल मिलाकर पहले गुजरात में पार्टी के संगठन से सरकार और फिर राष्ट्रीय स्तर पर भी संगठन से सरकार तक की अमित शाह की राजनीतिक यात्रा का सार यही है कि वे एक ऐसे नेता हैं, जो न केवल नयी चुनौतियाँ लेते हैं बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा कर नयी लकीर खींचने में भी कामयाब रहते हैं।

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)