वीर बाल दिवस के आयोजन के दौरान प्रधानमंत्री ने इस बात पर विशेष ज़ोर दिया कि, अगर हमें भारत को भविष्य में सफलता के शिखरों तक लेकर जाना है, तो अतीत के संकुचित नजरियों से आजाद होना होगा। इसलिए, आजादी के ‘अमृतकाल’ में देश ने ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ का प्राण फूंका है।
आजादी के ‘अमृत काल’ में एक और अभिनव अध्याय का आरंभ हुआ है। बीते 26 दिसंबर को सिक्खों के अंतिम गुरु, गुरुगोबिंद सिंह जी के बेटों जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान को स्मरण करते हुए ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मना गया। इसी के साथ 26 दिसंबर का दिन देश को एक नई पहचान के रूप में मिला है। अब इसे ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में जाना और मनाया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजधानी दिल्ली में मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में इसकी समारोहपूर्वक शुरुआत की। अबसे पहले देश के बच्चों को केवल विदेशी आंक्रांताओं का इतिहास पढ़ाया गया था, अब इस ऐतिहासिक भूल को सुधारा जा रहा है।
यह दिवस मूल रूप से सिखों के धर्मगुरु गुरु गोविंद सिंह व उनके पुत्रों के राष्ट्र प्रेम व बलिदान को समर्पित है। उनके बलिदान को सदा स्मरण किया जाता रहे, इसलिए इस दिवस का आरंभ किया गया है। इस कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा, ” ‘वीर बाल दिवस’ हमें याद दिलाएगा कि दश गुरुओं का योगदान क्या है, देश के स्वाभिमान के लिए सिख परंपरा का बलिदान क्या है! ‘वीर बाल दिवस’ हमें बताएगा कि भारत क्या है, भारत की पहचान क्या है!”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि, ”इतिहास से लेकर किंवदंतियों तक, हर क्रूर चेहरे के सामने महानायकों और महानायिकाओं के भी एक से एक महान चरित्र रहे हैं। लेकिन ये भी सच है कि, चमकौर और सरहिंद के युद्ध में जो कुछ हुआ, वो ‘भूतो न भविष्यति’ था।”
मोदी सरकार द्वारा की गई यह पहल कई अर्थों में सराहनीय एवं स्वागत योग्य है। सर्वप्रथम इसलिए कि इस एक दिवस के चलते सिख परंपरा के योगदान को आदरांजलि देने का अवसर मिल सकेगा तथा नई पीढ़ी का अपने राष्ट्र के वास्तविक नायकों से परिचय हो सकेगा।
वर्तमान दौर का दुर्भाग्य है कि युवा एवं बच्चों के सामने नायक शब्द की परिभाषा भ्रामक गढ़ी गई है एवं वे अबतक फिल्मी कलाकारों अथवा खिलाड़ियों में ही अपने नायक ढूंढ़ते रहे हैं। जबकि सच यह है कि देश की सुरक्षा, एकता व अखंडता को बनाए रखने के लिए जो लोग अतीत में बलिदान दे चुके अथवा वर्तमान में सैन्य कर्मी के रूप में इस मोर्चे पर तैनात हैं, वे ही राष्ट्र के वास्तविक नायक हैं।
वर्तमान पीढ़ी, विशेषकर युवाओं और बच्चों को सही दिशा देना इस समय की एक बड़ी चुनौती है। समाचार माध्यमों से यह ज्ञात होता है कि स्कूलों में अथवा घर-परिवार में ही नाबालिग बच्चों ने रक्तरंजित हत्याएं कर दीं अथवा लैंगिक शोषण किया। सवाल यह है कि आखिर इतनी कम वय में इस प्रकार का अपराधिक मानस कहां से व क्यों बन रहा है। ऐसे में, देश के ज्ञात-अज्ञात, भूले व बिसरे राष्ट्र नायकों के चरित्र-चित्रण, गौरव गान एवं बारंबार उल्लेख से देश के युवाओं व बालकों को विकृतियों से बचाते हुए सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
यह भी कम आश्चर्य नहीं है कि दशकों से पूर्ववर्ती सरकारों ने इस दिशा में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया। अब जाकर आजादी के अमृतकाल में आखिर मोदी सरकार ने यह बीड़ा उठाया है और इस दिशा में अनेक पहलें की गई हैं, जिसकी एक कड़ी वीर बाल दिवस भी है।
ऐसे में अब यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि इसी प्रकार एक से अधिक इसी प्रकार के आयोजन आकार लेंगे एवं वर्तमान पीढ़ी को अपने राष्ट्र नायकों के बलिदान, महत्व के बारे में जानने का अधिकाधिक अवसर मिल सकेगा। तभी जाकर देश में एक स्वस्थ चित्त युवा का निर्माण होगा जो व्यवहारिक होगा, अपनी परंपरा के प्रति गौरव के बोध से भरा होगा एवं पूर्ण दायित्व बोध के साथ आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकेगा।
वीर बाल दिवस के दौरान अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस दौर की धार्मिक कट्टरता पर भी बोला जब मुगल आतताई भारतवर्ष में रक्तपात कर रहे थे। मोदी ने वीर साहिबजादे के अदभुत साहस एवं राष्ट्र के प्रति निष्ठा का उल्लेख करते हुए कहा कि एक ओर धार्मिक कट्टरता में अंधी इतनी बड़ी मुगल सल्तनत, दूसरी ओर ज्ञान और तपस्या में तपे हुए हमारे गुरु, भारत के प्राचीन मानवीय मूल्यों को जीने वाली परंपरा! एक ओर आतंक की पराकाष्ठा, तो दूसरी ओर आध्यात्म का शीर्ष! एक ओर मजहबी उन्माद, तो दूसरी ओर सबमें ईश्वर देखने वाली उदारता! इस सबके बीच, एक ओर लाखों की फौज, और दूसरी ओर अकेले होकर भी निडर खड़े गुरु के वीर साहिबजादे! ये वीर साहिबजादे किसी धमकी से डरे नहीं, किसी के सामने झुके नहीं।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर विशेष ज़ोर दिया कि, अगर हमें भारत को भविष्य में सफलता के शिखरों तक लेकर जाना है, तो अतीत के संकुचित नजरियों से आजाद होना होगा। इसलिए, आजादी के ‘अमृतकाल’ में देश ने ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ का प्राण फूंका है।
उस दौर की कल्पना करिए! औरंगजेब के आतंक के खिलाफ, भारत को बदलने के उसके मंसूबों के खिलाफ, गुरु गोविंद सिंह जी पहाड़ की तरह खड़े थे। जोरावर सिंह साहब और फतेह सिंह साहब जैसे कम उम्र के बालकों से औरंगजेब और उसकी सल्तनत की क्या दुश्मनी हो सकती थी? दो निर्दोष बालकों को दीवार में जिंदा चुनवाने जैसी दरिंदगी क्यों की गई? वो इसलिए, क्योंकि औरंगजेब और उसके लोग गुरु गोविंद सिंह के बच्चों का धर्म तलवार के दम पर बदलना चाहते थे। हालांकि, भारत के वो बेटे, वो वीर बालक, मौत से भी नहीं घबराए। वो दीवार में जिंदा चुन गए, लेकिन उन्होंने उन आततायी मंसूबों को हमेशा के लिए दफन कर दिया।
वीर बाल दिवस के मंच से देश को धर्मांतरण के खिलाफ भी परोक्ष रूप से संदेश दिया। उन्होंने साहिबजादों के बलिदान को धर्मांतरण जैसी बुराई के खिलाफ अडिग रहने वाली ठोस विचारधारा के रूप में निरुपित किया। आखिर दो निर्दोष बालकों को दीवार में जिंदा चुनवाने जैसी दरिंदगी क्यों की गई। वो इसलिए, क्योंकि औरंगजेब और उसके लोग गुरु गोविंद सिंह के बच्चों का धर्म तलवार के दम पर बदलना चाहते थे।
प्रधानमंत्री ने कहा, साहिबजादों ने इतना बड़ा बलिदान और त्याग किया, अपना जीवन न्यौछावर कर दिया, लेकिन इतनी बड़ी ‘शौर्यगाथा’ को भुला दिया गया। लेकिन अब ‘नया भारत’ दशकों पहले हुई एक पुरानी भूल को सुधार रहा है। हम आजादी के ‘अमृत महोत्सव’ में देश के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। स्वाधीनता सेनानियों, वीरांगनाओं, आदिवासी समाज के योगदान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हम काम कर रहे हैं।”
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)