विवेकानंद शिला स्मारक : ऐसा स्मारक जिसके निर्माण ने विभिन्न विचारधाराओं को एक कर दिया

1970 में राष्ट्र को समर्पित किया गया “विवेकानंद शिला स्मारक” एक ऐसा  स्मारक है जो आज भी विवेकानंद जी के विचारों को जीवंत बनाए हुए है। 25, 26, 27 दिसंबर 1892 को स्वामी विवेकानंद ने भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी में स्थित शिला पर साधना करने के बाद भारत के पुनरुत्थान के लिए अपना कार्य शुरू किया।

देश-विदेश में हजारों स्मारकों का निर्माण हुआ है लेकिन शायद ही कोई ऐसा स्मारक हो जो जीवित हो। 1970 में राष्ट्र को समर्पित किया गया “विवेकानंद शिला स्मारक” एक ऐसा  स्मारक है जो आज भी विवेकानंद जी के विचारों को जीवंत बनाए हुए है। 25, 26, 27 दिसंबर 1892 को स्वामी विवेकानंद ने भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी में स्थित शिला पर साधना करने के बाद भारत के पुनरुत्थान के लिए अपना कार्य शुरू किया।

तीन सागरों के संगम पर स्थित यह वही शिला है, जहां माता कन्याकुमारी के श्रीपाद आज भी विद्यमान हैं। इस स्मारक का निर्माण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और बाद में उस स्मारक को 1972 में “विवेकानंद केंद्र” की स्थापना करके जीवंत बनाने वाले माननीय एकनाथ रानाडे जी ने किया है।

विवेकानंद शिला स्मारक

वर्ष 1963 में स्वामी जी की जन्म शताब्दी पूरे देश में मनाई जा रही थी। इसी उपलक्ष्य में कन्याकुमारी के स्थानीय लोगों ने उस ऐतिहासिक शिला पर एक स्मारक बनाने के लिए एक समिति का निर्माण किया। लेकिन विभिन्न स्तरों पर बाधाएं आने के कारण उस समिति ने संघ के सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी से संपर्क किया, जिन्होंने श्री एकनाथ रानाडे जी को इसका दायित्व सौंपा।

एक तरफ जहां तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भक्तवसलम ने उस शिला पर निर्माण करने से स्पष्ट मना कर दिया वहीं केंद्रीय सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हुमायूं कबीर ने “शिला पर स्मारक प्राकृतिक सौंदर्य को खराब कर देगा” कहकर बाधाएं खड़ी कीं। लेकिन अपने कुशल प्रबंधन, धैर्य एवं पवित्रता के बल पर माननीय एकनाथ रानाडे जी ने मुद्दे को राजनीति से दूर रखते हुए विभिन्न स्तरों पर स्मारक के लिए लोक संग्रह किया।

एकनाथ रानाडे जी ने विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के सांसदों को अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर “भारतीयता की विचारधारा” में पिरो दिया और तीन दिन में 323 सांसदों के हस्ताक्षर लेकर तब के गृहमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के पास पहुंच गए। जब इतनी बड़ी संख्या में सांसदों ने स्मारक बनने की इच्छा प्रकट की तो संदेश स्पष्ट था कि “पूरा देश स्मारक की आकांक्षा करता है।” कांग्रेस हो या  समाजवादी, साम्यवादी हो या द्रविड़ नेता, सभी ने एक स्वर में हामी भरी।

अनुमति तो मिल गई किंतु धन कहां से आएगा? माननीय एकनाथ रानाडे जी ने हर प्रांत से सहयोग मांगा चाहे जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला हों या नागालैंड के होकिशे सेमा सभी ने सहयोग किया। जब वह वामपंथी नेता श्री ज्योति बसु से मिले तो ज्योति बसु ने कहा-“मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आप इस ज्योति बसु से मिलने हेतु नहीं आ सकते क्योंकि मेरा विवेकानंद जी से कोई संबंध नहीं है।”

एकनाथ जी ने कहा- “मैं यह कैसे विश्वास कर सकता हूं कि आपको उनसे कोई लेना-देना नहीं है?” क्या उन्होंने पददलितों के लिए आवाज नहीं उठाई? आप भी पददलितों के हितरक्षक हैं, वे उत्पीड़ितों के हितरक्षक थे, आप भी उनके हितरक्षक हैं। ज्योति बसु बोले – हां, इस दृष्टि से मैं उनका प्रशंसक हूं क्योंकि वह उत्पीड़ित एवं पददलितों के प्रतिनिधि थे लेकिन साम्यवादी दल की सदस्यता होने के कारण उन्होंने असमर्थता जताई।

रानाडे जी ने श्रीमती कमलाबसु, उनकी धर्मपत्नी को कार्य से जोड़ा जिन्होंने स्मारक के लिए 1100 रुपए अपने मित्रों से इकट्ठे किए और विभिन्न विचारधाराओं को “भारतीयता के संगम” में प्रवेश कराया। सत्ता में कोई भी पार्टी हो, फिर भी लगभग सभी राज्य सरकारों ने 1-1 लाख का दान दिया। स्मारक के लिए पहला दान “चिन्मय मिशन” के स्वामी चिन्मयानंद जी द्वारा विवेकानंद शिला स्मारक समिति को दिया गया।

समाज को स्मारक से जोड़ने के लिए लगभग 30 लाख लोगों ने 1,2 और 5 ₹ भेंट स्वरूप दिए। उस समय के लगभग 1% युवा जनसंख्या ने इसमें भाग लिया। रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी वीरेश्वरानंद महाराज ने स्मारक को प्रतिष्ठित किया और इसका औपचारिक उद्घाटन 2 सितंबर, 1970 को भारत के राष्ट्रपति श्री वी वी गिरि ने किया। उद्घाटन समारोह लगभग 2 महीने तक चला जिसमें भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी शिरकत की।

उस स्मारक को जीवित रूप देने के लिए “विवेकानंद केन्द्र- एक आध्यात्म प्रेरित सेवा संगठन” की स्थापना 7 जनवरी 1972 को की गई। विवेकानंद केंद्र के हजारों कार्यकर्ता जनजाति और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा एवं विकास, प्राकृतिक संसाधन विकास, सांस्कृतिक अनुसंधान, प्रकाशन, युवा प्रेरणा, बच्चों के लिए संस्कार वर्ग एवं योग वर्ग आदि गतिविधियां संचालित करते हैं।

इस स्मारक का यह स्वर्ण जयंती वर्ष चल रहा है जिसके उपलक्ष्य में विवेकानंद केंद्र ने “एक भारत-विजयी भारत” संपर्क अभियान राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से मिलकर प्रारंभ किया। विवेकानंद केंद्र के कार्यकर्ता समाज के अलग-अलग वर्गों के हजारों लोगों से संपर्क करेंगे और उन्हें स्वामी विवेकानंद के संदेश देने के साथ ही समाज के कल्याण एवं संवर्द्धन के लिए योगदान देने के लिए प्रेरित करेंगे।

(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)