इन विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा अपने विकास के एजेंडे व भारतीयता पर आधारित अपनी मूल विचारधारा के साथ मजबूती से बढ़ रही है, वहीं कांग्रेस, टीएमसी आदि विपक्षी दलों के पास कहने को कुछ नहीं है, अतः वे कभी गोत्र बताकर तो कभी मंदिर-मंदिर जाकर व अन्य नाटक-नौटंकी करके लोगों को भरमाने की कोशिश में लगे हैं। मगर जनता अब उनके भरमावे में आने वाली नहीं है।
पश्चिम बंगाल में भाजपा ने ‘ई बार पोरिवर्तन’ का नारा दिया है। यह कितना सफल होगा, यह देखने के लिए प्रतीक्षा करनी होगी। लेकिन फिलहाल परम्परागत सेक्युलर सियासत में परिवर्तन अवश्य दिखाई दे रहा है। ज्यादा समय नहीं हुआ जब एक पार्टी के प्रवक्ता ने अपने तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष को जनेऊ धारी ब्राह्मण घोषित किया था। अब इसी तर्ज के तथाकथित सेक्युलर लोगों द्वारा पश्चिम बंगाल के मंच से अपने को हिन्दू बताया जा रहा और अपना गोत्र सार्वजनिक किया जा रहा है।
कुछ वर्ष पहले इस खेमे में ऐसी बातें भी गुनाह थीं। सेक्युलर होने का दायरा निर्धारित था। इसके अंतर्गत मुसलमानों की बात हो सकती थी। भारत के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक बताने वाले उस समय के प्रधानमंत्री थे।
लेकिन हिन्दू शब्द को साम्प्रदायिक मान लिया गया था। इस सेकुयलर सीमा में अयोध्या जन्म भूमि पर श्री राम मंदिर निर्माण के मार्ग में अवरोध थे, श्री राम सेतु काल्पनिक था, अनुच्छेद तीन सौ सत्तर का समर्थन अनिवार्य था, तीन तलाक की कुप्रथा पर चर्चा नहीं हो सकती थी। मगर अब ये लोग अलग ही रंग में दिख रहे।
हाल ये है कि जो ममता बनर्जी जय श्री राम के उद्घोष से नाराज हो जाती थीं, अब अपना गोत्र बताने, चंडीपाठ करने और मंदिर-मंदिर घूमने लगी हैं। वे जब त्रिपुरा के त्रिपुरेश्वरी मंदिर गई थीं तो वहां पुरोहित ने उनसे गोत्र पूछा था, तब ममता ने कहा था कि मां माटी मानुष मेरा गोत्र है। अब उनके चुनाव क्षेत्र नन्दीग्राम में भी पुजारी ने यही पूछा। तब ममता ने अपना गोत्र शांडिल्य बताया।
इससे पूर्व नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद जब ममता यहां पहले औपचारिक दौरे पर पहुंची थीं, तब उन्होंने चंडीपाठ सुनाया था। अपने को ब्राह्मण परिवार की बेटी तक बताया था। यहां नामांकन भरने से पहले उन्होंने शिवजी के मंदिर में पूजा अर्चना की। वह पैदल ही मंदिर पहुंची थीं। इसके साथ ही दुर्गा मंदिर, काली मंदिर जैसे ई धार्मिक स्थलों पर भी गई थीं।
यही नहीं, चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री सहित भाजपा के अनेक नेताओं को उन्होंने बाहरी बताया था। अब नन्दीग्राम में यही आरोप खुद उन पर ही लग गया। इसलिए आनन-फानन में उन्होंने यहां किराए का दो घर लिये। ये घर नंदीग्राम के रेयापाड़ा इलाके में हैं।
ममता ने खुद यह ऐलान भी किया कि वह जल्द ही यहाँ नदी के किनारे अपना पक्कान मकान बनाएंगी। यह वादा किया कि वह यहां की यात्रा करती रहेंगी। जाहिर है कि नन्दीग्राम के प्रति भी ममता बनर्जी में पूरा आत्मविश्वास नहीं है।
शुभेंदु अधिकारी ने जब उनका साथ छोड़ा था, तभी उन्होंने ममता बनर्जी के विरुद्ध चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। ममता बनर्जी ने सोच समझ कर नन्दीग्राम का चयन किया। शुभेंदु अधिकारी यहां चुनाव लड़ने पहुंच गए। लेकिन तब भी ममता बनर्जी घबड़ाई हुई लग रही हैं। जिस प्रकार प्रधानमंत्री पूरे देश का होता है, उसे कहीं भी बाहरी नहीं कहना चाहिए।
उसी प्रकार मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश का होता है, उसे प्रदेश में कहीं से चुनाव लड़ने के लिए किराए पर घर लेने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। मगर ममता को शायद पाँव के नीचे से ज़मीन खिसकती महसूस हो रही है, इसीलिए वे मतदाताओं को रिझाने के लिए ऐसे-ऐसे जतन करने में लगी हैं।
ममता बनर्जी की तरह ही कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी चुनाव से पहले ही भक्तिभाव का प्रदर्शन करता है। यह सब परिवर्तन पिछले कुछ वर्षों से दिखाई दे रहा है जिसके मूल में इन तथकथित सेक्युलर दलों व नेताओं की राजनीतिक विवशता ही कारण है। अन्यथा इनका वास्तविक विचार अब भी पहले जैसा ही है।
दूसरी तरफ भाजपा अपने मूल विचार पर कायम है। सबका साथ सबका विकास लेकिन तुष्टिकरण किसी का नहीं। भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ देश के प्रत्येक हिस्से में चुनावी भाषण की शुरुआत वंदेमातरम व भारत माता के उद्घोष से करते हैं। जबकि वंदेमातरम से तथाकथित सेक्युलरों को परहेज रहता है।
योगी आदित्यनाथ यह भी कहते हैं कि वह श्री राम और श्री कृष्ण के अवतार स्थान व भोलेनाथ की नगरी काशी से आये हैं। उनकी इस बात पर उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक जय श्री राम के उद्घोष होते हैं। लोग राम जन्मभूमि पर श्री राम मंदिर निर्मांण पर प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।
वस्तुतः योगी आदित्यनाथ यह दिखाना चाहते है कि विविधता के बाद भी भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में एकता का भाव है। यही एकता हमारे तीर्थ स्थलों पर दिखाई देती है, जहां अलग अलग भाषाओं को बोलने वाले लोग समान रूप से भक्तिभाव में रम जाते हैं।
योगी ने तमिलनाडु में चुनाव प्रचार के पूर्व ऐतिहासिक गणेश मंदिर में पूजा अर्चना की थी। इसके बाद उन्होंने जनसभा को संबोधित किया। वह रोड शो में भी सम्मलित हुए। योगी को देखने सुनने के लिए भारी भीड़ उमड़ी। उन्होंने यहां एनडीए उम्मीदवारों को विजयी बनाने का आह्वान किया। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक व भाजपा का गठबंधन चुनाव में है।
अन्नाद्रमुक की पूर्व प्रमुख जयललिता भी भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था रखती थीं। जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी द्रमुक नेताओं ने श्री राम सेतु को काल्पनिक बताने के यूपीए सरकार के विचार का समर्थन किया था। वहीं जय ललिता ने इसका विरोध किया था। उनकी विरासत को वर्तमान पार्टी नेतृत्व आगे बढ़ा रहा है। इस आधार पर भाजपा उनकी स्वभाविक सहयोगी है।
कुल मिलाकर सारांश ये है कि इन विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा अपने विकास के एजेंडे व भारतीयता पर आधारित अपनी मूल विचारधारा के साथ मजबूती से बढ़ रही है, वहीं कांग्रेस, टीएमसी आदि विपक्षी दलों के पास कहने को कुछ नहीं है, अतः वे कभी गोत्र बताकर तो कभी मंदिर-मंदिर जाकर व अन्य नाटक-नौटंकी करके लोगों को भरमाने की कोशिश में लगे हैं। मगर जनता अब उनके भरमावे में आने वाली नहीं है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)